सम्पादकीय

कर्मचारी सियासत में सदन

Rani Sahu
15 Dec 2021 6:44 PM GMT
कर्मचारी सियासत में सदन
x
क्या हिमाचल कर्मचारी राजनीति के बाहुपाश में फंस गया है या अब चुनाव का यही दस्तूर चलेगा

क्या हिमाचल कर्मचारी राजनीति के बाहुपाश में फंस गया है या अब चुनाव का यही दस्तूर चलेगा। यह सवाल इसलिए भी कि दोनों प्रमुख राजनीतिक दल इसी आईने के सामने चेहरा साफ कर रहे हैं। शीतकालीन सत्र से पहले जेसीसी बैठक के बहाने सरकार ने दिल खोलकर आजमाइश की तो, सदन के बहाने विपक्षी कांग्रेस ने भी अपने अरमान पूरे किए। सदन के भीतर रोष स्वरूप कांग्रेस की हरकतें उस कालीन पर बिछ गईं, जहां राजनीति के सपने भी कर्मचारी चाटुकारिता में तल्लीन देखे गए। एक असामान्य घटनाक्रम में सोमवार का सत्र, विपक्ष को अकल्पनीय मुद्रा में अपनी नाटकीय सरकार की दरी बिछाते हुए देखता है। आक्रोश की भूमिका में विपक्षी साज अगर बजे, तो वहां प्रदेश के अहम मुद्दों में सिर्फ कर्मचारी ही रहे यानी काल्पनिक प्रस्तावों में ओल्ड पेंशन स्कीम, आउटसोर्स कर्मियों को अनुबंध, पुलिस कर्मियों को नियमित पे बैंड व एसएमसी कर्मियों के नियमितिकरण को कांग्रेस अपना औजार मान रही है। आक्रोश की गलियों में कांगे्रस की आंखें सिर्फ कर्मचारी ही देख रही हैं, तो गुस्से की लाली भी फरेबी है। झूठमूठ की सरकार बनाकर कांग्रेस नौटंकी कर सकती है, लेकिन इस नाटक का विधवा विलाप केवल कर्मचारी मसले ही रहेंगे। क्या राजनीति की यही अवधारणा प्रदेश को आत्मनिर्भर बना सकती है। क्या हिमाचल के सारे मसले केवल कर्मचारी हित ही रहेंगे या बारह लाख बेरोजगारों के लिए भी कोई पार्टी सामने आएगी। हम कांग्रेस को विधानसभा से सड़क तक संघर्ष में देखना चाहेंगे और यह भी कि पार्टी अपने मंतव्य के ग्रॉफ में जितना उठना चाहे, मीडिया के लिए यह संतोष की बात होगी, लेकिन प्रदेश के भविष्य को केवल कर्मचारी सियासत में गूंथना सही नहीं होगा। हिमाचल के अस्तित्व और भविष्य के लिए कई गम हैं। रोजगार के अवसरों को लेकर चिल्ल पौं हो सकती हैं, लेकिन इसके पैमाने में सिर्फ सरकारी नौकरी ही क्यों। हिमाचल का सबसे अधिक रोजगार निजी क्षेत्र में उद्योग, व्यापार, पर्यटन, परिवहन, शिक्षा-चिकित्सा और स्वरोजगार के जरिए फल फूल रहा है।

आज प्रदेश के आर्थिक संसाधन जिस तरह बंट रहे हैं या सामाजिक व आर्थिक असमानता इसलिए पैदा हो रही है, क्योंकि राजनीति का दस्तूर केवल सरकारी क्षेत्र की अमानत में पलते समुदायों के विशेषाधिकारों से सुसज्जित करके चल रही है। कर्मचारी हितों में प्रदेश का पच्चास फीसदी बजट पहले ही कुर्बान हो चुका है, श्रीमन कांग्रेस यह बताए कि उसकी कर्मचारी कल्पनाशीलता या उदारता की दरगाह पर बजट का और कितना हिस्सा चढ़ाया जाए। ओपीएस ही अगर लागू करना है, तो अतिरिक्त धन किस जेब से आएगा। आश्चर्य यह कि हिमाचल के लगभग सभी निजी विश्वविद्यालय व इंजीनियरिंग कालेज इसलिए अपनी क्षमता को लुटा हुआ पा रहे हैं, क्योंकि प्रदेश के बच्चे उच्च व प्रोफेशनल शिक्षा के लिए बाहर देश-विदेश में प्रस्थान कर रहे हैं। आज अगर इंजीनियर बेकार हो रहे हैं, तो कल प्रदेश से हर साल निकलने वाले साढ़े आठ सौ के करीब नए डाक्टरों का भविष्य क्या होगा। आज तकनीकी विश्वविद्यालय के तहत इंजीनियरिंग की 2100 सीटें खाली हैं, सारे आईटीआई खाली हो रहे हैं, तो शिक्षा को नौकरी से जोड़ेंगे या रोजगार के नए अवसर खोजने होंगे। आज क्यों वर्षों बाद भी प्रदेश अगर एक अदद आईटी पार्क स्थापित नहीं कर पा रहा या नए निवेश के लिए उत्तम माहौल नहीं दे पा रहा, तो सुशिक्षित होना अभिशाप ही होगा। सरकारी नौकरी की जीत अलग बात है, लेकिन यहां तो कर्मचारी सियासत की पूजा में बंटता प्रसाद ही युवाओं का शोषण कर रहा है। कर्मचारी अधिकारों में कूदी कांग्रेस यह स्पष्ट करे कि उसकी आर्थिक व रोजगार नीति क्या है। इस प्रदेश के युवा वैसे भी 45 साल तक सरकारी नौकरी की आस में अपनी क्षमता को चोटिल कर ही रहे हैं, तो सरकारी कर्मचारियों के ताज इन्हें और अभिशप्त करेंगे।

divyahimachal

Next Story