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सम्पादकीय
कुतुब मीनार के हिन्दू प्रतीक : भगवान विश्वकर्मा के आशीर्वाद से सम्पन्न हुआ निर्माण
Gulabi Jagat
20 April 2022 11:53 AM GMT
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कुतुब मीनार के हिन्दू प्रतीक
विवेक शुक्ला |
कुतुब मीनार (Qutub Minar) खबरों में है. इसको लेकर हिन्दू-मुस्लिम (Hindu Muslim Controversy) भी हो रहा है. मशहूर पुरातत्वविद केके मुहम्मद ने कहा कि कुतुब मीनार कैंपस में बनी कुव्वत उल इस्लाम मस्जिद, 27 मंदिरों को तोड़कर बनी थी. यह सच है. इसे दिल्ली की पहली मस्जिद माना जाता है. बेशक, कुतुब मीनार परिसर में हिन्दू मंदिरों के चिह्न (Signs of Hindu Temples in the Qutub Minar Complex) मिलते हैं और इन्हें छुपाने की या ढकने की कोई कोशिश भी नहीं की गई है. परिसर में ही क़ुव्वतुल इस्लाम मस्जिद के बीचों-बीच चंद्रगुप्त का लौह स्तंभ खड़ा है, जिस पर प्रसिद्ध महरौली प्रशस्ति गुप्त कालीन ब्राह्मी लिपि में उत्कीर्ण है. मस्जिद के खंभों पर अनेक देवी देवता यक्ष यक्षिणियां उत्कीर्ण हैं.
विश्वकर्मा का भी आशीर्वाद कुतुब मीनार को
पर बेहतर होता कि आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (ASI) के पूर्व महानिदेशक केके मुहम्मद यह भी बता देते कि कुतुब मीनार के निर्माण में विश्वकर्मा का भी आशीर्वाद रहा है. यह तथ्य इतिहास के पन्नों में दर्ज है. हुआ यह कि सन 1369 में बिजली गिरने के कारण कुतुब मीनार की ऊपरी मंजिलों के कुछ हिस्से क्षतिग्रस्त हो गये थे. तब दिल्ली पर फिरोजशाह तुगलक का राज था. उन्होंने कुतुब मीनार के क्षति ग्रस्त भागों की मरम्मत के आदेश दिए. उनके आदेश के बाद कुतुब मीनार की पांचवीं मंजिल नए सिरे से बनाई गई. उसमें संगमरमर का भरपूर इस्तेमाल भी किया गया. इतिहासकार डॉ. स्वपना लिड्डल कहती हैं कि कुतुब मीनार के मरम्मत के काम को अंजाम देने वाले आर्किटेक्ट, ठेकेदारों और मजदूरों ने निर्माण स्थल पर अपने नाम जैसे नाना, साल्हा, लोला लक्षमना भी लिख दिए.
उन्होंने यह भी लिख दिया कि उनका सारा काम विश्वकर्मा के आशीर्वाद से संपन्न हुआ. यह सब अब भी लिखा हुआ है. एएसआई की एक रिपोर्ट में संस्कृत में उत्कीर्ण ठेकेदारों तथा मजदूरों के उदगार लिखे मिलते हैं. डॉ. स्वपना लिड्डल यह बताती हैं कि मस्जिद के निर्माण के लिए हिन्दू-जैन मंदिर तोड़ गए थे. उसी सामग्री से मस्जिद बनी. पर महरौली में स्थित प्राचीन योगमाया मंदिर को किसी भी तरह से नुकसान नहीं पहुंचाया गया था. योगमाया मंदिर में अब भी रोज सैकड़ों भक्त पहुंचते हैं.
गांधी जी कब, क्यों गए थे कुतुब मीनार
महात्मा गांधी 13 अप्रैल 1915 को कुतुब मीनार को देखने पहुंचे थे. वह उनकी पहली दिल्ली यात्रा थी. उनके साथ कस्तूरबा गांधी, कांग्रेस के नेता हकीम अजमल खान और कुछ अन्य लोग भी थे. कह सकते हैं कि उस यात्रा के समय वे दिल्ली दर्शन भी कर रहे थे. कहते हैं कि हकीम साहब गांधी जी और कस्तूरबा गांधी को टांगे पर अपने बल्लीमरान के शरीफ मंजिल घर से कुतुब मीनर लेकर पहुंचे थे. उस यात्रा के समय गांधी जी सेंट स्टीफंस कॉलेज में ठहरे थे. तब सेंट स्टीफंस क़ॉलेज कश्मीरी गेट पर था. वे सब लोग कश्मीरी गेट से लाल किला, दिल्ली गेट, मथुरा रोड होते हुए कुतुब मीनार में पहुंचे होंगे. तब तक इन्हें रास्ते में कुछ गांव ही मिले होंगे. बाकी तो उस समय तक राजधानी के उस हिस्से में कुछ भी नहीं था.
