- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- हिंदी दिवस: किस हिंदी...
x
हिंदी दिवस फिर आ गया है। देश की और कोई भाषा नहीं जिसका दिवस मनाया जाता हो! अब चूंकि अनेक सरकारों में हिंदी राजभाषा है
जगदीश उपासने। हिंदी दिवस फिर आ गया है। देश की और कोई भाषा नहीं जिसका दिवस मनाया जाता हो! अब चूंकि अनेक सरकारों में हिंदी राजभाषा है, इसलिए सब दूर राजभाषा दिवस और सप्ताह मनाए जाएंगे। जमकर कार्यक्रम होंगे, स्पर्धाओं का आयोजन किया जाएगा। कर्मचारी-अधिकारी इनमें उत्साह से भागीदारी करेंगे।
चारों तरफ हिंदी के लिए शब्दों-अक्षरों के ढोल-ताशे बजेंगे, हिंदी के लेखकों और साहित्यकारों को ढूंढा जाएगा, उनको सम्मानित वगैरह किया जाएगा। चहुंओर हिंदी का बोलबाला होगा, और हम जैसे हिंदीवाले खुश हो जाएंगे। हम हिंदीवाले परम संतोषी हैं। नेता लोग अंतरराष्ट्रीय मंचों पर हिंदी बोलते हैं, तो हमारी गर्दनें सीधे आसमान चूमने लगती हैं। विधायिकाओं में हिंदी के योद्धा तलवारें भांजते हैं, तो लगता है जैसे हम ही रणांगन में हैं।
हिंदी के विश्वविद्यालय खुलते हैं, तो हम खुशी से फूले नहीं समाते। और हिंदी माध्यम से पढ़ाई करने वाले उच्च शिक्षा संस्थानों की नामावली का जाप करते हमारी जबान नहीं थकती। और विदेश मंत्रालय के सौजन्य तथा एयर इंडिया के घाटे में इजाफा करने वाली कृपा से हर दो साल पर होने वाले विश्व हिंदी सम्मेलन तो हम हिंदीवालों का अनंतिम गौरव गान है, जिसका अनहद नाद हमें सारे ब्रह्मांड में गूंजता-सा लगता है।
हमको इस बात से बहुत कष्ट नहीं होता कि आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोग भी अपने बच्चों को हिंदीभाषी स्कूल में नहीं डालना पसंद करते, मजबूरी के मारों के दुलारे ही हिंदी माध्यम वाले सरकारी स्कूलों में जाते हैं। निम्न मध्यम वर्ग से ऊपर के हम लोग तो हिंदीभाषी स्कूलों के इर्दगिर्द की गलियों से गुजरना पसंद न करें। नतीजा यह है कि हिंदीभाषी कुछ राज्यों में हिंदी के स्कूल विद्यार्थियों की कमी से बंद करने पड़ रहे हैं।
हां, आप कह सकते हैं कि मराठी माध्यम, कन्नड़ माध्यम, तमिल या बांग्ला माध्यम जैसे दूसरी भारतीय भाषाओं के स्कूल भी विद्यार्थियों की कमी से बंद हो रहे हैं, क्योंकि सबसे बढ़िया पब्लिक स्कूल में अपने बच्चे के दाखिले की महामारी सब दूर फैली है। हिंदी भले ही राजभाषा है, लेकिन हिंदीभाषी राज्यों तक में उच्च स्तर पर पत्रव्यवहार और फाइलों पर नोटिंग अंग्रेजी में ही होती है। बैठकें अंग्रेजी में चलती हैं।
हालांकि मोदी सरकार आने के बाद यह चित्र कुछ बदला है। सरकारी फरमानों और विज्ञापनों को पहले अंग्रेजी में लिखा जाता है फिर हिंदी में उनका अनुवाद होता है। मसलन 'विनिधानकर्ता शिक्षा और संरक्षण निधि प्राधिकरण'! यह कॉरपोरेट मंत्रालय का विज्ञापन है! यह सूची लंबी है। यूपीएससी के प्रश्नपत्रों का हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं में अनुवाद भी माशाअल्लाह होता है।
परिणाम यह कि हिंदी तथा अन्य भारतीय भाषाओं में परीक्षा देने वालों की संख्या घट रही है। हिंदी और अन्य भाषाओं के समाचार बुलेटिन भी पहले अंग्रेजी में लिखे जाते हैं। लेकिन हमारे सीने यह सुनकर चौड़े हो जाते हैं कि हिंदी दुनिया भर में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है। एक शोधार्थी का यह अपना शोध है कि विश्व भर में सबसे अधिक लोग हिंदी बोलते हैं। 2005 की उनकी इस थीसिस को सही मानें, तो दुनिया के 18 प्रतिशत लोग हिंदी 'जानते-समझते' हैं।
