सम्पादकीय

Hindu Minority : भारत में ऐसे क्षेत्रों की संख्या बढ़ रही है जहां हिंदुओं की आबादी हो रही है कम

Gulabi Jagat
10 April 2022 4:28 PM GMT
Hindu Minority : भारत में ऐसे क्षेत्रों की संख्या बढ़ रही है जहां हिंदुओं की आबादी हो रही है कम
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सर्वोच्च न्यायालय में देश के नौ राज्यों में हिंदुओं को अल्पसंख्यक घोषित करने की गुहार लगाई गई है
हरेन्द्र प्रताप। सर्वोच्च न्यायालय में देश के नौ राज्यों में हिंदुओं को अल्पसंख्यक घोषित करने की गुहार लगाई गई है। यह मांग की गई है कि राज्य स्तर पर अल्पसंख्यकों की पहचान के लिए दिशानिर्देश बनाने का निर्देश दिया जाए। केंद्र सरकार की ओर से दाखिल हलफनामे में कहा गया है कि राज्य सरकारें राज्य की सीमा में धार्मिक और भाषाई आधार पर वैसे ही अल्पसंख्यक समुदाय घोषित कर सकती हैैं, जैसे कर्नाटक ने उर्दू, तेलुगु, तमिल, मलयालम, हिंदी, कोंकणी, मराठी और गुजराती भाषाओं को अपनी सीमा में अल्पसंख्यक भाषा अधिसूचित किया है तथा महाराष्ट्र ने यहूदियों को।
भारत के संविधान में अल्पसंख्यक कौन होगा, इसकी व्याख्या नहीं की गई थी। सर्वप्रथम केंद्र सरकार ने अल्पसंख्यकों के लिए राष्ट्रीय आयोग अधिनियम, 1992 बनाया। उसने अक्टूबर 1993 में मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध और पारसी को अल्पसंख्यक घोषित किया। वर्ष 2014 में इसमें जैन को भी जोड़ा गया। प्रत्येक 10 वर्ष पर होने वाली जनगणना में वर्ष 1961 से हिंदू, मुसलमान, ईसाई, सिख, बौद्ध और जैन की गणना प्रकाशित होती आ रही है। वर्ष 1951 की जनगणना में पारसी और यहूदी की भी जनगणना हुई थी, पर वर्ष 1961 के बाद उन्हें 'अन्यÓ के कालम में डाल दिया गया। नौ राज्यों में हिंदुओं को अल्पसंख्यक घोषित करने के लिए वर्ष 2011 की जनगणना को आधार बनाया गया है, जिसके अनुसार जम्मू-कश्मीर, लद्दाख, अरुणाचल, नगालैैंड, मणिपुर, मिजोरम, मेघालय और लक्षद्वीप में कुल जनसंख्या में हिंदुओं का प्रतिशत 50 से कम है। लद्दाख में हिंदू मात्र 12.11 प्रतिशत ही हैैं। संविधान के अनुच्छेद-29 में अल्पसंख्यक वर्गों के हितों के संरक्षण की बात कही गई है, जिसके अनुसार, 'भारत के राज्यक्षेत्र या उसके किसी भाग के निवासी या नागरिकों के किसी विभाग को अपनी भाषा, लिपि या संस्कृति को बनाए रखने का अधिकार होगा।' वहीं संविधान के अनुच्छेद-30 में कहा गया है कि 'अल्पसंख्यक वर्ग को अपनी संस्थाओं की स्थापना और प्रशासन करने का अधिकार होगा।'
अगर राज्य और जिला स्तर पर अल्पसंख्यक की पहचान की जाए तो वर्ष 2011 की जनगणना में देश के कुल 640 जिलों में से 110 जिले ऐसे हैं, जहां कुल जनसंख्या में हिंदू जनसंख्या का प्रतिशत 50 प्रतिशत से कम है। यानी वे अल्पसंख्यक हैैं। उपरोक्त नौ राज्यों के अलावा हिमाचल प्रदेश के लाहुल स्पीति, हरियाणा के मेवात, उत्तर प्रदेश के रामपुर, बिहार के किशनगंज, सिक्किम के उत्तरी सिक्किम, असम के धुबरी, ग्वालपाड़ा, बारपेटा, मोरीगांव, नवगांव, करीमगंज, हैलाकांडी, बोंगाईगांव एवं दरांग, बंगाल के मालदा, मुर्शिदाबाद एवं उत्तर दिनाजपुर, झारखंड के पाकुड़, लोहरदगा, खूंटी, गुमला, सिमडेगा