सम्पादकीय

हिन्द की चादर 'गुरु तेगबहादुर'

Subhi
23 April 2022 4:25 AM GMT
हिन्द की चादर गुरु तेगबहादुर
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प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने दिल्ली के ऐतिहासिक लालकिले के परिसर में सिखों के नौवें गुरु तेगबहादुर साहब का जन्म प्रकाशोत्सव मना कर साफ कर दिया है

आदित्य चोपड़ा; प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने दिल्ली के ऐतिहासिक लालकिले के परिसर में सिखों के नौवें गुरु तेगबहादुर साहब का जन्म प्रकाशोत्सव मना कर साफ कर दिया है कि हर भारतवासी को अपने अतीत के उन सुनहरों पृष्ठों को याद रखना चाहिए जिनसे भारत की सर्वग्राही और सहिष्णु संस्कृति की खुशबू आती है। गुरु तेगबहादुर भारत को 'हिन्द की चादर' इसीलिए कहा गया कि उन्होंने अत्याचार सहने वालों को निडर बनाया । वह इतिहास के ऐसे युग पुरुष हैं जिन्होंने 17वीं सदी में भी धर्म और मर्यादा की ध्वजा को ऊंचा रखते हुए सामान्य व्यक्ति के 'निजी गौरव और सम्मान' के लिए अपने प्राणों की आहुति एक बर्बर और आततायी शासक मुगल शहंशाह औरंगजेब की भारतीय संस्कृति को तबाह करने की नीतियों के खिलाफ दे दी थी। मगर भारत का सबसे बड़ा दुर्भाग्य यह रहा कि इतिहास की पुस्तकों में 'मुगलों को महान' बताया जाता रहा और उन्हें भारत को 'जोड़ने' वाला तक लिखा गया । अंग्रेज व भारत के कम्युनिस्ट इतिहासकारों ने मुगल साम्राज्य को इस प्रकार निरूपित करने का प्रयास किया जैसे इनका पुरखा 'बाबर' भारत में कोई खैरात बांटने आया था और भारतीयों को शासन करने की कला सिखाने आया था। इन इतिहासकारों ने स्वतन्त्र भारत में 'आईएएस' और 'आईपीएस' की परीक्षा तक के लिए विशेष अध्याय 'दि ग्रेट मुगल्स' आवश्यक कराया और इसकी आड़ में 'गंगा-जमुनी तहजीब' जुमला जड़ दिया। जबकि हकीकत यह है कि केवल 'अकबर' को छोड़ कर किसी भी मुगल बादशाह ने भारत के मूल निवासियों का केवल अपनी हुकूमत को मजबूत बनाने के लिए ही प्रयोग किया। भारत के लोगों को यह इतिहास पढ़ाया गया और उनकी रगों में यह भर दिया गया कि यहां के हिन्दू राजा आपस में लड़ते रहते थे जिसकी वजह से विदेशी मुस्लिम आक्रान्ता आराम से इस मुल्क के बादशाह बनते गये। बेशक इसमें सच्चाई है कि हिन्दू राजाओं में अपने साम्राज्य को लेकर वैमनस्य रहता था जो उस दौर की सामन्ती परंपरा की सच्चाई थी मगर एेसा केवल हिन्दू राजाओं में ही होता हो एेसा भी नहीं था। पूरे मध्य एशिया की विभिन्न सल्तनतों में सुल्तानों या बादशाहों के बीच ये रंजिशें चलती रहती थीं। इसके बावजूद दक्षिण भारत में विजयनगरम् जैसे विशाल साम्राज्य मौजूद थे परन्तु भारत के हर क्षेत्र की प्रजा बहुत सहनशील थी और उदारमना थी क्योंकि उनका धर्म उन्हें यही शिक्षा देता था। सनातन धर्म में ईश्वर को पाने के हजारों रास्ते थे औऱ यहां के लोगों के हजारों देवी-देवता थे। इनके बीच अनीश्वरवादी दर्शन की भी मनाही नहीं थी। मगर इस सबके बावजूद हिन्दुओं में जाति या वर्ण परपंरा घुन की तरह लगी हुई भी थी। अतः कुछ इतिहासकारों का यह मत भी है कि जाति प्रथा के चलते हिन्दू प्रजा स्वयं में बहुत विभाजित थी जिससे विदेशी मुस्लिम आक्रान्ताओं को खास मदद