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- इतिहास सब याद रखेगा

भले सरकार पर इसका कोई असर ना हो, लेकिन नताशा नारवाल, देवांगना कलिता और आसिफ इकबाल तन्हा के मामले में की गईं दिल्ली हाई कोर्ट की टिप्पणियों को लंबे समय तक याद रखा जाएगा। इन टिप्पणियों का संबंध भारत के लोकतंत्र और उससे उसके भविष्य से है। दिल्ली के तीन छात्रों को एक साल से ज्यादा समय से जेल में रखा गया था। मामला उनकी ही जमानत अर्जी का था। हाई कोर्ट ने उन्हें जमानत दी। ये अपने आप में अहम है। लेकिन उससे ज्यादा महत्त्वपूर्ण वह है, जो जजों ने जमानत का आदेश देते हुए की। ये तीनों छात्र 2019 के आखिर में नागरिकता कानून के खिलाफ देश में चल रहे आंदोलन से जुड़े थे। दिल्ली पुलिस ने फरवरी 2020 में दिल्ली में हुए दंगों में अपनी जांच के दौरान इन तीनों पर दंगों के पीछे की साजिश में शामिल होने का आरोप लगाया। उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। तीनों के खिलाफ आईपीसी की कई धाराओं के अलावा यूएपीए के तहत भी आरोप लगाए गए। पुलिस ने इस विवेक का परिचय नहीं दिया कि यूएपीए को आतंकवादियों के खिलाफ इस्तेमाल के लिए बनाया गया था। तीनों छात्रों की जमानत अर्जियों को स्वीकार करते हुए खंडपीठ ने कहा कि उनके खिलाफ प्रथम दृष्टि में यूएपीए लगाने का कोई आधार नहीं बनता।
