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- भारत से उम्मीद
Written by जनसत्ता; बैठक के बाद सभी देशों की सहमति से जो साझा बयान जारी हुआ, उसमें इस प्रतिबद्धता पर जोर यही रेखांकित करता है कि दुनिया अब और युद्ध नहीं चाहती। महत्त्वपूर्ण बात तो यह है कि आने वाले वक्त में इस महाप्रयास में भारत को अपनी बड़ी भूमिका निभानी है।
इसलिए भी कि अब समूह बीस की अध्यक्षता भारत को करनी है और अगली शिखर बैठक दिल्ली में होगी। रूस यूक्रेन युद्ध के संदर्भ में देखें तो समूह बीस एक महत्त्वपूर्ण संगठन इसलिए भी है कि इसमें वे विकसित और विकासशील देश शामिल हैं जो रूस-यूक्रेन युद्ध के मुद्दे पर बंटे हुए हैं। ऐसे में यह समूह युद्ध रुकवाने की मुहिम में कितना सफल हो पाता है, यह वक्त ही बताएगा।
यूक्रेन पर हमला करने वाला रूस भी इस समूह का सदस्य है। बाली की बैठक में जिस तरह से युद्ध का मुद्दा छाया रहा और रूस के रवैए की आलोचना हुई, उससे रूस की नाराजगी स्वाभाविक है। ऐसे में युद्ध रुकवाने के लिए कौन कितने और कैसे प्रयास करेगा, यह बड़ा सवाल है।
रूस-यूक्रेन युद्ध के मुद्दे पर भारत का रुख शुरू से ही स्पष्ट है। भारत कहता ही रहा है कि युद्ध तत्काल रुकना चाहिए और कूटनीतिक तरीकों से समस्या का हल खोजा जाना चाहिए। गौरतलब है कि इस साल सितंबर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन के साथ बातचीत में साफ कहा था कि आज का युग युद्ध का नहीं होना चाहिए।
उनके इस संदेश गूंज बाली शिखर बैठक में भी सुनाई देने का मतलब साफ है कि अब कोई भी जंग नहीं चाहता। दुनिया के परिणाम कितने भयावह होते हैं, यह सब देख ही रहे हैं। लगभग सभी देश किसी न किसी रूप में युद्ध की मार झेल रहे हैं। वैश्विक अर्थव्यवस्था की चूलें हिली पड़ी हैं। महंगाई से हर देश परेशान है। अर्थव्यवस्था में मंदी और महंगाई के साथ ऊर्जा संकट का सामना करना पड़ रहा है, सो अलग। इसके अलावा इस युद्ध ने वैश्विक खाद्य संकट भी खड़ा कर दिया है। इसलिए अब उन देशों को युद्ध का कूटनीतिक समाधान निकालने पर ज्यादा तेजी से काम करना होगा जो इस मुद्दे पर खेमेबाजी में फंसे हैं और युद्ध के कारण पैदा हालात की मार झेलने को मजबूर हैं।
ऐसा नहीं कि जंग खत्म नहीं हो सकती। अगर कुछ देश वैश्विक राजनीति में दबदबा बनाने के लिए अपने स्वार्थों को त्याग दें, तो समाधान का रास्ता निकलने में कोई बहुत वक्त नहीं लगने वाला। रूस-यूक्रेन युद्ध के मुद्दे पर भारत शुरू से ही तटस्थ रहा और अमेरिका व पश्चिमी देशों के तमाम दवाबों के बावजूद किसी खेमे में शामिल नहीं हुआ। संयुक्त राष्ट्र में भी भारत इसी नीति पर चला।
रूस से तेल खरीदने को लेकर अमेरिका और कुछ यूरोपीय देशों ने रूस और उससे तेल खरीदने वालों पर जिस तरह के प्रतिबंधों की बात की है, उसका भारत ने बाली सम्मेलन में भी कड़ा विरोध किया। इसमें कोई संदेह नहीं कि दुनिया के तमाम देश भारत को एक ऐसे नेता के रूप देख रहे हैं जो शांति और कूटनीति के जरिए मौजूदा युद्ध संकट से मुक्ति दिलवाने की दिशा में बड़ी भूमिका निभा सकता है। लेकिन भारत अकेला तो यह नहीं कर सकता। इसके लिए सभी को साथ आना होगा।