सम्पादकीय

हिंदी दिवस 2021 : 2050 तक हिंदी दुनिया की सबसे ताकतवर भाषाओं में शामिल हो जाएगी, पर कैसे?

Gulabi
14 Sep 2021 10:52 AM GMT
हिंदी दिवस 2021 : 2050 तक हिंदी दुनिया की सबसे ताकतवर भाषाओं में शामिल हो जाएगी, पर कैसे?
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सवाल तो सवाल है और वो भी वाजिब

अभिषेक कुमार नीलमणि।

ये भारत है. राष्ट्र भाषा हिंदी है. हिंदी जान है. अभिमान है. शब्दों की प्राण है, पर एक सवाल है. जो हमेशा से पूछी गई है और पूछी जाएगी. जिस देश में हिंदी के लिए मोबाइल का बटन नंबर 2 दबाना पड़ता हो और लाखों करोड़ों लोगों को अंग्रेजी में हस्ताक्षर करना पड़ता हो, उस भाषा को कैसे मान लिया जाए कि एक रोज दुनिया की सबसे ताकतवर भाषाओं में ये शुमार हो जाएगी?

सवाल तो सवाल है और वो भी वाजिब. दरअसल वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के बनाए पावर लैंग्वेज इंडेक्स की मानें तो 2050 तक हिंदी दुनिया की सबसे ताकतवर भाषाओं में शामिल हो जाएगी, पर कैसे?
हिंदी लिखने बोलने में शर्म कैसी?
आप आज की तारीख में अपने बच्चे को, जिसने अभी अभी थोड़ा बोलना शुरू किया हो, उसे लेकर स्कूल जाइए तो प्रिंसिपल हो या मैडम या फिर सर, सब आपसे अंग्रेजी में बात करेंगे. आपसे गुजारिश करेंगे कि आप भी बच्चे से घर में अंग्रेजी में ही बात करें, क्यों? ये आप ही बता पाएंगे.
दिल्ली मुंबई या फिर देश के किसी भी कोने में जाकर बढ़िया से बढ़िया कॉलेज में हिंदी ऑनर्स की पढ़ाई कीजिए. फिर देखिए उसी कॉलेज से लेकर आस पड़ोस, घर, समाज तक कैसे है हेय दृष्टि से आपको देखा जाएगा. अरे तिवारी जी, आपके बेटे ने ये हिंदी ऑनर्स क्यों लिया है? उपाध्याय जी, आपके बच्चे को ये क्या हो गया, साधु संत बनेगा क्या ? मिश्रा जी, क्या आपने अपनी बेटी को हिंदी लेने से रोका नहीं ? द्विवेदी जी, ये क्या फैसला है, मेरा बच्चा तो विलायत जा रहा है पर आपने अपने बेटे को हिंदी से करियर बढ़ाने को बोल दिया, मास्टर वास्टर बनेगा क्या ?
हिंदी 5000 ईसा पूर्व पुरानी है
ये सवाल तब हैं, जब यही हिंदी दुनिया की 5000 ईसा पूर्व से बोली जाने वाली संस्कृत से जड़ें जमाकर रखी हुई है. और जब ऐसे सवाल होंगे, तो वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की उस भविष्यवाणी पर कैसे भरोसा किया जाए, हम हिंदी वाले अगले 30 साल में सबसे ताकतवर हो जाएंगे?
हिंदी फारसी भाषा का शब्द है. इस शब्द की उत्पत्ति सिंधु यानि सिंध से हुई है. दरअसल ईरानी भाषा में 'स' को 'ह' कहा जाता है. तो बस यूं जानिए कि सिंधु ही हिंदी है. आपको ये जरूर बता दिया जाए कि बीते कुछ बरस में हिंदी का मान खूब बढ़ा है.
क्या हिंदी के लिए इतना ही काफी है ?
प्रधानमंत्री मोदी का संयुक्त राष्ट्र संघ के मंच पर हिंदी बोलना और उस हिंदी की तारीफ करना. दोनों ने ही भारत और भारतीयों का मान सातवें आसमान पर पहुंचाया है. राष्ट्र निर्माण में मोदी ने दुनिया के हर मंच पर हिंदी को तरजीह दी. हर फोरम में हिंदी को ही अपनी भाषा बताई. जहां अंग्रेजी बोलना जरूरी और मजबूरी हो, मोदीजी ने सिर्फ उसी मंच पर ब्रिटिश इंग्लिश के वर्ड को उकेरा. और इसी कारण अमेरिका से ऑस्ट्रेलिया तक, कुवैत से लेकर कनाडा तक इंडियंस की वैल्यू बढ़ी. मगर फिर से सवाल कि क्या इतना कुछ काफी है हिंदी को उसका सम्मान दिलाने के लिए.
