सम्पादकीय

बर्र का छत्ता

Gulabi
27 Sep 2021 10:16 AM GMT
बर्र का छत्ता
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बात बर्र के छत्ते की हो, तो इनसान के भी हाथ कांप जाते हैं, लेकिन स्वयं बर्र आजकल परेशान होकर घूम रहा है

बात बर्र के छत्ते की हो, तो इनसान के भी हाथ कांप जाते हैं, लेकिन स्वयं बर्र आजकल परेशान होकर घूम रहा है। उसके लिए मुसीबत यह है कि सारा ही समूह खुद को औकात से बड़ा बनाने की गलती फिर से करने जा रहा है। सारे बर्र उड़ रहे थे, बेघर अपने आशियाने की नई तलाश में। सोचा नया छत्ता बनाएंगे, तो संचालन पूरी तरह लोकतांत्रिक होगा यानी वह खुद में किसी को प्रधानमंत्री, किसी को गृह मंत्री, रक्षा मंत्री, खाद्य आपूर्ति मंत्री या निर्माण मंत्री जैसे पदों से नवाज रहे थे। उनकी जरूरतें ही शासन, न कि शासन की जरूरत के लिए मंत्री बनाए जा रहे थे। वे उस वक्त विधानसभा के आसपास थे और उन्हें लगा कि यह जगह उम्मीदों से भरी है। जहां से इनसानों को वर्षों से रोटी, कपड़ा और मकान दिए जा रहे हों, वहां बर्र का छत्ता भी तो आबाद हो सकता है। इस सुझाव पर बर्रों के गृह मंत्री ने एतराज जाहिर करते हुए कहा कि हम इनसान नहीं हैं कि अपने समूह को वादों से पाल लें। वहां सपने हैं, लेकिन हम हकीकत हैं।


वहां सत्ता और विपक्ष है, हम रिश्ते में हैं। वहां जो काम करता है, उससे सम्मान और सामान छीना जाता है, हम जीते ही केवल काम के लिए हैं। बर्रों के प्रधानमंत्री ने अपना जहर थूकते हुए बहुमत प्रस्ताव को मान लिया और इस तरह उन्होंने फिर जगह की तलाश शुरू कर दी। वे उड़ते रहे, लेकिन किसी ने दलबदल नहीं किया। उनके रक्षा मंत्री को मालूम था कि जिस आकाश पर उनका दल है, वहां दलबदल नहीं हो सकता और अगर सारे शहर में जगह न मिली तो भी दुख नहीं होगा। किसी ने बताया शहर को स्मार्ट सिटी बनाया जा रहा है, लेकिन बर्रों ने बहुमत से यह स्वीकार नहीं किया कि इस देश में ऐसा कुछ होगा। एक ने अपनी प्रजाति का इतिहास बताते हुए कहा कि आजादी को वे भी देख रहे हैं, बल्कि देश के बंटवारे ने ही बर्रों के बूढ़े-बुजुर्गों को भारत में पनाह दी थी। दरअसल जब से इनसानी छत्ते बनने लगे हैं, बर्र को खुद पर शक होने लगा है। बर्र भी मजाक-मजाक में एक-दूसरे को 'पाकिस्तानी'-'पाकिस्तानी' कहकर चिढ़ा रहे थे। अचानक उन्होंने एक बड़ा मंच देखा, तो दिल ललचा गया। बर्र के नीति निदेशक ने आगामी पंचवर्षीय योजना बनाते हुए सोचा कि सार्वजनिक मंच पर डेरा लगेगा, तो उन्हें भी सियासत का प्रभाव मिलेगा।

अभी उन्होंने सोचा ही था कि मंच पर हलचल हुई। विपक्षी दल वहां सरकार के खिलाफ रैली कर रहा था। वे देश के प्रधानमंत्री को कोस रहे थे। यह सुनकर बर्रों के प्रधानमंत्री ने कहा, 'ऐसे पदों की तौहीन नहीं होनी चाहिए, अतः कुछ पटाके विपक्षियों को देने पड़ेंगे।' यह सुनकर उनके रक्षा मंत्री ने उड़ते-उड़ते विपक्षी नेताओं की गाल पर इनकम टैक्स की तरह डंक मार दिया। सारे बर्र प्रधानमंत्री के पक्ष में यह कार्रवाई देख कर प्रसन्न हुए, लेकिन उन्हें विपक्षी मंच पसंद नहीं आया। उनके वन मंत्री ने कहा कि नीम के पेड़ पर छत्ता बना लेते हैं, लेकिन एक शालीन बर्र जो कि देखने में ही संस्कृति मंत्री लग रहा था, ने कहा, 'यह नीम का पेड़ भारत की सत्ता पक्ष के लिए आरक्षित है। यहां तमाम नेता बारी-बारी से चढ़ते हैं और इस तरह इस देश की जनता को अब करेले भी मीठे लगने लगे हैं।' अंततः बर्रों का समूह श्मशानघाट के ऊंचे पेड़ पर छत्ता बनाने में मशरूफ हो गया। वहां कोई विघ्न नहीं था। दरअसल यहां कोविड मृतकों को जलाया जाता था। सभी पीपीई किट में लिपटे हुए आते और बिना किसी इनसानी रस्म के जल जाते। बर्र खुश हैं कि इस बहाने वे कोविड मृतकों के लिए अपने श्रद्धा सुमन अर्पित कर पाते हैं। अब सैकड़ों चिताओं की परिक्रमा करके बर्र इतने अभ्यस्त हो गए हैं कि वे किट में लिपटे जनाजे को देखते ही समझ जाते हैं कि उनका छत्ता फिर भी इनसानों से मजबूत है।

निर्मल असो, स्वतंत्र लेखक
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