सम्पादकीय

आवाजों से घिरा सदन

Gulabi
11 Dec 2021 3:58 AM GMT
आवाजों से घिरा सदन
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अनुनय-विनय करते प्रशासनिक व पुलिस अधिकारी उन आवाजों के नीचे दब गए, जो कानून-व्यवस्था के लिए चुनौती बने थे
दिव्याहिमाचल.
सवर्ण आयोग न सही, सामान्य वर्ग आयोग के लिए तपोवन परिसर ने अंतत: पलक-पांवड़े बिछा दिए और आगामी बजट सत्र के दौरान मध्यप्रदेश की तर्ज पर यह गुणकारी समाधान, एक कानून की शक्ल में रसीद हो जाएगा। विधानसभा सत्र की शुरुआत सदन और सदन के बाहर सरकार के लिए अप्रत्याशित नहीं थी, लेकिन दोनों ही मोर्चों पर सत्ता ने अपना रास्ता किसी तरह बचा लिया। हालांकि पहली बार विधानसभा तक दृश्य व परिदृश्य में असामान्य स्थितियां देखने को मिलीं और सवर्ण आयोग के समर्थन में उठी आवाजों ने सदन के भीतर तक सत्ता के कानों में सारा गुस्सा उंडेल दिया। इसी का असर है कि आगामी बजट सत्र की सहमति में सामान्य वर्ग आयोग की संभावना बनी और सड़क के अवरोधक हट गए। समाज के ताने-बाने के बीच राजनीति की झंकार और शोर में घनघोर अशांति का गवाह बना तपोवन का सत्र। भले ही सरकार ने आगे बढ़कर आंदोलनरत सवर्ण आयोग समर्थकों के हाथ थाम लिए, लेकिन इससे पूर्व जो घटनाक्रम पैदा हुआ, उससे प्रशासन असमर्थ दिखाई दिया। अनुनय-विनय करते प्रशासनिक व पुलिस अधिकारी उन आवाजों के नीचे दब गए, जो कानून-व्यवस्था के लिए चुनौती बने थे।
शुक्र यह कि मामला जातीय उग्रता तक नहीं पहुंचा और सारा माजरा किसी अनहोनी घटना से बच गया, लेकिन सवाल खत्म नहीं हुए। सवाल यह भी रहेगा कि अगर विधानसभा सत्र के बहाने सवर्ण आयोग के समर्थकों को आना ही था, तो यह मुलाकात इस तरह से बेपर्दा क्यों हुई। विधानसभा परिसर तक सुरक्षा के इंतजाम इतने बिखरे क्यों कि मुख्य गेट तक हंगामे ने विचलित किया। आंदोलन करना एक लोकतांत्रिक अधिकार है, लेकिन ऐसे प्रदर्शन कानून-व्यवस्था का मजाक नहीं उड़ा सकते। इससे पहले मुख्यमंत्री कार्यालय तक पहुंचे पुलिस जवान, एम्स बिलासपुर में भाजपा अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा तक पहुंचे पुलिस कर्मियों के परिजन और कुल्लू में मुख्यमंत्री सुरक्षा के दौरान जिला पुलिस प्रमुख तथा मुख्यमंत्री के निजी सुरक्षा अधिकारी के बीच हुई झड़प अवांछित उदाहरण पेश करते हैं। ऐसा क्या दबाव है कि शांत रहने वाला हिमाचल ऐसी अवांछित घटनाओं का गवाह बन रहा है। तपोवन की घटना रोकी जा सकती थी या हिमाचल पुलिस के पास ऐसा सामथ्र्य नहीं रहा कि लोकतांत्रिक संस्थानों की पूर्ण सुरक्षा की जा सके। जो भी हो, सवर्ण आयोग आंदोलन को पढऩे में सत्ता तथा सरकार के अधिकारी नाकामयाब रहे हैं। अगर फैसले विधानसभा के गेट पर ही होने हैं, तो कल हर तरह के आंदोलन को यह छूट रहेगी कि इसी तरह की उग्रता से मनमाने फैसले करा लें। अगर आंदोलनों की परिणति में जीत-हार के उद्गार विधानसभा परिसर से सीधा टकराव करेंगे, तो यह किसी भी सरकार के लिए सही नहीं होगा।
आश्चर्य यह कि सरकार के अंतिम वर्ष को निचोडऩे के लिए कई तरह के आंदोलन शुरू हो रहे हैं। ऐसे में राजधर्म तो यही कहता है कि बात बिगडऩे से पहले वस्तुस्थिति को समझते हुए समाधान निकाले जाएं। सवर्ण आयोग के समर्थकों को भी समय रहते समाधान का रास्ता दिखा दिया होता, तो बात बिगडऩे से पहले सौहार्द में बदल जाती। बहरहाल तपोवन के खुलेपन में प्रदेशभर का आगमन बढ़ रहा है। शिमला की व्यवस्था से कहीं अलग धर्मशाला परिसर की रुह में लोकतांत्रिक संवाद अब सदन से सड़क तक है। सरकार के पास यह एक अवसर है और जनता की नब्ज टटोलने का वक्त भी। पिछले कुछ सालों से जब भी तपोवन में शीतकालीन सत्र होता है, मीडिया से लेकर आम जन तक प्रदेश के विषय, विवाद, तर्क और समाधानों के अलावा सत्ता व विपक्ष के व्यवहार की तफ्तीश बढ़ जाती है। शुक्रवार की घटना ने तपोवन परिसर को लेकर सुरक्षा इंतजामों व व्यवस्था को पुन: रेखांकित करने की शर्त रखी है। शिमला से जब सरकार धर्मशाला आती है, तो चार दिन की चांदनी में विषय सजावटी हो जाते हैं, लेकिन इन्हें स्थायी रूप से दुरुस्त करने की जरूरत है। धर्मशाला नगर निगम के तहत विधानसभा परिसर तक के विकास को कुछ नए पैमानों की आवश्यकता है और रहेगी।
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