गांधी जी 1915 के बाद 27 जनवरी, 1948 को कुतुब मीनार से सटी क़ुतुबुद्दीन बख़्तियार काकी (जन्म 1173- मृत्यु 1235) की दरगाह में सुबह आए थे. तब इस दरगाह के कुछ हिस्सों को शरारती लोगों ने तोड़ा था. तब दिल्ली और देश भर में दंगे भड़के हुए थे. वह देश के विभाजन के बाद का दौऱ था. गांधी जी दरगाह में काम करने वाले लोगों और स्थानीय मुसलमानों से मिले थे. उन्हें भरोसा दिया था कि दरगाह के क्षतिग्रस्त भाग को जल्दी ही बनवा दिया जाएगा. अफसोस कि उनके वहां जाने के तीन दिनों के बाद उनकी हत्या कर दी गई थी. बता दें कि कुतुबुद्दीन ऐबक तथा इल्तुतमिश जैसे दिल्ली के शासकों का भी फकीरों को लेकर बहुत अकीदा था. उन्हें ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती का अध्यात्मिक उत्तराधिकारी भी माना जाता है.
कुतुब मीनार में दिल का भंवर करे पुकार…
कितने लोगों को पता है कि कुतुब मीनार में देव आनंद ने अपनी यादगार फिल्म तेरे घर के सामने का अमर गीत दिल का भंवर करे पुकार… का कुछ हिस्सा फिल्माया था. देव साहब 1963 में रीलिज हुई इस फिल्म की शूटिंग शुरू करने से पहले कुतुब मीनार देखने आए थे. तब उन्होंने नहीं सोचा था कि वे यहां पर कभी कोई गीत फिल्माएंगे. मोहम्मद ऱफी साहब के गाए इस लाजवाब गीत की शूटिंग करने में देवसाहब की पेशानी से पसीने छूट गए थे.
दिल का भंवर करे पुकार…'
जब देव साहब अपनी यूनिट के साथ कुतुब मीनार पहुंचे तो देखा कि कुतुब मीनार की सीढ़ियों में शूटिंग करना लगभग नामुकिन है. कारण यह था कि तब कैमरे और अन्य उपकरण काफी बड़े होते थे. इसलिए देव साहब-नूतन छोटे से स्पेस में गाने की शूटिंग नहीं कर पा रहे थे. आखिर में गाने के बाहरी शॉट तो कुतुब मीनार के ले लिए गए पर सीढ़ियों के शॉट मुंबई के एक स्टुडियों में ही फिल्माए गए थे. बहरहाल, इस गीत का कोई तोड़ नहीं है.
कौन आता इल्तुतमिश के मकबरे में
आप कुतुब मीनार के कैंपस में घूमें तो आपको अचानक से एक मकबरा मिलेगा. उसके पास की दिवार पर लिखा है मकबरा शम्सुद्दीन इल्तुतमिश. अगर आप इतिहास के विद्यार्थी नहीं हैं, तो मुमकिन है कि आप उस मकबरे के पास से गुजर जाएं. वहा रुके ही नहीं. अगर आप इतिहास के विद्यार्थी हैं तब तो आप एक कदम भी आगे नहीं जा सकेंगे. दरअसल, इल्तुतमिश दिल्ली सल्तनत का एक प्रमुख शासक था.
तुर्की-राज्य संस्थापक कुतुबुद्दीन ऐबक के बाद वह उन शासकों में से था जिससे दिल्ली सल्तनत की नींव मजबूत हुई. वह ऐबक का दामाद भी था. उसने 1211 ईसवी से लेकर 1236 ईसवी तक शासन किया. उसके मकबरे के पास कुछ पल खड़े होकर इंसान के मोह-माया को त्यागने का मन करता है. इतने शक्तिशाली शासक के मकबरे को कोई शायद ही खासतौर पर देखने आता हो. जिसने दिल्ली पर 25 सालों तक राज किया उसको दिल्ली भूल चुकी है. इल्तुतमिशका मक़बरा एक कमरे के भीतर बना हुआ है.
कुतुब मीनार घूमने आए कुछ नौजवानों से हमने पूछा कि क्या उन्हें इल्तुमिश की शख्सिसत के बारे में कुछ जानकारी है? उनका जवाब था, होगा कोई. हम नहीं जानते. इल्तुतमिश ने कुतुबुद्दीन ऐबक की तरफ से शुरू किए कुतुबमीनार के निर्माण कार्य को पूरा करवाया था. क़ुतुब मीनार को ईंट से बनी विश्व की सबसे ऊंची मीनार मानी जाती है. इसकी ऊंचाई 72.5 मीटर (237.86 फीट) और व्यास 14.3 मीटर है, जो ऊपर जाकर शिखर पर 2.75 मीटर हो जाता है. इसमें 379 सीढ़ियां हैं.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)
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