एवं पश्चिमी सिंहभूम, तमिलनाडु के कन्याकुमारी और केरल के वायनाड, मल्लापुरम, एर्नाकुलम, इड्डुकी एवं कोट्टायम जिलों में हिंदुओं की आबादी 50 प्रतिशत से कम है। ऐसे में समय की मांग है कि अल्पसंख्यक समुदाय की पहचान राज्य या जिला नहीं, बल्कि प्रखंड/सबडिविजन और सर्किल स्तर पर की जाए, क्योंकि देश के अनेक ऐसे जिले हैैं, जहां जिला स्तर पर भले ही हिंदू बहुमत में हैं, पर इससे नीचे बड़े भूभाग में वे अल्पमत में हैैं और असुरक्षित हैैं। उदाहरण के रूप में उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद में छह सबडिविजन हैैं, लेकिन छह में से चार-ठाकुरद्वारा, मुरादाबाद, संभल और बिलारी में वे अल्पमत में हैं। बंगाल के उत्तर 24 परगना में नौ, दक्षिण 24 परगना में सात प्रखंड और असम के कछार जिला के पांच सर्किल में से दौ में हिंदू अल्पमत में हैं। जिन राज्यों/जिलों/सबडिविजन में मुस्लिम और ईसाई बहुमत में हैैं, वहां से हिंदू, सिख, बौद्ध और जैन का पलायन हो रहा है, क्योंकि वहां वे अपने को असुरक्षित महसूस कर रहे हैैं।
संविधान के अनुच्छेद-29 एवं 30 में भाषा, लिपि और संस्कृति के संरक्षण के लिए शिक्षण संस्थान के संचालन की बात कही गई थी, पर बाद में केंद्र और राज्य सरकारें तुष्टीकरण के तहत अल्पसंख्यक मंत्रालय और अल्पसंख्यक आयोग गठित करती चली गईं। तुष्टीकरण का वीभत्स रूप तब सामने आया जब पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने सार्वजनिक रूप से घोषित किया कि संसाधनों पर पहला अधिकार 'अल्पसंख्यकों' का है। सर्वोच्च न्यायालय में दायर केंद्र सरकार के हलफनामे में भी राज्य सरकारों को 'भाषाई' अल्पसंख्यक घोषित करने की बात कही गई है, जबकि अल्पसंख्यक नाम लेकर पंथिक/धार्मिक अल्पसंख्यक की बात की जाती है। देश में अल्पसंख्यक का अर्थ मुस्लिम और ईसाई से लगाया जाता है। सवाल है कि क्या मुसलमानों या ईसाइयों की कोई अपनी भाषा या लिपि है, जिसके संरक्षण की आवश्यकता है? कई बार उर्दू को मुसलमानों से जोड़कर देखा जाता है, जो कि पूर्णत: गलत है। मुस्लिम बहुल्य कश्मीर में मुस्लिम आबादी 68.31 प्रतिशत है, पर उर्दू को अपनी मातृभाषा लिखाने वाले मात्र 0.23 प्रतिशत ही हैैं। असम में मुस्लिम जनसंख्या 34.22 प्रतिशत है, पर जिन्होंने अपनी मातृभाषा उर्दू लिखवाई है, उनका प्रतिशत मात्र 0.06 है। बंगाल में भी मुस्लिम आबादी 27.01 प्रतिशत है, पर मातृभाषा उर्दू लिखवाने वालों की संख्या मात्र 6.74 प्रतिशत ही है। यानी संविधान के अनुच्छेद-29 एवं 30 में जिस भाषा और लिपि को अल्पसंख्यक मानकर संरक्षण देने की बात है, उसमें मुसलमान नहीं आते, क्योंकि वे जिस राज्य में रहते हैैं वहां के लोगों की मातृभाषा को ही अपनी मातृभाषा मानते हैैं।
कुल मिलाकर देश में कौन-कहां अल्पसंख्यक है? इसकी घोषणा और उनकी सुरक्षा तथा विकास का विचार सतही स्तर पर न करके सूक्ष्म स्तर पर होना चाहिए। साथ ही संविधान के अनुच्छेद 29 एवं 30 की आड़ लेकर शिक्षा के नाम पर जो विषवमन और धंधा किया जा रहा है, उस पर भी कड़ाई से रोक लगाई जाना चाहिए।
(लेखक बिहार विधान परिषद के पूर्व सदस्य हैैं)
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