सम्पादकीय

एमरॉल्ड कोर्ट गिराने का ऐतिहासिक फैसला : खून के आंसू रुलाएं हैं बिल्डर-अथॉरिटी नेक्सस ने फ्लैट बायर्स को

Gulabi
31 Aug 2021 1:39 PM GMT
एमरॉल्ड कोर्ट गिराने का ऐतिहासिक फैसला : खून के आंसू रुलाएं हैं बिल्डर-अथॉरिटी नेक्सस ने फ्लैट बायर्स को
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सुप्रीम कोर्ट ने नोएडा में दो 40 मंजिला टावरों को गिराने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर मुहर लगा दी है

संयम श्रीवास्तव।

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने नोएडा में दो 40 मंजिला टावरों को गिराने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर मुहर लगा दी है जिसके बाद अब इन दोनों इमारतों को गिराया जाना तय है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा Emarald Court सोसाइटी में दो टावर नियम के उल्लंघन करके बनाए गए. इन टावर में 950 फ्लैट है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा की जब नक्शा पास हुआ था तब ये दोनों टावर अप्रूव नहीं हुए थे. बाद में नियम का उल्लंघन करके ये टावर बनाए गए थे. दरअसल सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला बिल्डर-अथॉरिटी नेक्सस के खिलाफ दिया ऐतिहासिक फैसला है. यह फैसला बहुत से फैसलों के लिए नजीर साबित हो सकता है. कोर्ट ने इस महान फैसले की सुनवाई के दौरान नोएडा अथॉरिटी पर एक ऐसी टिप्पणी की थी जो किसी शख्स या संस्था के लिए शर्मिंदगी की इंतहां हो सकती है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था अथॉरिटी के मुंह-आंख-कान यहां तक कि चेहरे से भी भ्रष्टाचार टपकता है.


सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी लोगों की दुखती रग पर एक मलहम की तरह है. दरअसल नोएडा में लाखों ऐसे फ्लैट बायर्स हैं जिनके साथ बिल्डर ने दगा किया है. बहुत से ऐसे लोग हैं जिन्हें 12 से 13 साल हो गए पर फ्लैट नहीं मिला है. कुछ ऐसे लोग हैं जिन्हें फ्लैट मिल गया पर उन्हें आधी-अधूरी सुविधाएं ही मिली हैं. इस तरह की कम से कम 1 दर्जन ऐसी समस्याएं हैं जिनमें बिल्डर और अथॉरिटी अफसरों की मिलीभगत के चलते लोग अपनी जीवन भर की कमाई को गंवा बैठे हैं. सुप्रीम कोर्ट के इस टिप्पणी के बाद लोगों को उम्मीद जगी है बिल्डरों का साथ देने वालों अफसरों पर जरूर एक्शन होगा.
1- हर सोसायटी में बिल्डर-अथॉारिटी का खेल चल रहा है
सुपरटेक एमरॉल्ड कोर्ट में पार्क की जमीन पर एक और टावर खड़ा करने में बिल्डर फंस गया. पर शहर की तमाम सोसायटी में इस तरह का खेल चल रहा है. बिल्डर येन केन प्रकाणेन फ्लैट बायर्स के असोसिएशन से अपने गलत काम के लिए मंजूरी ले लेता है. करीब 90 परसेंट सोसायटी में टावर या शॉपिंग ऑर्किड इसी तरह बनाए गए हैं , जो लीगल नहीं है. पर बिल्डर और अथॉरिटी के नेक्सस के चलते सब वैध हो चुका है. और स्थानीय रेजिडेंट्स में लंबी कानूनी लड़ाई लड़ने की हिम्मत नहीं है. दरअसल सोसायटी के रेजिडेंट्स को कानूनी लड़ाई में तिहरी मार पड़ती है. पहला बिल्डर जरूर मूलभूत काम से हाथ रोक लेता है. दूसरे सोसायटी का नाम बदनाम होने के चलते फ्लैट की वैल्यू (मार्केट रेट) गिर जाती है. तीसरे लंबी लड़ाई के लिए अपने घर से पैसे भी लगाने पड़ते हैं. इसलिए बहुत सी सोसायटी के लोग थोड़ी-बहुत लड़ाई के बाद अपनी किस्मत मानकर समझौता कर लेते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने भी मंगलवार को एमरॉल्ड कोर्ट के 2 टावर गिराने का फैसला सुनाते हुए कहा कि डिवेलपर्स और शहरी नियोजन अधिकारियों की मिलीभगत के कारण शहरी क्षेत्रों में अनधिकृत निर्माण की संख्या में भारी वृद्धि हुई है और इसे सख्ती से खत्म किया जाना चाहिए.

