सम्पादकीय

इतिहास गवाह है कि छोटी लड़ाइयां बड़े युद्धों में तब्दील हो जाया करती हैं

Gulabi Jagat
15 April 2022 8:19 AM GMT
इतिहास गवाह है कि छोटी लड़ाइयां बड़े युद्धों में तब्दील हो जाया करती हैं
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6 जून 1944 को नोरमैंडी में डी-डे लैंडिंग के बाद जब यह स्पष्ट हो गया कि

थॉमस एल. फ्रीडमैन का कॉलम:

अब जब व्लादीमीर पुतिन अपने प्लान-बी पर अमल कर चुके हैं यानी एक बड़े सैन्य अभियान के जरिए पूर्वी यूक्रेन के एक छोटे-से हिस्से पर कब्जा कर लेना, ताकि इस गैरजायज युद्ध को न्यायोचित ठहरा सकें तो मैं सोचने लगा कि इस व्यक्ति को कौन सबसे अच्छी सलाह दे सकता है?

जब मैंने अमेरिका के श्रेष्ठ रणनीतिकार और रक्षा-मामलों के विशेषज्ञ जॉन अर्कीला से सम्पर्क किया और इस पर उनकी राय जानना चाही तो उन्होंने बिना किसी झिझक के कहा, 'मैं पुतिन को एक ही मशविरा देना चाहूंगा- अब तो युद्ध रोक दीजिए, महाशय।' वैसे भी यह बुनियादी नियम है कि जब आप किसी गड्‌ढे में गिर गए हों तो कम से कम एक काम तो बिलकुल ना करें और वह है उस गड्‌ढे को और गहरा खोदते चले जाना।
6 जून 1944 को नोरमैंडी में डी-डे लैंडिंग के बाद जब यह स्पष्ट हो गया कि जर्मन टुकड़ियां मित्रराष्ट्रों को रोक नहीं सकेंगी तो जर्मन कमांडर ने बर्लिन में सेना प्रमुख जनरल विल्हेल्म कीटेल को फोन लगाया। जनरल ने पूछा- 'अब हम क्या करेंगे?' जिस पर कमांडर ने जवाब दिया- 'अक्ल के दुश्मन, अब हमारे पास सुलह करने के अलावा चारा ही क्या है?' अगले ही दिन कमांडर को पद से हटा दिया गया।
पुतिन ने भी यही किया है। उन्होंने युद्ध के दूसरे चरण के लिए एक नए सीनियर जनरल को नियुक्त किया है, जिसने सीरिया में विरोधियों को क्रूरता से कुचल दिया था। इतिहास का सबक यह है कि जर्मनों को अपने कमांडर को हटाने का खामियाजा भुगतना पड़ा था। पुतिन को भी दूसरे चरण में कड़े प्रतिरोध का सामना करना पड़ सकता है।
जॉन अर्कीला ने अपनी नई किताब 'बिट्जक्रीग : द न्यू चैलेंज ऑफ साइबरवॉरफेयर' में युद्ध के कुछ नए तरीकों के बारे में बताया है और यूक्रेनी उन्हीं का पालन कर रहे हैं। यूक्रेनी स्क्वाड-स्तर की यूनिट्स संचालित कर रहे हैं, जिनके पास स्मार्ट वेपन्स हैं। ये बड़े फॉर्मेशनों पर प्रहार करने में सक्षम हैं।
इन यूक्रेनी दस्तों के पास किलर ड्रोन्स, एंटीएयरक्राफ्ट वेपन्स और लाइट एंटी-टैंक वेपन्स हैं और वे रूसियों की बड़ी और भारी टैंक यूनिट्स को सफलतापूर्वक निशाना बना रहे हैं। रूसी 40 मील लम्बे टैंक-कॉनवॉय के साथ बढ़ रहे हैं और यूक्रेनियों के छोटे स्क्वाडों ने उनका जीना दुश्वार कर दिया है। उनका बड़ा आकार ही उनका शत्रु बन गया है।
इतना ही नहीं, यूक्रेनी नागरिक अपने स्मार्टफोन की मदद से रूसियों की खुफिया लोकेशंस की जानकारियां भी यूक्रेनी सेना को दे रहे हैं। वे उनके अनौपचारिक ह्यूमन सेंसर्स या ऑब्जर्वर कॉर्प की तरह काम कर रहे हैं। इनमें कोई भी हो सकता है। कोई ऐसा लड़का भी, जिसके पास स्मार्टफोन है। यूक्रेनियों को अपने देश में लड़ाई का लाभ मिल रहा है और उनके नागरिक अपनी सेना को रीयल-टाइम इंटेलीजेंस मुहैया करा रहे हैं।
युद्ध अब केवल बड़ी फौज की मदद से ही नहीं जीते जा सकते हैं।तो क्या रूसी दूसरे चरण में अपनी रणनीति बदलेंगे? जॉन अर्कीला कहते हैं, रूसी बमबारी करते रहेंगे, पूर्वी यूक्रेन में तो और तीव्रता के साथ। लेकिन समस्या यह है कि मलबे के कारण जीत दर्ज करना और कठिन हो जाता है। स्तालिनग्राद में यही हुआ था।
नाजियों ने उस शहर पर इतने बम फेंके थे कि उसे पाषाणयुग में पहुंचा दिया था, लेकिन उसके बाद उन्हें मलबे के ढेर से छोटी यूनिट्स में होकर गुजरना पड़ा और वे मात खा गए। अगर रूसी इससे सबक सीखेंगे तो लड़ाई के दूसरे चरण में टैंकों की मदद कम लेंगे और पैदल-सेना पर जोर देंगे। आश्चर्य की बात है कि अभी तक रूसियों ने साइबर युद्धनीति का ज्यादा उपयोग नहीं किया है।
इसका कारण यह है कि यूक्रेन की सेना विकेंद्रीकृत रूप से संचालित हो रही है, जबकि रूसी बहुत केंद्रीकृत होकर युद्ध लड़ रहे हैं और जरूरी निर्णयों के लिए हमेशा जनरलों का मुंह ताकते रहते हैं। शायद रूसियों ने अपने साइबर हथियारों को पश्चिमी ताकतों से बड़ी लड़ाई के लिए बचा रखा है, वे नहीं चाहते कि नाटो को उनके साइबरटूल्स के बारे में पहले ही पता चल जाए।
शायद पुतिन इस शर्त पर समझौते को राजी हो जाएं कि डोनेस्क-लुहांस्क को स्वतंत्र दर्जा दे दिया जाए और यूक्रेन भले ईयू का सदस्य बने लेकिन नाटो का नहीं। समस्या यह है कि अभी तक पुतिन दबाव में नहीं हैं क्योंकि रूस की सिविल सोसायटी को चुप करा दिया गया है और रूसी फौजें शर्मिंदा हैं कि वो यूक्रेन को हरा नहीं पाई हैं।
लड़ाई चलती रहेगी, दोनों पक्षों को बड़े पैमाने पर क्षति होती रहेगी, लेकिन कोई भी नॉकआउट पंच नहीं कर सकेगा। उम्मीद ही की जा सकती है कि पुतिन किसी समझौते पर राजी होने को तैयार होंगे।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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