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- सवालिया भाषा नहीं...
हिंदी सरल, सुबोध, सभ्य और सुंदर भाषा है। यह हमारी आत्मा की भाषा है। हमारी पारदर्शिता और रीढ़-सी मजबूती की भाषा है। नदी की तरह प्रवाहमय है हिंदी। हमारी संवेदनाओं और विचारों की अभिव्यक्ति की भाषा है। हिंदी बुनियादी और चेतना के स्तर पर भारत की 'मां' है। हिंदी कभी भी सवालिया नहीं हो सकती, क्योंकि सबसे वैज्ञानिक भाषा है। उसकी वर्णमाला, व्याकरण, शब्द-शक्ति सभी स्पष्ट और सुंदर हैं। हीनता-बोध और बौनेपन के एहसास की भाषा नहीं है हिंदी। प्रतिरोध और विद्रोह की बजाय सौंदर्य और वीर-रस की भाषा है हिंदी। बेशक संविधान सभा की बैठकों के दौरान हिंदी को राजभाषा का दर्जा देने का विरोध होता रहा। महात्मा गांधी भी 'हिंदुस्तानी' भाषा को राजभाषा का सम्मान देने के पक्ष में थे। खुद गांधी ने हिंदी की जननी संस्कृत भाषा में रचित भजन गुनगुनाए और पढ़े थे। हिंदुस्तानी भाषा की आत्मा भी हिंदी ही है। विरोध की दलीलें दक्षिण में आज भी सुनाई दे सकती हैं, लेकिन अधिकतर राजनेता और विशिष्ट जन अच्छी हिंदी समझ लेते हैं और बोलचाल की हिंदी में संवाद भी कर लेते हैं। भारत में शायद ही ऐसा कोई अंचल होगा, जो हिंदी से अछूता रहा होगा। उनकी स्थानीय और क्षेत्रीय भाषा भिन्न हो सकती है। देश में असंख्य बोलियां प्रचलित हैं।
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