- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- अंधेरे की गोद में...
x
खबर है कि कुछ खतरनाक आतंकवादियों को गिरफ्तार किया गया है
जयप्रकाश चौकसे का कॉलम:
खबर है कि कुछ खतरनाक आतंकवादियों को गिरफ्तार किया गया है। खबर में आगे यह भी बताया गया है कि इनमें से कुछ का संबंध ऐसे आतंकी संगठनों से है, जो अति हिंसक और खतरनाक प्रवृत्ति के हैं। साथ ही कहा जा रहा है कि ये देश के विविध प्रांतों में अपने आतंकी कैंप बनाकर अपने खतरनाक मंसूबों को अंजाम देना चाहते हैं।
यह बात भी विचारणीय है कि नक्सल प्रभाव वाले क्षेत्र में कभी-कभी खतरनाक और घातक हथियार पकड़े गए, जिन हथियारों पर चीन में बने होने के तथ्य पर कोई विवाद नहीं है। लेकिन सवाल यह उठता है कि चीन या पाकिस्तान में बने हथियार, भारत के दूरदराज क्षेत्रों तक पहुंचाएं कैसे जाते हैं ? गोया कि महानगरों में आर.डी.एक्स जैसा विनाशकारी विस्फोटक कैसे पहुंचा? तो क्या हमारे अपने लोग ही लालच में इस तरह के काम करते हैं? दूसरी ओर देखें तो कुछ लोग देश और दुनिया में ऐसे भी हैं जो उस काम का श्रेय लेने की कला को भी भलीभांति जानते हैं, जो काम उन्होंने किया ही नहीं।
एक सवाल यहां यह भी उठता है कि अफगानिस्तान में पिछले दिनों हुए घटनाक्रम में तालिबानियों ने हथियारों का उपयोग किया। लेकिन मूल बात यह है कि इस पूरी घटना के लिए पूंजी किसने जुटाई? सबके लिए यह कहना और मान लेना बड़ा सुविधाजनक है कि चीन ने पूंजी निवेश किया हो। लेकिन दूसरी ओर कुछ लोगों का अनुमान है कि चीन के भीतर भी वहां के युवाओं में भारी आक्रोश की लहर चल रही है।
वहां कुछ युवा और बड़ी संख्या में लोग अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता चाहते हैं। गोया कि चीन के कुछ क्षेत्रों में तलघर में छुपकर युवा वर्ग रॉक और रैप करता है और अपने अंदाज में मस्ती में रहता है आजादी से गाता-बजाता है। वहां के एक तलघर में एक पोस्टर लगा मिलने की बात भी सामने आई है, जिसमें एक महान दिवंगत नेता के हाथ में गिटार है और वह नेता दुनियाभर के लिए सम्माननीय है।
अत: गन, बनाम गिटार द्वंद्व में आजकल गिटार का पलडा भारी हो गया है। गिटार मात्र संगीत प्रेम नहीं है, वरन वह मनुष्य की भीतरी कशमकश को रेखांकित कर रहा है। हर व्यक्ति परेशान है, कुछ पशेमान भी है। नजर आ रहा है कि विज्ञान और टेक्नोलॉजी के स्वर्ण युग में आम आदमी सारी सुख-सुविधाएं और तकनीक होते हुए भी बहुत दुखी है। हालात अब यह हैं कि तमाम दुनियाभर की जानकारियों की अधिकता भी हमें परेशान कर रही है।
संतुलन बनाए रखना अब बेहद कठिन हो गया है। मानव, विचार संसार का ऐसा द्वीप बन गया है, जहां लहरें एक-दूसरे की शत्रु हुई जा रही हैं, ऐसे में हम उस काबुलीवाले को कहां खोजें जो अपने वतन से दूर दूसरे देश में किसी नन्ही सी बालिका में अपनी बेटी को देख रहा है, जिससे बिछड़े उसे अरसा गुजर गया है। उसके मन में आज भी वह बालिका के रूप में विद्यमान है। गौरतलब है कि अरसे पहले फिल्मकार कबीर खान ने अफगानिस्तान पर एक वृत्तचित्र बनाया था और इसी के कारण उन्हें 'बजरंगी भाईजान' फिल्म बनाने का अवसर मिला।
बहरहाल अब सवाल यह उठता है कि क्या गुप्तचर विभाग में कुछ घुसपैठ हो गई है? आज तो लगता है कि क्या हर मुकाम पर घुसपैठ हो रही है? लेकिन इस सारे झमेले से कोई रास्ता बस निकल आएगा। यह तय है कि वह रास्ता राजपथ नहीं है। वह एक पगडंडी है, जो फासले को कम करती है।
Next Story