सम्पादकीय

भारत में कोरोना : चिंतित होने की जरूरत नहीं, पर सतर्क रहना अब भी जरूरी

Rounak Dey
24 March 2022 1:51 AM GMT
भारत में कोरोना : चिंतित होने की जरूरत नहीं, पर सतर्क रहना अब भी जरूरी
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अभी अन्य देशों में बढ़ता संक्रमण भारत के लिए चिंता का कारण नहीं है।

भारत में ओमिक्रॉन वैरिएंट की वजह से आई कोविड-19 की तीसरी लहर खत्म हो गई है। रोजाना आने वाले नए मामले पिछले 22 महीनों में सबसे कम हैं। इस बीच जब हर कोई सामान्य स्थिति के लौटने की उम्मीद कर रहा था, एक गणितीय अध्ययन में कहा गया कि भारत में कोविड की चौथी लहर आगामी जून में शुरू हो सकती है। साथ ही, चीन और एशिया के कुछ देशों में कोविड की नई लहर शुरू हो गई है। मध्य और पश्चिमी यूरोप के देशों में भी नए मामलों में फिर से उछाल है। क्या ये सब भारत के लिए चिंता का कारण हैं?

सबसे पहले आईआईटी, कानपुर के उस गणितीय मॉडल की बात करते हैं, जिसमें यह आशंका जताई गई है कि जून में चौथी लहर आ सकती है। कई महामारी विशेषज्ञ इस शोध-मॉडल की आलोचना कर रहे हैं कि यह बहुत वैज्ञानिक नहीं है। कोविड महामारी की अगली लहर दरअसल कई कारकों पर निर्भर करती है, जैसे कि जनसंख्या की औसत आयु, आबादी में रोग प्रतिरक्षा (या तो प्राकृतिक संक्रमण या फिर टीकाकरण के बाद) का स्तर और आखिरी लहर कब आई थी

इसके साथ ही, किसी भी मॉडलिंग-आधारित अनुमान के लिए हर स्तर पर महामारी से संबंधित आंकड़े उपलब्ध होने चाहिए, जो कि भारत में उपलब्ध नहीं हैं। इन कारणों से यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि आगामी जून में कोविड की चौथी लहर आने का सांख्यिकीय विश्लेषण वस्तुतः 'एक अनुमान' जैसा है। इसलिए हमें इससे चिंतित होने की कतई आवश्यकता नहीं है। जहां तक चीन, दक्षिण कोरिया, वियतनाम और न्यूजीलैंड जैसे देशों में कोविड की ताजा लहरों का सवाल है, तो यह पूरी तरह से आश्चर्यजनक नहीं है।
दरअसल, इन देशों ने लंबे समय तक कड़े प्रतिबंधों के साथ 'शून्य-कोविड रणनीतियों' का प्रयास किया है। सख्त प्रतिबंधों के चलते इन सब देशों में पिछले दो वर्षों में प्राकृतिक संक्रमण काफी कम हुआ है। लेकिन ओमिक्रॉन कोरोना वायरस के पिछले सभी वैरिएंट्स की तुलना में कहीं अधिक संक्रामक है। हालांकि इन देशों में उच्च टीकाकरण कवरेज है, लेकिन प्राकृतिक संक्रमण के न होने पर टीके की दो खुराक के बाद से सुरक्षा चक्र लगभग नौ से 12 महीनों के बाद कमजोर हो जाता है। इसके अलावा, कोविड के टीके भले ही गंभीर बीमारी से बचाते हैं, लेकिन संक्रमण को रोकने में इनकी भूमिका बहुत ही सीमित होती है।

