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टोक्यो ओलंपिक में अपने चमत्कारिक प्रदर्शन की बदौलत सेमीफाइनल में पहली बार पहुंची भारतीय महिला हॉकी टीम वाकई प्रशंसा की हकदार है।
टोक्यो ओलंपिक में अपने चमत्कारिक प्रदर्शन की बदौलत सेमीफाइनल में पहली बार पहुंची भारतीय महिला हॉकी टीम वाकई प्रशंसा की हकदार है। शुरुआती मैचों में लगातार हार के बाद उसने जिस तरह से पदक की प्रतिस्पद्र्धा में वापसी की, और कल इस खेल की दिग्गज टीम ऑस्ट्रेलिया को 1-0 से परास्त किया, उसे देखते हुए स्वाभाविक ही देशवासियों की उससे उम्मीदें बढ़ गई हैं। कल अर्जेंटीना से मुकाबले में टीम की लड़कियां यकीनन बुलंद हौसले के साथ मैदान में उतरेंगी। इतिहास रचने से दो कदम दूर खड़ी महिला हॉकी टीम की इस जीत की अहमियत को इसके मुख्य कोच सोर्ड मारिन ने कहीं बेहतर तरीके से रखा है- हम सोच रहे थे कि इस टीम का सर्वोच्च लक्ष्य क्या है? यह भारतीय लड़कियों को प्रेरित करने से जुड़ा है। यही वह विरासत है, जो ये लड़कियां अपने देश की बेटियों के लिए तैयार करना चाहती हैं।
ओलंपिक में भारतीय पुरुष हॉकी का अतीत काफी सुनहरा रहा है, लेकिन 1980 के बाद से टीम ओलंपिक पदक के लिए तरसती रही है। ऐसे में, जब क्वाटर फाइनल में इसने ब्रिटेन को 3-1 से हराया, तो मास्को ओलंपिक की यादें ताजा हो आईं। तब जबर्दस्त फॉर्म में दिख रही स्पेन की टीम को मोहम्मद शाहिद के चपल कदमों ने हार का स्वाद चखने को बाध्य कर दिया था। आज सुबह जब पुरुष हॉकी टीम बेल्जियम से मैदान में मुकाबला कर रही है, तब उससे उसी तरह के प्रदर्शन की उम्मीद है। चूंकि आजादी के बाद दशकों तक ओलंपिक आयोजनों में राष्ट्रीय धुन बजाए जाने का गौरव हॉकी ने सर्वाधिक उपलब्ध कराया, इसलिए इससे देशवासियों का एक भावनात्मक जुड़ाव रहा है। लेकिन बाद के वर्षों में इसकी जगह क्रिकेट ने ले ली, क्योंकि क्रिकेट में टीम इंडिया का प्रदर्शन निखरता गया और हॉकी खेल संघों की राजनीति का शिकार होती गई। हालांकि, पिछले कुछ वर्षों से सरकारों की दिलचस्पी और पेशेवराना रुख के नतीजे सामने आने लगे हैं।
महिला हॉकी टीम की कई खिलाड़ी बहुत साधारण पृष्ठभूमि से उभरकर यहां तक पहुंची हैं। ऐसे में, उनमें जूझने के जज्बे और मानसिक मजबूती की कोई कमी नहीं है, जरूरत उनके हुनर को तराशने की है, और यह काम बेहतर खेल-संस्कृति से ही होगा। पिछले दिनों हमने ऐसी अनेक खबरें पढ़ीं कि गरीब घरों की कई खेल प्रतिभाएं इसलिए मजदूरी करने को बाध्य थीं, क्योंकि उनके माता-पिता उन्हें जरूरी खुराक मुहैया कराने में असमर्थ थे। पदक जीतने के बाद करोड़ों की बारिश का अपना महत्व हो सकता है, मगर पदक मंच तक खिलाड़ियों को पहुंचाने के लिए पर्याप्त निवेश कहीं अधिक जरूरी है। देश के अधिक से अधिक खिलाड़ियों को ओलंपिक पोडियम तक पहुंचाने के लिए सरकार को 'टारगेट ओलंपिक पोडियम स्कीम' जैसे और कार्यक्रम शुरू करने होंगे। महिला हॉकी टीम ने यह तो साबित कर दिया है कि इन खिलाड़ियों में प्रतिभा की कमी नहीं है। इन्हें बस अनुभव और प्रशिक्षण की दरकार है। बहरहाल, सवा सौ करोड़ से अधिक आबादी वाला देश पदक तालिका में 60 देशों के बाद खड़ा हो, इस तस्वीर को बदलने की जरूरत है। अब तक टोक्यो ओलंपिक में बेटियों ने अपने प्रदर्शन से काफी प्रभावित किया है, जो बताता है कि हमने उनकी क्षमताओं को ठीक से परखा ही नहीं!
Tagshockey fairies

Triveni
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