2-हर बिल्डर सोसायटी मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रही है
नोएडा की कोई पॉश हाईराइज सोसायटी हो या कोई साधारण दर्जे की सोसायटी मूलभूत जनसुविधाओं के लिए सभी परेशान हैं. कई जगह तो बिल्डर मेंटेनेंस का काम स्थानीय असोसिएशन को ट्रांसफर करने को राजी नहीं होता है. कई जगहों पर स्थानीय निवासियों की असोसिएशंस बन गईं पर उन्हें बायर्स से लिया गया आईएफएमएस चार्ज नहीं दिया गया. परिणाम होता है कि रेजिडेंट्स हर महीन बिजली बिल भी चुकाते हैं और लिफ्ट वगैरह के लिए हर साल अलग से कुछ रकम चुकाते हैं. बिल्डर्स-अथॉरिटी के नेक्सस में फ्लैट बायर्स एक तरह का बंधुआ किरायेदार बनकर रह जाता है. जिसे हर कदम पर बस पैसे देते रहना है. दर्जनों सोसायटीज में पजेशन तो मिल गया पर जनरेटर पर बिजली की सप्लाई होती है. कई सोसाइटी में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट नहीं बने हैं. अवैध रूप से गंदा पानी शहर के नालों में डाली जाती है जिसमें लाखों का वारा न्यारा होता है. बिजली के रेट और मेंटेनेस चार्ज को लेकर आए दिन नोएडा के रेजिडेंट्स धरना प्रदर्शन करते रहते हैं.

3- नोएडा में हजारों फ्लैट्स की रजिस्ट्री फंसने के लिए भी जिम्मेदार है ये नेक्सस
करोड़ों के फ्लैट लोगों ने खरीद लिए पर अथॉरिटी की लापरवाही कहें या बिल्डर से मिलीभगत हजारों लोग रजिस्ट्री के लिए मारे-मारे फिर रहे हैं. लोटस जिंग बायर्स असोसिएशन के अध्यक्ष सुनीलकांत शर्मा कहते हैं कि अथॉरिटी के काम करने की शैली देखिए. बिल्डरों को जमीन आवंटित कर दी सोसायटी बनाने के लिए पर उनसे दुबारा एक्वायर ही नहीं की. जब किसान अपना मुआवजा मांगने के लिए कोर्ट पहुंचे तो उन्हें याद आया कि अभी तो बिल्डर से जमीन ही एक्वायर ही नहीं की. जमीन एक्वायर करने का प्रॉसेस भी करीब 3 साल तक लग जाता है. बहुत जगहों पर रजिस्ट्री न होने का यह भी एक कारण है. बहुत सी जगहों पर बिल्डर ने अथॉरिटी का बकाया 10 से 15 सालों से नहीं चुकाया. इसलिए रजिस्ट्री नहीं हो रही है. इस बीच बिल्डर के एक प्रोजेक्ट से 10 प्रोजेक्ट हो गए पर अथॉरिटी का बकाया नहीं चुकाया. एक आम आदमी ने अगर अथॉरिटी से फ्लैट खरीदा और उसका समय से भुगतान नहीं किया तो लीज रेंट पर ब्याज, किसान को कंपेसेशन देने वाली रकम पर ब्याज, मूल धन पर ब्याज और ब्याज पर ब्याज भी आवंटी से अथॉरिटी वसूली कर लेती है. पर यही मामला बिल्डर का हो तो उसे साल दर साल रिलेक्सेशन मिलता रहता है.