इस तथ्य की भी अनदेखी नहीं करनी चाहिए कि चीन और दूसरे कुछ देशों में हाल के दिनों में कोविड के मामलों में बेशक वृद्धि हुई है, लेकिन अस्पतालों में भर्ती और मृत्यु दर अब भी कम बनी हुई है। मध्य और पश्चिमी यूरोपीय देशों में, जहां ओमिक्रॉन की लहर आ चुकी है, संक्रमण के अचानक बढ़ने के लिए प्रतिबंधों में ढील, आबादी के एक हिस्से का टीका न लगवाना और ओमिक्रॉन के उपवंश बीए-2 के उभरने को कारण माना जा रहा है। किसी भी महामारी के मामले में संदर्भ बहुत मायने रखता है। कोई भी दो देश समान या तुलनीय नहीं हो सकते।
उदाहरण के तौर पर, कोविड का हरेक टीका प्रभावकारिता और सुरक्षा की अवधि के मामले में दूसरों से अलग है। प्राकृतिक संक्रमणों का स्तर भी देशों और महाद्वीपों में भिन्न-भिन्न है। किसी भी टीके से सुरक्षा इस बात पर भी निर्भर करती है कि टीकाकरण प्राकृतिक संक्रमण के बाद हुआ है या पहले। इसके अलावा और भी कई मामलों में भारत की स्थिति चीन, कोरिया या यूरोपीय देशों से बहुत अलग है। भारत की अधिकांश आबादी अब तक आई कोविड की तीन लहरों में संक्रमित हो चुकी है और इसे काफी हद तक प्राकृतिक सुरक्षा प्राप्त है। फिर, लगभग 96 प्रतिशत वयस्क आबादी को कम से कम एक टीका तो लग ही चुका है।
अपने यहां की आबादी के एक हिस्से ने 2021 की दूसरी छमाही में दूसरा टीका लगवाया था। चूंकि, पूर्ण टीकाकरण के बाद कम से कम नौ महीने के लिए सुरक्षा की उम्मीद है, इसलिए अपने यहां लोग गंभीर बीमारी से अब भी सुरक्षित हैं। एक और महत्वपूर्ण बात यह भी है कि यूरोप में ओमिक्रॉन की प्रारंभिक लहर बीए.1 उपवंश से फैली थी (इसीलिए वे बीए.2 का सामना कर रहे हैं), जबकि भारत में ओमिक्रॉन की लहर का कारण बीए.2 उपवंश था, लिहाजा इसके अब दोबारा फैलने की आशंका नहीं है।
इन सारे तथ्यों को मिलाकर देखें, तो भारत में फिलहाल कोविड की नई लहर की आशंका बहुत ही कम है। अपने यहां 18 से 59 वर्ष के वयस्कों का बड़ा हिस्सा कोविड टीके की बूस्टर डोज लगवाने के इंतजार में है। यहां यह याद रखना होगा कि भारत जैसे देश में, जहां प्राकृतिक संक्रमण हो चुका है, कोविड के दो टीके पर्याप्त सुरक्षा प्रदान करते हैं। कोविड का खतरा बुजुर्गों को अधिक है। चूंकि उन्हें अन्य लोगों से पहले टीके लगने शुरू हुए थे, इसलिए उन्हें अब टीके की बूस्टर डोज देना उचित ही है।
हमारे यहां कोविड की हालिया लहर विगत जनवरी-फरवरी में आई थी, और उसने भी बूस्टिंग प्रभाव के रूप में काम किया है। इसलिए वयस्क आबादी सुरक्षित है और हम जितना भरोसा टीकों पर कर रहे हैं, दो टीकों के लगने के बाद उतना ही भरोसा 18 से 59 साल के आयुवर्ग को अपने प्रतिरक्षा तंत्र पर रखना चाहिए। समय आने पर इस आयुवर्ग के लोगों को भी बूस्टर डोज लगेगी, लेकिन फिलहाल वयस्क आबादी को बूस्टर डोज की आवश्यकता नहीं है। आश्वस्ति की बात यह है कि इन दिनों देश में मई, 2020 के बाद से संक्रमण के सबसे कम नए मामले आ रहे हैं। यह भारत में 'कोविड के साथ रहने' की योजना बनाने का समय है।
ऐसे में, एक साथ कई कदम उठाने की जरूरत है- यानी केंद्र सरकार को फेस मास्क को हटाने के लिए एक श्रेणीबद्ध रणनीति विकसित करने की आवश्यकता है। पहले कदम के रूप में स्कूली उम्र के सभी बच्चों के लिए मास्क पहनने की अनिवार्यता खत्म की जा सकती है। दूसरे लोगों के लिए भी खुले स्थानों में मास्क लगाना स्वैच्छिक किया जा सकता है। किसी भी नए प्रकार के वैरिएंट की शीघ्र पहचान सुनिश्चित करने के लिए देश में जीनोमिक अनुक्रमण को और मजबूत करने के लिए अन्य देशों में कोविड प्रसार पर नजर रखने की आवश्यकता है। सावधानी जरूर बरतनी होगी, लेकिन अभी अन्य देशों में बढ़ता संक्रमण भारत के लिए चिंता का कारण नहीं है।

सोर्स: अमर उजाला

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