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- हिंदी कविता के स्वर :...
प्रशासनिक अधिकारियों को भी हिंदी कविता ने अपनी ओर आकर्षित किया है। दिनभर कार्यालय में फाइलों से जूझते, अपने मातहतों से खिचखिच करते, ऊंची कुर्सी में बैठे राजनेताओं या अधिकारियों के साथ माथा-पच्ची करते जब थकान घेर लेती है, तब कविता उन्हें ठंडक देती है, विश्रांति लाती है, नूतन ऊर्जा देती है। महाराज कृष्ण काव, जो सोलन और कांगड़ा के उपायुक्त रह चुके हैं, और भारत सरकार के सचिव पद से सेवानिवृत्त हुए, ढूंढ रहे हैं एक शरीफ आदमी को और 'इक्ष्वाकु से' इसी नाम की पुस्तक में पूछ रहे हैं : 'मगर शरीफ आदमी है कौन/उठा है पहले भी यह सवाल/दुर्योधन या धर्मपुत्र/रावण या राम/चर्चिल या हिटलर/अमेरिका या वियतनाम/काले धन की तिजोरी से लिपटा/स्मगलर-सर्प/या माहवारी बटोरता/इन्कम टैक्स इंस्पैक्टर।' देवस्वरूप चंबा से हैं और राज्य सरकार के अनेक पदों पर रहकर दिल्ली चले गए। वह भारत सरकार के सचिव पद से सेवानिवृत्त हुए। केदारनाथ सिंह उनकी 'साक्षी है वर्णमयी' पुस्तक में छपी कविताओं पर टिप्पणी करते हुए लिखते हैं : 'देवस्वरूप अमूर्त को मूर्त रूप देने की जो कोशिश करते हैं, वह उनके रचना कौशल की विशेषता है। इसी के चलते उनकी कविताओं की आकृति कुछ विस्तार पा लेती है।' चंबा में रावी, जिसका पुराना नाम इरावती है, नदी बहती है। मिंजर मेला भी रावी नदी के किनारे संपन्न होता है।