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सम्पादकीय
उम्मीद जगाता है विश्व धरोहर खजुराहो में नृत्य का पहला शोध केन्द्र
Gulabi Jagat
16 March 2022 3:34 PM GMT
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विश्व धरोहर खजुराहो शास्त्रीय नृत्य शैलियों के शोध केन्द्र के रूप में विकसित होगा
विश्व धरोहर खजुराहो शास्त्रीय नृत्य शैलियों के शोध केन्द्र के रूप में विकसित होगा. निश्चय ही यह खबर कला के गलियारों में प्रसन्नता की नई लहर जगाने वाली है. हाल ही यह घोषणा म.प्र. की संस्कृति मंत्री उषा ठाकुर ने खजुराहो नृत्य समारोह में की तो जैसे उम्मीद को नए पंख मिल गये.
मौसम की चौखट पर मधुमास की दस्तक होती है तो धरोहर की धरती पर एक बार फिर यह पुरातन वैभव जी उठता है. एक उत्सव कला के घुँघरु बांधकर जीवन के उल्लास को नाचने लगता है. राग-रागिनियों में भावों की कलियाँ मुस्कुराने लगती हैं. परनों-तानों की लय-गतियों में पाँव थिरक उठते हैं. यूँ कंदरिया और जगदंबी मंदिरों का पवित्र परिसर संस्कृति के सुनहरे छंदों से गमक उठता है. परंपरा की उंगली थामकर साधक मन अनंत की यात्रा पर निकल पड़ता है. खजुराहो… जहाँ पत्थरों के खुरदुरे दामन पर प्रेम की मूरतें रचते हुए शिल्पियों ने कभी सोचा न होगा कि मंदिर की दीवारों से उठते शिखर एक दिन सारी क़ायनात के लिए इंसानी तहजीब का पैग़ाम बन जाएंगे.
मध्यप्रदेश के सांस्कृतिक पुरुषार्थ का सौभाग्य ही है कि इस दिव्य लीला को नए वक़्ती दौर में रचते हुए उसने कमोबेश आधी सदी पूरी कर ली है. परिकल्पना, संयोजन और विस्तार के ओर-छोर नापते हुए 'खजुराहो नृत्य समारोह' ने निश्चय ही अद्वितीय प्रतिमान गढ़े हैं. यहाँ ललित कलाओं का वो संसार बसता है जहाँ जीवन और कलाओं की रंगभूमि के सारे रंग बिखर जाते हैं. गहरे में उतरो तो ये रंग रुह को छू जाते हैं. उस्ताद अलाउद्दीन खाँ संगीत एवं कला अकादेमी ने 48 वें उत्सव का विन्यास करते हुए उन सभी विधाओं और अनुशासनों को जगह दी जहाँ रचनाशीलता, दरअसल मनुष्यता के आदर्श का हासिल चाहती है. निश्चय ही संभावनाओं के दरीचों पर एक जलसा अपनी अहमियत साबित करता नए समय को पुकार रहा है.
जीवन अगर उमंगों का छलकता समंदर है तो उसकी इठलाती हर लहर पर प्रेम की कविता पढ़ी जा सकती है. चंदेलों का गाँव इसी यक़ीन पर मोहर लगाता है. सारी दुनिया जैसे राग-रंग के इस सैलाब में सिमट जाने को आतुर होती है. 20 से 26 फरवरी के दरमियान भारतीय शास्त्रीय नृत्य शैलियों के प्रदर्शन के साथ ही खजुराहो आए सैलानियों और स्थानीय लोक रसिकों ने इस उत्सव के साथ जुड़ी तमाम गतिविधियों में शरीक होकर जीवन के कलात्मक सरोकारों को क़रीब से देखा-जाना.
