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जनता से रिश्ता वेबडेस्क। नवरात्र के पहले दिन कमला हैरिस की एक रिश्तेदार ने उन्हें दुर्गा के रूप में चित्रित करते हुए ट्वीट किया था। हैरिस डेमोक्रेटिक पार्टी की तरफ से उप-राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार हैं। डेमोक्रेटिक पार्टी की तरफ से ही राष्ट्रपति पद की चुनावी जंग लड़ रहे जो बिडेन को उस ट्वीट में गरजते हुए शेर के रूप में पेश किया गया था, और राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप उसमें महिषासुर के रूप में दिखाए गए थे, जो उन दोनों के चरणों में लेटे हुए थे और त्रिशूल उनकी गरदन पर था।
इस ट्वीट को भले ही बिना किसी स्पष्टीकरण के हटा लिया गया, लेकिन अमेरिका की चुनावी राजनीति में आज से पहले इस कदर हिंदू कार्ड कभी नहीं खेला गया था। एक दिन पहले ही जो बिडेन और कमला हैरिस ने नवरात्र की शुभकामनाएं देते हुए ट्वीट किए थे, और इससे पूर्व गणेश चतुर्थी और महाल्या पर भी उन दोनों ने ट्वीट के माध्यम से लोगों को शुभकामनाएं दी थीं। इन तमाम शुभकामना संदेशों का सीधा अर्थ यही है कि अब तक इस देश के राजनेता बेशक दिवाली से ही परिचित रहे हैं, लेकिन अब यह मुल्क इस रवायत से ऊपर उठ रहा है। उदाहरण के लिए, जो बिडेन के चुनावी अभियान पर गौर कीजिए। उनके अभियान को समर्थकों के उस समूह और प्रतिनिधियों ने आगे बढ़ाया है, जो खुद को हिंदू-अमेरिकी कहते हैं। इलिनोइस राज्य का दूसरी बार कांग्रेस (अमेरिकी संसद) में प्रतिनिधित्व कर रहे राजा कृष्णमूर्ति ने तो सितंबर में अपनी दावेदारी पेश करते हुए कहा था कि अमेरिका में 20 लाख हिंदू हैं, जो उन राज्यों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे, जहां बेहद कांटे की टक्कर है। यही हिंदू नतीजे तय करेंगे। बेशक ऐसा हो सकता है, लेकिन सभी वोट देंगे, यह शायद ही संभव है। ऐसा इसलिए, क्योंकि अनुमानत: अमेरिका में 19 लाख भारतवंशियों को मताधिकार हासिल है, पर उनमें से सभी हिंदू नहीं हैं।
हालांकि, राष्ट्रीय स्तर के अमेरिकी राजनेताओं में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ही पहली बार हिंदू कार्ड खेला था। साल 2016 में बतौर राष्ट्रपति उम्मीदवार भारतीय मूल के अमेरिकियों को संबोधित करते हुए उन्होंने तब कहा था, 'हम हिंदुओं से प्यार करते हैं, हम भारत से भी मोहब्बत करते हैं... मैं हिंदुओं का बहुत बड़ा प्रशंसक हूं, और मैं भारत का भी बहुत बड़ा प्रशंसक हूं'। उन्होंने यह वादा किया था कि अगर वह चुनाव जीतते हैं, तो भारतीय और हिंदू समुदाय ह्वाइट हाउस के 'सच्चे दोस्त' होंगे। डोनाल्ड ट्रंप राष्ट्रपति तो बन गए, लेकिन अभी तक यह स्पष्ट नहीं हो सका है कि उनकी उस जीत में हिंदू कार्ड की वास्तव में कोई भूमिका थी या नहीं? लगभग 16 प्रतिशत भारतवंशियों ने (इनमें निश्चय ही हिंंदुओं की संख्या ज्यादा है, लेकिन सभी हिंदू नहीं हैं) एएपीआई के डाटा सर्वे (2016) में यह बताया था कि उन्होंने डोनाल्ड ट्रंप को अपना वोट दिया है। भारतीय मूल के अमेरिकियों में यह सर्वेक्षण मतदान के बाद किया गया था। इसी सर्वे में 77 फीसदी भारतवंशियों ने हिलेरी क्लिंटन का साथ दिया था। मगर, हिंदू कार्ड की शुरुआत हो चुकी थी।
कुछ भारतीय अमेरिकी ह्यूस्टन में 'हाउडी मोदी' रैली को वह दूसरी घटना मानते हैं, जिसमें हिंदू कार्ड खेला गया। हालांकि, राष्ट्रपति टं्रप के मुताबिक, यह आयोजन भारतीय-अमेरिकी मतदाताओं के हिंदुओं को लुभाने की कवायद नहीं थी, उन्होंने तो अपने संबोधन में एक बार भी हिंदू शब्द का उच्चारण तक नहीं किया था।
तीसरी और सबसे महत्वपूर्ण घटना, जो अनजाने ही हिंदू कार्ड से जुड़ गई, वह संभवत: जम्मू-कश्मीर की सांविधानिक स्थिति में बदलाव और नागरिकता (संशोधन) अधिनियम पर राष्ट्रपति ट्रंप की चुप्पी थी। अगर इस मसले पर ट्रंप की कोई प्रतिकूल टिप्पणी आती, तो वह कई हिंदू-अमेरिकियों को परेशान कर सकती थी, जो इस मुद्दे को भारत की संप्रभुता से जोड़कर देखते हैं। इन लोगों में वे भी थे, जिन्होंने जो बिडेन का समर्थन किया था और उनकी दावेदारी को आगे बढ़ाया था।
बहरहाल, इस समुदाय के कई लोगों का मानना है कि हिंदुओं के रूप में पहचान मिलना उनके लिए अच्छी बात है, जब तक कि यह दबदबा रखने वाला कारक बना रहता है। पता नहीं क्या असर होगा, लेकिन मगर अमेरिकी राजनीति में हिंदू कार्ड का खेला जाना भारत के लिए महत्व रखता है।