मिली। इसलिए यह तर्कपूर्ण है कि सिखों के दसवें गुरु गोविन्द सिंह जी महाराज ने औरंगजेब के अत्याचारों का जवाब देने के लिए ही खालसा पंथ चलाते हुए सभी जातियों के लोगों को योद्धा बनाया और उन्हें 'पंज प्यारे' का नाम दिया। अतः मुगल शासकों का महिमामंडन करते समय हमें यह ध्यान रखना होगा कि भारत के विकास में उनका क्या योगदान था? गौर से देखें तो मुगलों का सिर्फ इतना ही योगदान था कि उन्हें आक्रमणों के जरिये ऐसा मुल्क मिल गया था जिसकी धन-दौलत अपार थी और इसकी धरती गजब की जरखेज थी व दस्तकारी का लोहा पूरा विश्व मानता था और लोगों की वाणिज्य बुद्धि तीव्र थी जिसकी वजह से इस देश में विदेशी व्यापारियों की निगाह लगी रहती थी। मगर मुगल दौर आने के बाद जिस तरह भारत के लोगों की संस्कृति पर सिलसिलेवार हमले होने शुरू हुए और यहीं के लोगों को अपना धर्म बचाने के लिए मुसलमान शासकों को जजिया कर देना पड़ा उसे तीसरे मुगल बादशाह अकबर ने समाप्त करके अपनी हुकूमत को बगावतों से मुक्त करना चाहा और उसमें उसे सफलता भी मिली। जिसकी वजह से मुगल शासन भारत में स्थिर हुआ और पड़पोते औरंगजेब तक स्थिर बना रहा । मगर यह सोचना गलत होगा कि इस दौरान हिन्दू प्रजा पर कोई जुल्म नहीं हुआ। अकबर के बेटे जहांगीर के ही हुक्म से सिखों के गुरु अर्जुन देव महाराज काे शहीद किया गया। शाहजहां के शासन में नादान बालक वीर हकीकत राय को हिन्दू से मुसलमान बनाने के लिए घनघोर यातनाएं दी गईं और लाहौर के काजियों ने फतवे जारी किये। संपादकीय :बूस्टर डोज की जरूरतबोरिस जॉनसन की भारत यात्रासमान नागरिक आचार संहिता और मुसलमानदेश के नए सेनाध्यक्ष'बुलडोजर'ग्रेटर कैलाश शाखा ने मनाया वैशाखी मोहत्सव वरिष्ठ नागरिक केसरी क्लब में खुशिया ही खुशिया : किरण चोपड़ादरअसल हकीकत यह है कि भारत में इस दौर में धर्मान्तरण जारी रहा और हिन्दुओं को मुसलमान बना कर उनकी निष्ठाएं इसी धरती से उठवाने के प्रयास किये गये। औरंगजेब तो रोज सवा मन 'जनेऊ' जलाने के बाद अपने को सच्चा मुसलमान मनता था। उसने हिन्दुओं पर कहर ढहाने की सारी सीमाएं तोड़ डालीं और हिन्दू बहुल इलाकों में पीपल का पेड़ काटने तक को जायज करार दे दिया और मुस्लिम शरीया के मुताबिक भारतीय अवाम के 'फतावा आलमगिरी' तैयार किया जिसके तहत हिन्दू रियाया को ज्यादा से ज्यादा तंग करना ही सबाब का काम था। मगर आजादी के बाद हमने राजधानी दिल्ली में ही एक सड़क का नाम औरंगजेब रोड रख दिया। बदकिस्मती देखिये कि बिहार स्थित नालन्दा विश्वविद्यालय के दुनिया के सबसे बड़े पुस्तकालय को 13वीं सदी के शुरू में जलाने वाले मुश्लिम शासक बख्त्यार खिलजी के नाम पर हमने उसके करीब बने रेलवे स्टेशन को बख्तावरपुर ही स्वीकार कर लिया। क्या गजब की गंगा-जमुनी संस्कृति है जिसमें अपने ऊपर जुल्म ढहाने वालों की यादों का ही जश्न मनाया जाता है। अतः प्रधानमन्त्री श्री मोदी ने ठीक उसी अहाते में गुरु तेगबहादुर की 400वीं जन्म जयन्ती मना कर पूरे देश की गौरत को जिन्दा करने का काम किया है जहां गुरु जी का कत्ल बहुत बेदर्दी के साथ औरंगजेब ने किया था और उनके तीन साथियों की भी तड़पा-तड़पा कर हत्या की थी। भारत माता की जय।

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