अब जरा सोचिए, चीन जो आज दुनिया में अपनी धाक हर तरह से बढ़ा चुका है. जिसकी अर्थव्यवथा नंबर वन ही समझिए. उस कम्युनिस्ट मुल्क में बच्चा बच्चा चाइनीज ही बोलता है. स्कूलों में अंग्रेजी उतनी ही पढ़ाई जाती है जितनी कि भारतीय स्कूलों में हिंदी. यही हाल रूस, मिस्र, इजरायल, ईरान और पड़ोस के पाकिस्तान में भी है. फिर हम ही क्यों स्कूल 'काल' से अंग्रेजी को वरीयता देने को आतुर रहे हैं. आखिर ऐसा क्यों है कि अंग्रेजों के जाने के बाद भी हमारे दिल दिमाग से अंग्रेजियत नहीं गई? अब जवाब होगा कि बिना अंग्रेजी विलायत कैसे जाओगे, हायर स्टडीज कैसे करोगे? सच्चाई है सवाल में. पर क्या चीन के बच्चे भी विदेश जाते हैं ? अगर हां, तो वो कैसे अंग्रेजी सीखते हैं और फिर स्टडीज को आगे बढ़ाते हैं?
हाइब्रिड बच्चा देसी अंदाज कैसे लाएगा?
आपको एक और जानकारी दे दूं, चौकिएगा मत. दुनिया की सबसे आसान भाषाओं में हिंदी का नाम है. जैसे लिखी जाती है वैसे ही बोली भी जाती है. मगर 21वीं सदी के बच्चों से पूछिए तो वो ठीक से हिंदी ना बोल पाते हैं और न ही लिख पाते हैं. पैरेंट्स भी बस इतनी कोशिश करते हैं कि मेरा बच्चा हिंदी में पास हो जाए. और वही पैरेंट्स जब बुजुर्ग होते हैं तो अपने बालक में तमाम कमियां निकालते हैं. मगर जब आपने बीज ही हाइब्रिड डाल रखा है, तो फिर देशी विचार वाले बालक कहां से पाओगे?
हिंदी देश में हर साल और ताकतवर बन कर उभर रही है. वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम का कहना है कि 2050 तक विश्व की सबसे ताकतवर भाषा होगी हिंदी. पर हम हिंदी भाषी ही क्यों हिंदी को लेकर हीन भावना पाले हुए हैं.
मेरे कहने का बिल्कुल ये मतलब नहीं कि क्या फिर अंग्रेजी न सिखाएं. बिल्कुल सिखाएं, खूब सिखाएं. मगर ये न भूलें कि जड़ कहां है. Root कितनी मजबूत है और उसे कैसे ज्यादा मजबूत बनाए रखना है. आज 14 सितंबर को सरकार और संस्थाएं हिंदी दिवस मना रही हैं, मगर आप हैरान होंगे कि केंद्र और राज्य सरकारों की करीब 9 हज़ार वेबसाइट्स ऐसी हैं जो पहले अंग्रेजी में खुलती है ? अब आप ही बताइए क्यों ? आज हर स्कूल बच्चों को हिंदी दिवस पर वीडियो बनाकर भेजने को कह रहे हैं, मगर उसी स्कूल की बिल्डिंग में कोई बच्चा हिंदी बोलता सुना जाए तो उसे punish किया जाता है. भला बताइए, क्यों?
अंग्रेजी नहीं, हिंदी की डिमांड बढ़ी है?
आपको एक हकीकत से भी रू ब रू करा दूं. देश का 93 प्रतिशत युवा Youtube पर हिंदी वीडियो ही देखता सुनता है. मतलब अंग्रेजी पसंद वाले सिर्फ 7 प्रतिशत हैं. डिजिटल मीडिया में हिंदी कंटेंट की मांग 94 प्रतिशत की दर से बढ़ी है. मतलब 6 प्रतिशत अंग्रेजी वाले हैं.
तो क्या एक बार फिर से सोचने का वक्त नहीं आ गया कि प्रभु राम, महर्षि वाल्मीकि और भगवान बुद्ध की धरती पर हिंदी को जीवित रखने मात्र नहीं, बल्कि उसे अपनाने का संकल्प हर एक प्राणी का कर्तव्य है. और इस कर्तव्य के जरिए उन्हें राष्ट्र निर्माण की भागीदारी में साथ होना चाहिए. 1918 में गांधीजी ने हिंदी को जनमानस की भाषा बनाने की वकालत की थी. क्या उन्हीं गांधी को बापू कहने वालों का फर्ज नहीं बनता कि अंग्रेजी के हिमायती न बनकर, हिंदी को भारत की भाषा सिर्फ कहने नहीं, बल्कि बनाए रखने के लिए वचनबद्ध होना चाहिए.
जाते जाते ये भी जान लीजिए:
निज भाषा उन्नति अहै
सब उन्नति को मूल
बिन निज भाषा ज्ञान के
मिटत ना हिय को सूल
(अर्थ आपके हवाले)
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