सम्पादकीय

हक में अड़चन

Subhi
21 Jan 2022 3:35 AM GMT
हक में अड़चन
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राष्ट्रीय रक्षा अकादमी यानी एनडीए में जगह हासिल करने के लिए महिलाओं को लंबी और कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ी, तब जाकर उनके लिए भी अवसर उपलब्ध हुए। लेकिन ऐसा लगता है

राष्ट्रीय रक्षा अकादमी यानी एनडीए में जगह हासिल करने के लिए महिलाओं को लंबी और कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ी, तब जाकर उनके लिए भी अवसर उपलब्ध हुए। लेकिन ऐसा लगता है कि नियम के मुताबिक एनडीए में प्रवेश की व्यवस्था होने के बावजूद अलग-अलग वजहों से आज भी उनके सामने कई अड़चनें खड़ी की जा रही हैं। हालांकि यह ऐसा विषय है, जिसमें अदालती दखल के मुकाबले खुद सरकार को प्रगतिशील नजरिए का परिचय देते हुए महिलाओं को पुरुषों के बराबर हक देने के लिए पहल करनी चाहिए थी।

मगर हालत यह है कि अदालत में मामला साफ होने के बावजूद आज भी महिलाओं का रास्ता बाधित करने के बहाने तलाशे जा रहे हैं। सवाल है कि इस मसले पर अदालती प्रक्रिया के तहत महिलाओं के लिए अवसर उपलब्ध करने को लेकर स्पष्टता के बाद भी सरकार उस पर अमल करने से क्यों हिचक रही है! यह बेवजह नहीं है कि मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर सरकार से अपना रुख साफ करने को कहा है। अदालत ने केंद्र से पूछा है कि आखिर उसके आदेश के बावजूद वर्ष 2022 के लिए भी पिछले साल के बराबर एनडीए में महिला उम्मीदवारों के लिए उन्नीस सीटें ही क्यों सीमित की गर्इं!

गौरतलब है कि पिछले साल भी सरकार ने अवसंरचना की कमी की दलील देकर उन्नीस महिलाओं को ही प्रवेश दिया था। हालांकि तब यह उम्मीद की गई थी कि कम से कम अवसंरचना की स्थिति में सुधार होने के बाद महिलाओं के लिए सीटों में बढ़ोतरी की जाएगी। लेकिन अब 2022 के लिए भी सरकार ने फिर उतनी ही संख्या में दाखिले का प्रस्ताव रखा है।

सवाल है कि एक साल गुजरने के बावजूद अवसंरचना में कमी की हालत में सुधार के लिए सरकार ने क्या किया! क्या इसे अदालत के आदेश को लेकर भी सरकार के लापरवाह होने के तौर पर देखा जा सकता है? सरकार की नजर में अगर अब ऐसी कोई समस्या बड़ी अड़चन नहीं है, तब फिर वह किन वजहों से महिलाओं के लिए अवसरों में कटौती कर रही है? पिछले साल के आंकड़े परिस्थितिगत कारणों से एक तदर्थ उपाय मान लिए जा सकते हैं, लेकिन इस पर ठहराव को कैसे देखा जाएगा? इस पर अदालत ने उचित टिप्पणी की है कि एनडीए में महिलाओं के लिए महज उन्नीस सीट हमेशा के लिए नहीं होनी चाहिए।

यह अपने आप में विडंबना है कि जिस दौर में देश के लिए रक्षा एक संवेदनशील पहलू है, उसे लेकर सरकार ढांचागत सुविधाओं की कमी को किसी मामले में एक अहम कारण के रूप में पेश करती है। खासतौर पर महिलाओं का सैन्य सेवाओं में प्रवेश कोई नया सवाल नहीं रहा है। मगर पहले भी सरकार ने अन्य वजहों के साथ-साथ सह-शिक्षा को भी एक समस्या के रूप में पेश करने की कोशिश की थी।

इसके अलावा भी सरकार का इस मसले पर अब तक जो रुख रहा है, शायद उसी के मद्देनजर याचिका में कहा गया कि योग्य और इच्छुक महिला उम्मीदवारों को सिर्फ लैंगिक आधार पर राष्ट्रीय रक्षा अकादमी और नौसेना अकादमी परीक्षा में शामिल होने से बाहर करने के लिए प्रतिवादियों का कार्य, कानून के समक्ष समानता और कानून का समान संरक्षण के मौलिक अधिकार का यह उल्लंघन है। जाहिर है, लैंगिक समानता और महिलाओं को उनका अधिकार मुहैया कराने के लिए सरकार को इस मसले पर अपना रुख साफ करना चाहिए। साथ ही, यह संदेश भी देना चाहिए कि वह महिलाओं के लोकतांत्रिक और बराबरी के हक को लेकर खुद सजग है।


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