48 वें समारोह का शुभारंभ राज्यपाल मंगूभाई पटेल की मौजूदगी में हुआ. इस मौक़े पर मध्यप्रदेश की संस्कृति मंत्री उषा ठाकुर ने एक महत्वपूर्ण घोषणा करते हुए इस उत्सव को एक नई विरासत की सौगात में बदल दिया. उन्होंने कहा कि खजुराहो में भारतीय शास्त्रीय नृत्य शैलियों का एक शोध और संदर्भ केन्द्र स्थापित किया जाएगा. पहली शाम वियतनाम, ब्रुनेई, फिनलैंड, मलेशिया और लाओ के राजदूत और उच्चायुक्त के साथ ही तीन देशों के हेड ऑफ मिशन भी उपस्थित थे. प्रमुख सचिव संस्कृति शिव शेखर शुक्ला, संचालक अदिती त्रिपाठी, आयोजक संगीत कला अकादेमी के निदेशक जयंत माधव भिसे और उत्सव के आकल्पक उपनिदेशक राहुल रस्तोगी ने नृत्य विभूतियों और मेहमान अभ्यागतों का स्वागत किया. इस मंच पर भरतनाट्यम नर्तक युगल शांता-धनंजय और कथक नृत्यांगना सुनयना हजारीलाल को म.प्र. शासन की ओर से राष्ट्रीय कालिदास सम्मान से अलंकृत किया गया.
समारोह में राज्य रुपंकर कला पुरस्कार भी प्रदान किये गए. बदनावर की प्रिया सिसौदिया को देवकृष्ण जटाशंकर जोशी पुरस्कार, इंदौर के स्वप्न तरफदार को मुकुंद सखाराम भांड पुरस्कार, जबलपुर के दुर्गेश बिरथरे को रज़ा पुरस्कार, अशोक नगर के नरेंद्र जाटव को देवलालीकर पुरस्कार, संजय धवले को जगदीश स्वामीनाथन पुरस्कार, मुनि शर्मा को विष्णु चिंचालकर पुरस्कार, अग्नेश केरकेट्टा को नारायण श्रीधर बेंद्रे पुरस्कार, ऋतुराज श्रीवास्तव को फडके पुरस्कार ज्योति सिंह को राममनोहर सिन्हा पुरस्कार एवं सोनाली चौहान को लक्ष्मीशंकर राजपूत पुरस्कार से सम्मानित किया गया. राज्यपाल ने इन कलाकारों को 51 हजार रुपए की राशि और प्रमाणपत्र प्रदान किये.
मूर्धन्य नृत्य गुरु पंडित बिरजू महाराज ने कभी खजुराहो की धरती पर आकर कहा था- "यहाँ मंदिर और मन की साधना के मंदिर का मिलन होता है". इसी अहोभाव के साथ इस बार भी नर्तकों ने लय-ताल और भाव-अभिनय का अभिषेक किया. नृत्य सभाएँ तो 'कथक के दिवंगत महाराज' की स्मृति को समर्पित रही हीं, 'नेपथ्य' का मंच भी इस नृत्य विभूति की महान विरासत को समर्पित रहा.
संवाद में कलाओं का ललित पक्ष
नृत्य सहित दीगर ललित कलाओं का संदर्भ लेते हुए संस्कृति के विभिन्न पक्षों पर संवाद की एक महत्वपूर्ण गतिविधि 'कलावार्ता' के रुप में विगत कुछ वर्षों से समारोह को बौद्धिक आभा प्रदान कर रही है. सुबह का यह सत्र नृत्य, अध्यात्म, चित्रकला, पुरातत्व, फि़ल्म, संगीत, योग आदि विषयों पर वार्ता का खुला मंच होता है. इस दफ़ा भी बेहद सार्थक और सुरुचि से भरे उद्बोधन रहे. सभी सत्रों का विषय प्रवर्तन करने वरिष्ठ कला समीक्षक विनय उपाध्याय आमंत्रित थे.
