सम्पादकीय

देश का आईना है हिंदी

Rani Sahu
7 Jun 2022 7:18 PM GMT
देश का आईना है हिंदी
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द्रमुक नेता और राज्यसभा सांसद टीकेएस एलनगोवन ने अपने एक घटिया बयान में कहा है कि हिंदी तमिलों का दर्जा घटाकर ‘शुद्र’ कर देगी और कहा कि हिंदी भाषी राज्य देश के विकसित प्रदेश नहीं हैं जबकि जिन राज्यों की मातृ जबान स्थानीय भाषा है

द्रमुक नेता और राज्यसभा सांसद टीकेएस एलनगोवन ने अपने एक घटिया बयान में कहा है कि हिंदी तमिलों का दर्जा घटाकर 'शुद्र' कर देगी और कहा कि हिंदी भाषी राज्य देश के विकसित प्रदेश नहीं हैं जबकि जिन राज्यों की मातृ जबान स्थानीय भाषा है, वे अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं। एलनगोवन ने भाषा थोपने को लेकर द्रविड़ कझगम की ओर से आयोजित पत्रकार वार्ता में कहा कि हिंदी को लादकर मनुवादी विचार थोपने की कोशिश की जा रही है। उनकी यह टिप्पणी वायरल हो गई है। राज्य सरकार ने यह भी आरोप लगाया है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में हिंदी को थोपा गया है और यह स्पष्ट कर दिया है कि तमिलनाडु केवल अपने दो भाषा फार्मूले तमिल और अंग्रेजी का पालन करेगा, जो दशकों से राज्य में प्रचलित है। उनका यह कुत्सित बयान उनकी हिंदी भाषा के महत्त्व की प्रति उनकी अज्ञानता दर्शाता है। यह महानुभाव यह नहीं जानते है कि एक भाषा के रूप में हिंदी न सिर्फ भारत की पहचान है, बल्कि यह हमारे जीवन मूल्यों, संस्कृति एवं संस्कारों की सच्ची संवाहक, संप्रेषक और परिचायक भी है। बहुत सरल, सहज और सुगम भाषा होने के साथ हिंदी विश्व की संभवतः सबसे वैज्ञानिक भाषा है, जिसे दुनिया भर में समझने, बोलने और चाहने वाले लोग बहुत बड़ी संख्या में मौजूद हैं। हिंदी भाषा भारत की संस्कृति गौरव एवं मान-सम्मान है। हिंदी भाषा से ही भारत की पहचान की जाती है।

