सम्पादकीय

हिंदी सुहागिन, भारत के माथे की बिंदिया

Rani Sahu
15 Sep 2023 7:01 PM GMT
हिंदी सुहागिन, भारत के माथे की बिंदिया
x
14 सितंबर 1949 के दिन हिंदी भाषा को संविधान में मान्यता प्राप्त हुई। परन्तु हिन्दी भाषा की नींव 11वीं शताब्दी में रखी गई। साहित्यकारों ने अपनी लेखनी के माध्यम से इसे काफी समृद्ध किया। तुलसीदास, कबीर दास, सूरदास, तिलक, दयानंद, बंकिम चंद्र चटर्जी तथा महात्मा गांधी जी ने हिंदी साहित्य लिख कर इसे लोकप्रियता दी। हिंदी भाषा को भारतीय जनसंख्या का सबसे बड़ा हिस्सा समझता, बोलता एवं लिखता है। यह सरल और आम बोलचाल की भाषा है। यह सभी भाषाओं की जननी है। बहुत से शब्द अन्य भाषाओं ने इसी से लिए हैं। हिंदी भाषा ने आरंभ से ही संस्कृतियों को जोडऩे का काम किया है। कबीर, नानक जैसे अनेक संत कवि इसके साक्षी हैं। स्वाधीनता संग्राम में हिंदी ने भारतीय जनमानस को रूढिय़ों और अंधविश्वासों से दूर कर अंग्रेजी औपनिवेशक नीति के खिलाफ एक संगठित मोर्चे के रूप में जोड़ा था। आजादी के लिए संघर्ष के 90 वर्षों तक हिंदी स्वतंत्रता आंदोलन की भाषा रही है। गांधी और अन्य नेता हिंदी भाषी प्रदेशों से न होते हुए भी उन्होंने हिंदी को देश की भाषा माना। आज हिन्दी की स्थिति संपर्क, संवाद और साहित्य की दृष्टि से अच्छी है, लेकिन शासकीय या राष्ट्रीय भाषा के रूप में हिंदी को निश्चय ही वो स्थान नहीं मिला है जिसकी वह हकदार है। हिंदी भाषा का हित तभी संभव है जब वह रोजगार, शासन और न्याय की भाषा बन पाए।
अटल जी ने हिंदी भाषा को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्रदान की। उन्होंने 4 अक्तूबर 1977, मंगलवार के दिन संयुक्त राष्ट्र संघ की आम सभा के 32वें अधिवेशन में हिंदी में भाषण दिया था। विश्व पटल पर इस गूंज ने हिंदी भाषा को एक उच्च स्थान दिया। सभी प्रतिनिधियों ने खड़े होकर भाषण का अभिनंदन किया। हिंदी हमारे लिए गौरव की भाषा है। इसे राष्ट्रभाषा कानूनी रूप से करना चाहिए, क्योंकि एक राष्ट्र एक भाषा ही किसी देश की पहचान है और यह उस भाषा के साथ भी न्याय होगा, परंतु विडंबना है कि अब तक सरकारें इसके प्रति उदासीन रही हैं और हंै। हिंदी को राष्ट्र भाषा का दर्जा दिलाने में अब तक काम हुआ है जितना, वह है किसी सरोवर की कुछ बूंदों इतना। भारत में हिंदी भाषा के साथ उपेक्षा का व्यवहार हो रहा है। बचपन में जब हिंदी सीखने का समय होता है तो बच्चे कान्वेंट कल्चर ग्रहण करते हैं। ऐसा भ्रम फैलाया जाता है कि अंग्रेजी ही रोजगार दिला सकती है। यह सच है कि नई पीढ़ी में हिंदी के प्रति रुचि कम हुई है। इसकी वजह है कि अब विषय कई हैं और वो सब अंग्रेजी में हैं। हिंदी को वैज्ञानिक ढंग से सीखने की जरूरत है। हमें अपने बच्चों को हिंदी सीखने के लिए प्रेरित करना चाहिए। प्राथमिक स्तर से ही हिंदी लिखने व बोलने की आदत डालनी चाहिए। सरकारी कामकाज और लोगों के व्यवहार में हिंदी का प्रयोग समाप्त हो रहा है। यह एक चिंता का विषय है।
‘आंख उठा कर देखिए, हिंदी प्रेमी हैं कहां, कितने ही हिंदुओं की, परम फलद आज भी है अंग्रेजी देवी।’ दिविक रमेश द्वारा लिखित कविता ‘हैरान थी हिंदी’ की ये पंक्तियां आज भी हिन्दी के ऊपर सही बैठती हैं : ‘खड़ी थी, साहब के कमरे के बाहर, इजाजत मांगती, मांगती दुआ, पीए साहब की तनिक, निगाह की, हैरान थी हिंदी, आज भी आना पड़ा था उसे, लटक कर खचाखच भरी, सरकारी बस के पायदान पर संभाल-संभाल कर, अपनी इज्जत का आंचल, हैरान थी हिंदी।’ हिंदी आज कुछ ऐसे तप: पुतों के पुण्य से बची है जो हिंदी को जीवन भर समर्पित रहे, जिन्होंने हिंदी के लिए सच्चे अर्थों में संघर्ष किया, किंतु कभी भी अपने मुंह से अपने कृतित्व का प्रचार नहीं किया। हिंदी को अन्य देशों की भाषा के समान स्थान दिलाना है तो इसको सभी सरकारी संस्थानों, मंत्रालय और दूतावासों की भाषा तथा राष्ट्रभाषा घोषित करना है। हिंदी मॉरीशस, त्रिनिदाद, टोबैगो, गुयाना और सुरीनाम की प्रमुख भाषा है। यह फिजी की सरकारी भाषा है। हिंदुत्व की पहचान और शान हिंदी भाषा है। इसके सम्मान, उत्थान, पहचान और पालन-पोषण के लिए हर भारतवासी को दिल से पूर्ण सहयोग करना चाहिए।
हम हिंदी से हैं, हिंदी हमसे नहीं, इसलिए हिंदी भाषा का अधिक प्रयोग करने से हमें गुरेज नहीं करना चाहिए। हिंदी हमारी आन है, पहचान है, हमारे सुख-दुख की पहचान है, बहती जलधारा है, जो परंपरा और पहचान को बचाए रखती है। यह हमारी अस्मिता और गौरव का प्रतीक है। हिंदी समर्थ, विकसित और सक्षम भाषा है। हमें हिंदुस्तान में रहते हिंदी का प्रयोग करना है, न कि इसका विरोध। हमें हिंदी दिवस मनाना है, पर उसके बाद हिंदी के प्रयोग को बढ़ाना है और हिंदी को सुहागिन भारत के माथे की बिंदिया बनाना है। हिंदी हमारी मन और आत्मा की भूख को शांत करती है। इसलिए हिंदुस्तान के लोगों द्वारा हिंदी का अधिक से अधिक प्रयोग हिंदी के उज्ज्वल भविष्य का प्रमाण होगा। हिंदी अपना स्थान तभी पाएगी, जब एक राष्ट्र एक भाषा नीति अपनाई जाएगी। व्यावहारिक दृष्टिकोण से अन्य भाषाएं भी सीखी जा सकती हैं, लेकिन हिंदी का प्रयोग हमें छोडऩा नहीं है।
सत्यपाल वशिष्ठ
स्वतंत्र लेखक
By: divyahimachal
Next Story