महाराज की यादः पहला संवाद 21 फरवरी को नृत्य सम्राट पंडित बिरजू महाराज के कला जीवन की स्मृतियों पर केन्द्रित था. उनकी प्रिय शिष्या शाश्वती सेन और बेटी ममता महाराज ने कहा कि जिन्होंने कई लोगों की आँखे खोली और सही रास्ता दिखाया, ऐसे गुरु मिल पाना मुश्किल है. मेरे पिता-गुरु हर विषय में पारंगत थे. नृत्य तो वे करते ही थे सितार सारंगी वायलिन से लेकर तबला पखावज तक सब ऐसे बजाते थे जैसे वे इन्हीं के लिए बने थे. गायन में भी शास्त्रीय से लेकर गजल ठुमरी दादरा सब कुछ किसी मंझे कलाकार की तरह गाते थे. वे कविताएं लिखते तो लगता कि वे कवि हैं, पेंटिंग करते तो लगता कि वे चित्रकार हैं. वास्तव में वे अवतारी पुरुष थे.
ममता ने इच्छा जाहिर की कि अगला जन्म भी उन्हें महाराज जी के घर में उनके पिता रहते मिले. शाश्वती सेन ने कहा कि ख़ासकर बच्चों में कथक को लोकप्रिय बनाने के लिए महाराज ने काफी काम किया. इसके लिए उन्होंने ऐसी गतें, तिहाइयाँ बनाई कि नीरस लगने वाला कथक लोगों को आसानी से समझ आने लगा. चित्रकार लक्ष्मीनारायण भावसार ने भी बिरजू महाराज से जुड़े कुछ संस्मरण साझा किए.
'कलावार्ता' के दूसरे सत्र में प्रख्यात पुरातत्वविद शिवकांत वाजपेयी ने खजुराहो के मंदिरों के संदर्भ में पुरातत्व और नृत्य संगीत के अंतरसंबंधों पर विस्तार से और प्रामाणिक ढंग से चर्चा की. उन्होंने कहा कि खजुराहो के मंदिर और उन पर उत्कीर्ण मूर्तियाँ ताल मान प्रमाण से बनाई गई हैं इनका संस्कृति, आध्यत्म से गहरा रिश्ता है.
महाराज पर विशेष डाक आवरणः डाक विभाग ने खजुराहो नृत्य महोत्सव के कलावार्ता सत्र में पंडित बिरजू महाराज पर विशेष आवरण जारी किया. प्रयाग फैलेटिलिक सोसायटी के प्रस्ताव पर सोसाइटी के सचिव राहुल गांगुली ने खजुराहो पोस्ट ऑफिस की ओर से ये आवरण जारी किया. शाम 4 बजे बिरजू महाराज पर केंद्रित फि़ल्मों का प्रदर्शन किया गया.
सौन्दर्य की संस्कृति है चित्रकलाः मुम्बई की प्रख्यात चित्रकार एवं सर जे.जे. स्कूल ऑफ आर्ट मुम्बई की डीन मनीषा पाटिल ने एक अन्य सत्र में कला के विद्यार्थियों और कला रसिकों से संवाद किया. उन्होंने कहा कि बॉम्बे स्कूल केवल सर जे.जे. स्कूल तक सीमित नहीं है. 1837 में जब स्कूल की स्थापना हुई तब अंग्रेजी हुकूमत थी. कला के उनके अपने मानक थे, सो जाहिर है यहाँ पढ़ने वाले उस असर से मुक्त नहीं हो सके. पाटिल ने विभिन्न स्लाइड्स के प्रेजेन्टेशन के जरिये विजुअल आर्ट की विकास यात्रा तत्कालीन शिक्षण पद्धति आदि को रोचक ढंग से प्रस्तुत करते हुए कहा कि हमारी संस्कृति में जो सौंदर्य है वो कहीं और देखने को नहीं मिलता. मनीषा पाटिल ने विद्यार्थियों के सवालों के जवाब भी दिए और कहा कि हमें अपनी संस्कृति और उसके मूलाधारों की समझने और ज्ञान को बढ़ाने की जरूरत है. मौजूदा पीढ़ी में वे इसकी कमी पाती हैं.