उनके मुताबिक, विश्व में दूसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा मैंडरिन (चीनी) है, जिसे 15 प्रतिशत लोग व्यवहार में लाते हैं। उन्होंने अपने हिंदीभाषियों में उर्दू और मैथिली बोलने वालों को भी शामिल कर लिया है, हालांकि ये दोनों संविधान की आठवीं अनुसूची में अलग भाषा हैं। कोलकाता विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर डॉक्टर अमरनाथ ने हिंदी के इन अनथक योद्धा की थीसिस पर सवाल उठाए हैं। लेकिन हिंदी साहित्य और हमारे साहित्यकारों के महज नामोल्लेख से ही हमारी कलगियां तन जाती हैं।
कोई पूछे कि किस पुस्तक की 300 या 500 से अधिक प्रतियां छपती हैं? और ये कहां बिकती हैं या किन सरकारी पुस्तकालयों में जमींदोज होती हैं? किसको ध्यान रहता है कि हम अपने जिन साहित्यकारों और कृतियों का गौरवगान करते हैं, उनमे से अधिकतर पुरानी पीढ़ियों के हैं। और पिछले लगभग तीन दशकों से वह सरिता लगातार सूखती आ रही है। तथ्य यह है कि 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में हिंदी बोलने वालों की कुल संख्या 52.83 करोड़ है।
लेकिन विश्व में कोई भी भाषा बोलने वालों का सर्वेक्षण करने वाली संस्था एथनोलॉग के मुताबिक अंग्रेजी को अपनी पहली या दूसरी भाषा बताने वाले लोग विश्व में 1.348 अरब हैं, तो चीनी की करीब 13 उपभाषाओं के साथ मैंडरिन बोलने वाले विश्व में 1.120 अरब हैं। एथनोलॉग के अनुसार विश्व में हिंदीभाषियों की कुल संख्या 60 करोड़ है।
इस सर्वेक्षण संस्था ने विश्व की दस सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषाओं की जो सूची बनाई है उससे छठे क्रमांक पर बांग्ला है। लेकिन एक और सर्वे में चीनी मैंडरिन को 1.31 अरब लोगों के साथ विश्व में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा का दर्जा दिया गया है। इस सर्वे में स्पैनिश 46 करोड़ लोगों की भाषा के बतौर विश्व में सबसे अधिक बोली जाने वाली दूसरे क्रमांक की भाषा है!
दरअसल, किस भाषा को सचमुच कितने लोग बोलते हैं, यह जानना टेढ़ी खीर है। इसलिए किसी भी आंकड़े को आप अपनी खुशफहमी के लिए स्वीकार कर सकते हैं! भाषा संख्याबल का प्रतीक तो है ही, लेकिन वह राजनीतिक प्रबलता और धमक का भी प्रतीक है। इसलिए संयुक्त राष्ट्र ने सिर्फ छह भाषाओं- अरबी, चीनी, अंग्रेजी, फ्रेंच, रूसी और स्पैनिश को आधिकारिक भाषा की मान्यता दे रखी है।
दिवंगत विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने हिंदी को संयुक्त राष्ट्र में मान्यता के लिए बड़ी कोशिश की थी, लेकिन संयुक्त राष्ट्र के रेडियो पर हिंदी बुलेटिन से ज्यादा कुछ न हुआ। भाषा को सिर्फ सांस्कृतिक खांचे में बिठा देना भी ठीक नहीं, क्योंकि यह किसी देश या समाज की समृद्धि का प्रतीक होती है। लेकिन हिंदी दरिद्र नहीं है। उसका अपना वैभव है, लेकिन वह भारत के गत वैभव जैसा ही है।
उसकी पुनर्स्थापना के लिए सरकारों के साथ समूचे समाज को हाथ-पैर मारने होंगे। हिंदी महज बाजारू विज्ञापनों की भाषा बनकर न रह जाए, यह चिंता सारे समाज की होनी चाहिए; आखिर दूसरी भारतीय भाषाओं का हाल भी कोई खास अच्छा नहीं है। इसलिए यह सबकी चिंता का विषय है।
Next Story