4-जेपी और आम्रपाली ग्रुप के करीब 60 हजार बायर्स के लिए घर बन गया हॉरर स्टोरी
जेपी के करीब 22 हजार प्लैट्स बायर्स और आम्रपाली के करीब 60 हजार फ्लैट्स बायर्स के घर एक दुस्वप्न बन गया. इन बिल्डरों ने बायर्स को ही नहीं सरकार को भी चूना लगाया है. अथॉरिटी से औने पौने भाव पर जमीन ले लिया. बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी की सरकारों ने बिल्डर के लिए ऐसी नीतियां बनाईं गईं कि बहुत मामूली रकम में उन्हें सोसाइटी बनाने के लिए जमीन आवंटित ही नहीं की गई बल्कि केवल 10 परसेंट भुगतान ही करवाया गया. शेष रकम किश्तों में देने की छूट दी गई. इस तरह बिल्डरों को जमीन थाली में परोस कर दी गई. यमुना एक्सप्रेस वे बनाने की एवज में बिल्डर को एक्सप्रेस वे किनारे नोएडा से लेकर आगरा तक जमीन आवंटित की गई. बिल्डरों ने अथॉरिटी के पैसे लौटाने के बजाय अपनी दूसरे धंधों में पैसा लगाते रहे. जाहिर ये सब काम बिना दोनों के नेक्सस के संभव नहीं था. सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के चलते आम्रपाली के बायर्स को एक उम्मीद जगी है कि उनका फ्लैट मिल जाएगा पर जेपी ग्रुप के फ्लैट बायर्स कोर्ट और इनसॉल्वेंसी में अब तक फंसे हुए हैं.

5- खुद को दिवालिया घोषित करके दूसरे नाम से मार्केट में आ जाते हैं बिल्डर
नोएडा में ऐसे कई बिल्डर हैं जो अथॉरिटी और बायर्स से बचने के लिए खुद को दिवालिया घोषित करवा चुके हैं. इसके लिए बिल्डरों ने कुछ बायर्स से मिलीभगत करके मामले को इनसॉल्वेंसी में पहुंचा दिया. अब करोड़ों का बकाया के भुगतान के बिना अथॉरिटी उन सोसइटी को एनओसी नहीं देती. बायर्स के सामने संकट है कि बिल्डर तो दिवालिया हो गया अब वह कई सौ करोड़ का बकाया कहां से चुकाएं. प्रशासन को अथॉरिटी को पता है कि ऐसे कौन लोग हैं. अगर बिल्डर एक प्रोजेक्ट को पूरा नहीं कर पाता है तो उसे दूसरे प्रोजेक्ट कैसे मिल गये? अगर इस तरह का व्यवहारिक रूल अथॉरिटी ने बनाया होता कि जो बिल्डर अपने पुराने प्रोजेक्ट को पूरा नहीं कर पाएगा उसे दूसरे प्रोजेक्ट नहीं मिलेंगे तो आज हजारों लोग अपने फ्लैट्स के लिए नहीं भटक रहे होते.

6-किसकी परमिशन पर ग्रीन बेल्ट में बन रहा शहर का सबसे बड़ा मॉल
शहर के एक खास जगह पर मेट्रो रूट के बगल में एक बहुत बड़ा मॉल बनाया जा रहा है. जिस जगह पर मॉल बन रहा है वहां कभी ग्रीन बेल्ट हुआ करता था. ग्रीन बेल्ट के पास कई बिल्डरों की सोसायटी बनीं हैं. जिन लोगों ने यहां फ्लैट खरीदा होगा उन्होंने ये सोचा होगा कि घर के सामने हरियाली और शुद्ध हवा मिलेगी. पर ऐसा हुआ नहीं. पिछली सरकार में ही उस ग्रीन बेल्ट की जगह पर शहर का सबसे बड़ा मॉल बनना शुरू हुआ. अब सवाल उठता है कि बिल्डर यही कर्म करता है तो गैरकानूनी है पर अथॉरिटी जब ऐसे काम करे तो हम क्या कर सकते हैं.
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