सनातन कला है नृत्यः संस्कृतिविद् राजेश कुमार व्यास ने नृत्य में सभी कलाओं का मेल है. कलाकार प्रयोग से इसमें बढ़त करता है. उन्होंने बिरजू महाराज और अन्य नर्तकों संस्मरण साझा करते हुए कहा कि अपने नृत्य में बिरजू महाराज ने राधा को आत्मसात कर लिया था. कथक को उन्होंने जीवन से जोड़ा. केलुचरण महापात्रा ने गोटिपुआ, महरी के प्रयोग से ओडिसी को बहुआयामी बनाया. इसी तरह नृत्य सम्राट उदयशंकर ने गवरी, बेले आदि नृत्यों के मेल से विरल नृत्य मुहावरा रचा.
व्यास ने कलाओं के अन्तः सम्बन्धों की चर्चा करते हुए नृत्य में प्रयोगधर्मिता और संवाद के जरिये उसके विकास पर ध्यान दिए जाने का आह्वान किया. उन्होंने कहा कि कलाएँ व्यक्ति को संस्कारित करती हैं. नृत्य कला देखने का संस्कार देती है.
सुंदर हो, सार्थक भी होः प्रसिद्ध कवि-चित्रकार अरविंद ओझा ने अपने संवाद सत्र में कहा कि कलाएँ मनुष्य को मनुष्य बनाती हैं. मनुष्य शब्द मनन से बना है जो मन का विस्तार है. चिंता जाहिर करते हुए उन्होंने कहा कि आज का कला का स्वरुप सार्थक नहीं है. वह प्रयोग के तौर पर सुंदर जरुर है पर चिंतन और विचार के धरातल पर सार्थकता कम है. उन्होंने योरोप के मानववाद का जिक्र करते हुए कहा कि मनुष्यता वही है जहाँ मनुष्य की अभिव्यक्ति को स्थान दिया जाए.
भोपाल की तृषा कौशिक ने सम्मोहन और नृत्यकला के संदर्भ में अपनी बात कही. तमाम भ्रांतियों को खारिज करते हुए कहा कि वास्तव में हम अपने जीवन में रोजमर्रा के कई बार सम्मोहित होते हैं और सम्मोहित करते भी हैं. उन्होंने कहा सम्मोहन बाहर से नहीं आता ये तो हमारे भीतर ही है. उन्होंने मन की चेतन और अवचेतन अवस्था का जिक्र करते हुए कहा कि कला से भी ये जुड़ा हुआ है.
विश्व सिनेमा पर संवादः फि़ल्म और कला समीक्षक अजीत राय ने 'कलावार्ता' के एक सत्र में विश्व सिनमा का परिप्रेक्ष्य खोला. उन्होंने कहा कि आज विश्व का सिनेमा बदल रहा है. जहाँ जीवन और मनुष्यता खतरे में हैं वहाँ के खतरों से दो चार होते हुए फि़ल्मकार कैमरा घुमा रहे हैं और नए विषयों पर फि़ल्में बना रहे हैं. जहाँ जिंदगी संकट में है वहाँ सिनेमा आजादी के लिए खड़ा है.
उन्होंने कहा कि हाल के कुछ वर्षों में महिला फि़ल्मकारों का वर्चस्व भी सामने आया है. औरत कैमरा उठा रही है और सिनेमाई संस्कृति बदल रही है. उन्होंने 2006 की ईरानी फि़ल्म ऑफ साइड का जि़क्र किया और कहा कि बन्दिशों से नारी को बाहर निकालने और उसे जाग्रत करने वाली इस फि़ल्म के बाद 2016 में ईरान को महिलाओं के लिए फुटबॉल देखने की अनुमति देनी पड़ी.
मूर्तियों में मुखर संगीतः युवा शोधार्थी अनामिका दुबे ने मूर्तिकला और संगीत पर अपनी बात कही. खजुराहो के स्थापत्य में वाद्य यंत्रों की तलाश करते हुए तत्कालीन सामाजिक और सांस्कृतिक चेतना पर उन्होंने शोध भी किया है. उन्होंने खजुराहो के मंदिरों पर उत्कीर्ण मूर्तियों के संदर्भ लेते हुए स्लाइड्स के जरिये बताया कि आज हम संगीत में जिन वाद्यों का इस्तेमाल करते है वे न केवल सदियों पुराने है बल्कि उनकी लंबी परंपरा है.