भारत में हिंदी भाषा का उपयोग ही सर्वाधिक किया जाता है। भारत के सभी क्षेत्रों में हिंदी भाषा का उपयोग किया जाता है। हिंदी भाषा भारत में ही नहीं, बल्कि विश्व में भी बहुत अधिक प्रचलित है। यह विश्व की सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषाओं में दूसरे नंबर पर आती है। हिंदी भाषा का महत्त्व हमारे जीवन बहुत अधिक है। दैनिक जीवन में हम हिंदी भाषा का ही उपयोग करते हैं। यह सरल एवं आसान है तथा यह हम सभी को एक दूसरे से जोड़कर रखती है। हिंदी भारत में संपर्क भाषा का कार्य करती है और कुछ हद तक पूरे भारत में सामान्यतः एक सरल रूप में समझी जाने वाली भाषा है। किसको इनकार होगा कि भारतीय विचार और संस्कृति का वाहक होने का श्रेय हिंदी को ही जाता है। आज संयुक्त राष्ट्र जैसी संस्थाओं में भी हिंदी की गूंज सुनाई देने लगी है। कुछ वक्त पहले हमारे प्रधानमंत्री जी द्वारा संयुक्त राष्ट्र महासभा में हिंदी में ही अभिभाषण दिया गया था। विश्व हिंदी सचिवालय विदेशों में हिंदी का प्रचार-प्रसार करने और संयुक्त राष्ट्र में हिंदी को आधिकारिक भाषा बनाने के लिए कार्यरत है। उम्मीद है कि हिंदी को शीघ्र ही संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषा का दर्जा भी प्राप्त हो सकेगा। याद रहे कि भाषा वही जीवित रहती है, जिसका प्रयोग जनता करती है। हिंदी भाषा इसका साक्षात प्रणाम है। द्रमुक नेता की संकीर्ण सोच और अल्प ज्ञान नहीं समझ सका कि आज भारत में लोगों के बीच संवाद का सबसे बेहतर माध्यम हिंदी है। इसलिए इसको एक-दूसरे में प्रचारित करना चाहिए। वर्तमान में हिंदी एक ग्लोबल भाषा है। हिंदी का इंटरनेट पर भी तेजी से विकास हुआ है। पहले इंटरनेट पर हिंदी भाषा का उपयोग नहीं किया जाता था या बहुत कम न के बराबर ही किया जाता था, लेकिन अब धीरे-धीरे इंटरनेट पर भी हिंदी का विकास हुआ है। हिंदी अब अंतरराष्ट्रीय व्यापार की भाषा बन चुकी है। वर्तमान में तो इंटरनेट पर हिंदी का विकास बहुत तेजी से हुआ है। अब हम किसी भी जानकारी को हिंदी में प्राप्त करने के लिए इंटरनेट की मदद ले सकते हैं। सभी जानकारी इंटरनेट पर अब हिंदी में भी उपलब्ध है।
हिंदी की इंटरनेट पर अच्छी उपस्थिति है। गूगल जैसे सर्च इंजन हिंदी को प्राथमिक भारतीय भाषा के रूप में पहचानते हैं। इसके साथ ही अब अन्य भाषा के चित्र में लिखे शब्दों का भी अनुवाद हिंदी में किया जा सकता है। फरवरी 2018 में एक सर्वेक्षण के हवाले से खबर आई कि इंटरनेट की दुनिया में हिंदी ने भारतीय उपभोक्ताओं के बीच अंग्रेजी को पछाड़ दिया है। हिंदी विश्व की तीसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। विश्व आर्थिक मंच की गणना के अनुसार यह विश्व की दस शक्तिशाली भाषाओं में से एक है। विश्वभाषा बनने के सभी गुण हिंदी में विद्यमान हैं। बीसवीं सदी के अंतिम दो दशकों में हिंदी का अंतरराष्ट्रीय विकास बहुत तेजी से हुआ है। हिंदी एशिया के व्यापारिक जगत में धीरे-धीरे अपना स्वरूप बिंबिंत कर भविष्य की अग्रणी भाषा के रूप में स्वयं को स्थापित कर रही है। वेब, विज्ञापन, संगीत, सिनेमा और बाजार के क्षेत्र में हिंदी की मांग जिस तेजी से बढ़ी है, वैसी किसी और भाषा में नहीं। विश्व के लगभग 150 विश्वविद्यालयों तथा सैकड़ों छोटे-बड़े कंेद्रों में विश्वविद्यालय स्तर से लेकर शोध स्तर तक हिंदी के अध्ययन-अध्यापन की व्यवस्था हुई है। विदेशों में 25 से अधिक पत्र-पत्रिकाएं लगभग नियमित रूप से हिंदी में प्रकाशित हो रही हैं। अब मोबाइल कंपनियां ऐसे हैंडसेट बना रही हैं, जो हिंदी और भारतीय भाषाओं को सपोर्ट करते हैं। बहुराष्ट्रीय कंपनियां हिंदी जानने वाले कर्मचारियों को वरीयता दे रही हैं। हॉलीवुड की फिल्में हिंदी में डब हो रही हैं और हिंदी फिल्में देश के बाहर देश से अधिक कमाई कर रही हैं।
हिंदी, विज्ञापन उद्योग की पसंदीदा भाषा बनती जा रही है। गूगल, ट्रांसलेशन, ट्रांस्लिटरेशन, फोनेटिक टूल्स, गूगल असिस्टेंट आदि के क्षेत्र में नई-नई रिसर्च कर अपनी सेवाओं को बेहतर कर रहा है। इसका द्रमुक नेता के पास क्या जवाब है। आज हिंदी और भारतीय भाषाओं की पुस्तकों का डिजिटलीकरण जारी है। भारत की स्वतंत्रता के पहले और उसके बाद भी बहुत से लोग हिंदी को 'राष्ट्रभाषा' कहते आए हैं, (उदाहरणतः राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा, महाराष्ट्र राष्ट्रभाषा सभा, पुणे आदि) हिंदी को राष्ट्रभाषा कहने के एक हिमायती राष्ट्र पिता महात्मा गांधी भी थे, जिन्होंने 29 मार्च, 1918 को इंदौर में आठवें हिंदी साहित्य सम्मेलन की अध्यक्षता की थी।
उस समय उन्होंने अपने सार्वजनिक उद्बोधन में पहली बार आह्वान किया था कि हिंदी को ही भारत की राष्ट्रभाषा का दर्जा मिलना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा था कि राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र गूंगा है। उन्होंने तो यहां तक कहा था कि हिंदी भाषा का प्रश्न स्वराज्य का प्रश्न है। आजाद हिंद फौज का राष्ट्रगान 'शुभ सुख चैन' भी 'हिंदुस्तानी' में था। उनका अभियान गीत 'कदम कदम बढ़ाए जा' भी इसी भाषा में था। द्रमुक नेता का हिंदी विरोधी बयान सिर्फ वोट बटोरने का बेहूदा कार्य है, न तो उन्हें हिंदी भाषा का देश के लिए महत्त्व मालूम है न ही उन्हें हिंदी भाषा की ग्लोबल लेवल पर इसकी स्वीकार्यता का पता है। इन्हें पता है कि इस तरह का जहर उगलने से उन्हें अपने प्रदेश में सिर्फ और सिर्फ राजनितिक फायदा होना है। माननीय गृह मंत्री जी ने भी इस पर अपनी नाखुशी व्यक्त की है स्पष्टता से कहेंगे कि हमारे लिए हिंदी देश का आईना हैं और देश को जोडती है, जबकि द्रमुक नेता का हिंदी विरोधी उवाच देश की एकाग्रता, एकसारता, राष्ट्रीय एकता और संप्रभुता को चुनौती देने वाला है। हमारे लिए इसकी घोर निंदा करने के सिवाय हमारे पास कोई विकल्प नही है।
ईमेल : [email protected]

सोर्स- divyahimachal


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