सम्पादकीय

उसके भरे हुए कान

Rani Sahu
3 July 2022 7:07 PM GMT
उसके भरे हुए कान
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वह अपने कानों से परेशान है। पहले वह जितना सुनता था, उतना सुनना चाहता भी था

वह अपने कानों से परेशान है। पहले वह जितना सुनता था, उतना सुनना चाहता भी था। अब उसे कहीं अधिक सुनना पड़ रहा है। देश के शब्द -देश की ध्वनियां उसे भीतर तक चीर रही हैं। उसे पकड़-पकड़ कर या कभी कान पकड़ कर सुनाया जा रहा है। वह हैरान इसलिए भी है कि उसे सुना कर यह अपेक्षा की जा रही ही कि जो उसने सुना है, उससे कई गुणा ज्यादा वह भी सुनाए। लोग इतना सुन चुके हैं कि अब वे सुनी-सुनाई के बजाय यह तय कर चुके हैं कि किससे सुनने कर साधुवाद दें और किसे नकार दें। दरअसल अब कान व नाक के भीतर फर्क बढ़ गया है। कई बार नाक के लिए सुन लेते हैं, तो कई बार नाक के लिए ही नहीं सुनते। उसने भी तय कर लिया कि नाक की हिफाजत का काम कान को दे दे, मगर इससे उसकी नाक छोटी व कान बड़े हो रहे हैं। देखते ही देखते उसके कान इतन बड़े हो गए हैं कि कोई अपना मुंह डालकर उसे सुना दे। उसके कान अब ऐसी संपत्ति बन गए, जो बिक सकते हैं, बल्कि हर दिन कोई न कोई उसके कानों का उसी तरह सौदा करना चाहता है, जैसे मंडी में कोई सब्जी बिक रही हो। उसे अपने ही दिमाग पर तरस आता है, जिसका हर तर्क और ज्ञान बेकार साबित हो रहा है। न तो देश उसे दिमाग की वजह से जान रहा है और न ही देश को उसके ज्ञान की जरूरत है। वह अपने ही दिमाग के कारण बौना हो रहा है, इसलिए उसे अब फर्क नहीं पड़ता कि देश सोच क्यों नहीं रहा। वह केवल सुन सकता है, इसलिए उसके कान पूरी तरह भरे हुए रहते हैं। सस्ते राशन के गोदामों से कहीं ज्यादा उसके कानों में हर सूचना भर चुकी है। उसके कान ही उसका दिशा-निर्देश करते हैं।

मसलन अस्सी करोड़ भारतवासी मुफ्त में अनाज प्राप्त करते हैं, तो यह सूचना चौबीस घंटे उसके कान को सतर्क रखती है। वह सोते-जागते इतना सतर्क रहता है कि कहीं उसके कान की वजह से अस्सी करोड़ भूखे लोग कम न हो जाएं। वह कान में कुछ अमर संदेश बांध के रख लेता है। उसके नाक को भले ही पता न हो, वह कान की वजह से देश को विश्वगुरु की तरह सुनता है। वह अपने पंचायत प्रधान से देश के प्रधानमंत्री तक को सुनने में इतना माहिर हो गया है कि अब उनकी खामोशी को भी सुन लेता है। उसके आसपास चोरी, डकैती, या बलात्कार हो जाए, मगर वह अपने कान की वजह से बेहतर कानून व्यवस्था की पुख्ता सूचना प्राप्त कर लेता है। उसका कान बता देता है कि यदि प्रधानमंत्री कुछ नहीं सुना रहे हैं, तो इससे उसकी ही बेहतरी है। संसद खामोश रहे या देश के प्रधानमंत्री, यह उसके कान के लिए किया जा रहा है, वरना उसे देश की परिस्थिति व हकीकत जानने के लिए कान कटवाने पड़ जाते। कान का काम अब देश को खरा-खरा सुनना है, इसलिए कोई खरा-खरा नहीं बोल रहा। देश के नेता, अभिनेता या मीडिया के प्रस्तोता जो सुना रहे हैं, वह दरअसल हमारे कानों की खुशहाली के लिए ही तो है। कान में बैठा सुखद एहसास अब देश को कुछ कहने या सोचने का अवसर क्यों दे। इसलिए वह भी अपने कानों की वजह से देश और समाज होता जा रहा है। सुनकर बहरा होना और अक्सर बहरे होकर सुनते रहने से वह राष्ट्र के लिए बड़ा योगदान कर रहा है। उसके कान पूरी तरह भरे हुए हैं, फिर भी खामोश जुबान लिए वह अपने दिमाग पर कोई बोझ नहीं डाल रहा। इसलिए अब देश और समाज के पास भी सिर्फ कान ही रह गए। बहुत लंबे कान जो न जाने कब तक भरते रहेंगे।
निर्मल असो
स्वतंत्र लेखक

सोर्स- divyahimachal


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