आर्ट मार्टः चितेरों का नया रंगायन
एक संपूर्ण उत्सव की कल्पना में सजीव हो उठा यह समारोह 'आर्ट मार्ट' के लिए भी अलग से याद किया जाएगा. एक बड़े से पांडाल में मानों चित्रों की दुनिया रंग-रेखाओं में आबाद हो उठती है! इस बार जलरंगों से जीवंत था यह परिसर. भारत के मुख़्तलिफ़सूबों के शहर-क़स्बों से लेकर सिंगापुर, दुबई, बुल्गारिया, बांग्लादेश और अमेरिका जैसे दीगर मुल्कों से भी नुमाईश के लिए कलाकृतियाँ साझा हुईं. वॉटर कलर के नाम पर चित्रकला का आधुनिक संसार कला और हुनर में अलहदा दर्जों में भी शाया हुआ. यह अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शनी इस बात को भी जांचने का अवसर थी कि हमारे वक़्ती दौर के ख़ासकर युवा चितेरे अपनी कला परंपरा और प्रशिक्षण की स्कूलों से मिले सबक, प्रेरणाओं और अपने स्वतंत्र-चेता चिंतन-कौशल के बीच किस तरह का सृजन कर रहे हैं?
इन सबके बीच आवाजाही करते हुए चित्रकारों का परस्पर संवाद मानीखेज रहा. पर्यटकों और कस्बाई दर्शकों के कला आस्वाद और कौतुहल को परखना भी दिलचस्प तजुर्बा था. यूँ एक नयी सांस्कृतिक नातेदारी का मंच बना 'आर्ट मार्ट'. प्रतिभागी चित्रकारों से मुख़ातिब कला अकादेमी के उपनिदेशक राहुल रस्तोगी ने कहा कि 'आर्ट मार्ट' चित्रकारों के लिए सामूहिकता में अपने सृजन को संजोने और संवाद करने के साथ ही भावी दिशाओं की तलाश के लिए उर्जा अर्जित करने का सुनहरा अवसर है. प्रदर्शनी की समन्वयक वरिष्ठ चित्रकार प्रीता गडकरी 'आर्ट मार्ट' के विस्तार और गुणकारी कला सृजन को समारोह का हासिल मानती हैं. उनका कहना है कि इस तरह कला की एक नई बिरादरी ने आकार लिया. प्रीता कहती हैं कि वाटर कलर पुरानी चित्रकला पद्धति है. यह मुश्किल काम है. बहुत संयम और नियंत्रण की यहाँ दरकार है. पार जलरंगों में हर विषय वस्तु और विचार संभव है. ये रंग गहरे से हल्के की ओर जाते हुए दृश्य और भावों का वैविध्य रच देते हैं.
'आर्ट मार्ट' के साथ ही 'प्रणति' शीर्षक एक अन्य प्रकल्प में वरिष्ठ चित्रकार और कला गुरु लक्ष्मीनारायण भावसार अपनी कलाकृतियों के संग पेश आए. आधी सदी से भी अधिक समय के विविध अंतरालों में रची गये उनके चित्रों का संग्रह देखना दर्शकों और नौजवान चित्रकारों के लिए प्रीतिकर अनुभव था. भावसार मध्यप्रदेश के शिखर सम्मान से विभूषित चित्रकार है. मालवा की इंदौर स्कूल से प्रशिक्षित होकर उन्होंने अपने कलाकर्म को लगातार समृद्ध किया.
(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए जनता से रिश्ता किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)
विनय उपाध्याय कला समीक्षक, मीडियाकर्मी एवं उद्घोषक
कला समीक्षक और मीडियाकर्मी. कई अखबारों, दूरदर्शन और आकाशवाणी के लिए काम किया. संगीत, नृत्य, चित्रकला, रंगकर्म पर लेखन. राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उद्घोषक की भूमिका निभाते रहे हैं.
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