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- बर्र का छत्ता
बात बर्र के छत्ते की हो, तो इनसान के भी हाथ कांप जाते हैं, लेकिन स्वयं बर्र आजकल परेशान होकर घूम रहा है। उसके लिए मुसीबत यह है कि सारा ही समूह खुद को औकात से बड़ा बनाने की गलती फिर से करने जा रहा है। सारे बर्र उड़ रहे थे, बेघर अपने आशियाने की नई तलाश में। सोचा नया छत्ता बनाएंगे, तो संचालन पूरी तरह लोकतांत्रिक होगा यानी वह खुद में किसी को प्रधानमंत्री, किसी को गृह मंत्री, रक्षा मंत्री, खाद्य आपूर्ति मंत्री या निर्माण मंत्री जैसे पदों से नवाज रहे थे। उनकी जरूरतें ही शासन, न कि शासन की जरूरत के लिए मंत्री बनाए जा रहे थे। वे उस वक्त विधानसभा के आसपास थे और उन्हें लगा कि यह जगह उम्मीदों से भरी है। जहां से इनसानों को वर्षों से रोटी, कपड़ा और मकान दिए जा रहे हों, वहां बर्र का छत्ता भी तो आबाद हो सकता है। इस सुझाव पर बर्रों के गृह मंत्री ने एतराज जाहिर करते हुए कहा कि हम इनसान नहीं हैं कि अपने समूह को वादों से पाल लें। वहां सपने हैं, लेकिन हम हकीकत हैं।