सम्पादकीय

हिंदी दिवस विशेष: क्या दिवस भर मनाने से हिंदी को वो जगह मिल पाएगी जिसकी वह हकदार है?

Gulabi
14 Sep 2021 5:51 AM GMT
हिंदी दिवस विशेष: क्या दिवस भर मनाने से हिंदी को वो जगह मिल पाएगी जिसकी वह हकदार है?
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देश विकास पथ पर अग्रसर हो रहा है, लेकिन लगता है हमसे कुछ छूट रहा है या हम कुछ छोड़ रहे हैं

देश विकास पथ पर अग्रसर हो रहा है, लेकिन लगता है हमसे कुछ छूट रहा है या हम कुछ छोड़ रहे हैं। हम ज्ञानी होकर भी अज्ञानी बन रहे हैं या फिर बना रहे हैं। मैं बात कर रहा हूं अपनी राष्ट्र भाषा हिन्दी के बारे में जो आज मानों बैसाखियों के सहारे चल रही है, वजह सभी को मालूम है परंतु उपचार कोई नहीं करना चाहता। सब ऐसा सोच रहे हैं कि कब यह इन बैसाखियों को छोड़कर मृत शैय्या पर लेटती है। इतिहास में इसके उत्थान को उपाय भी हुए जैसे 14 सितम्बर 1949 के दिन आजादी के बाद हिन्दी को देश की मातृभाषा से गौरवान्वित किया गया। इसी की याद में 1953 में निर्णय लिया गया परिणामस्वरूप प्रति वर्ष 14 सितम्बर को हिन्दी दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।

संविधान के अनुच्छेद 343 में चाहे हिंदी को राजभाषा का दर्जा प्राप्त हुआ व अनुच्छेद 351 के अनुसार बेशक हिन्दी का प्रसार बढाने की बात की गई, लेकिन शायद यह सब कागजों तक सिमट कर रह गया। प्रतिवर्ष हिन्दी के उत्थान को हिन्दी पखवाड़ा, हिन्दी सप्ताह, हिन्दी दिवस मनाया जाता है सरकारों द्वारा इस उपलक्ष्य को मनाने के लिए ठीक-ठाक धन भी मुहैया करवाया जाता है।
सरकारी व निजी कार्यालयों से लेकर स्कूलों, कॉलेजों, में निबंध लेखन, वाद-विवाद प्रतियोगिताएं, चित्र कला प्रतियोगिताएं, कवि सम्मेलन, संगोष्ठियां, अर्थात् तरह-तरह से हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए पुरस्कार-समारोह आदि आयोजित किए जाते हैं, लेकिन क्या एक दिन, एक सप्ताह, एक पखवाड़ा, या ज्यादा से ज्यादा एक महीने तक हिन्दी पर दिखावी हो हल्ला करके हम इसके अस्तित्व को बचा पाएंगे?
सरकारी कार्यालयों में कुछ दिन तक हिन्दी की जय-जय करने के आदेश प्रतिवर्ष आते हैं और इनकी खानापूर्ति महज काग़ज़ काले करके पूरी हो जाती है। इसी तरह हिंदी भाषा के लिए दरियादिली तब दिखाई जाती है जब फंड के रूप में सरकारी प्रोत्साहन मिलता है। जब इन फंडों अनुदानों से कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं तब जरूर शायद हमारे अंदर हिंदी प्रेम कुछ वक्त के लिए जागता है।
हिंदी को बचाने के लिए प्रयास?
आखिर हमारी हिंदी हमसे दूर क्यों हो गई या हमने इसको दूर क्यों कर दिया। बात करें अपने परिवार व समाज की तो आज ये दिन आ गए हैं कि बच्चा अभी चलना फिरना भी नहीं सीखता और हम उसके मुंह में विदेशी भाषा जबर्दस्ती डालने लग जाते हैं।
हम इस बात से डर रहे हैं कि हमारे बच्चे गलती से कहीं हिंदी में बात न कर दें जिससे कि हमें शर्मिंदगी झेलनी पड़े। आज हम तब खुद को बडा़ प्रफुल्लित महसूस करते हैं जब हमारा बच्चा अंग्रेज़ी में गिनती जानता है लेकिन हिंदी में उसे न एक का पता है न दस का न सौ का।
मैं समझता हूं यह कोई प्रफुल्लित होने वाली चीज नहीं इससे तो हमारे अंदर के खोखलेपन का पता चलता है। जब तक हम स्वयं अपने देश की धरोहर हमारी मातृभाषा का सम्मान नहीं करेंगे तब तक हम इसे इसका खोया हुआ सम्मान दिला नहीं पाएंगे। अपनी भाषा से प्रेम भी राष्ट्र भक्ति है वहीं ठीक इसके उल्ट भी ऐसा ही है। किसी भी तरह की भाषा को सीखना उसे बोलना कोई अपराध नहीं हैं परन्तु अपनी भाषा के प्रति हीन-भावना रखना देश के प्रति गद्दारी के समान हैं।
अक्सर देखने में आता है पढ़ा-लिखा युवा वर्ग जो बड़ी-बड़ी कंपनी में नौकरियां कर रहा है उसे आज के समय में न तो हिंदी का कोई भविष्य न ही, हिंदी में अपना भविष्य दिखाई देता है। वह भी सही हैं क्योंकि वह अपने आस-पास के दायरे में रहकर सोच रहा है जो दायरा हमनें उसको दिया है। उसे एक सफल भविष्य चाहिए जिसमे नौकरी, पैसा व नाम हो उसके लिए हिंदी का होना जरूरी नहीं लगता। लेकिन जब वही युवा एक क्षितिज पर खड़ा होकर देश के भीतर झांकता है तो उसे अपने ही लोगों के बीच एक खाई नजर आती है।
यह खाई इन पढ़े-लिखे युवाओं को ही अकेला खड़ा कर देती है क्योंकि देश में आज भी हिंदी भाषाई ज्यादा है। इन पढ़े-लिखे युवाओं में तकनीकी एकता भले ही हो लेकिन मानवीय एकता के लिए हमें अपनी मातृभाषा की ही जरूरत है।
भाषा से परिवार जुड़ता है समाज में एकता आती है
भाषा ही वह इकाई है जो व्यक्ति को आपस में जोड़ती है, व्यक्ति आगे परिवार को जोड़ता है वही परिवार समाज को जोड़ता है और इस तरह समाज से गांव, नगर, शहर व देश बनता है। देश का विकास तब होगा जब भाषा का विकास होगा भाषा का विकास तब होगा जब हम व्यक्तिगत रूप से इससे जुड़ेंगे व जोड़ेंगे। हमें यह इंतजार नहीं करना होगा कि आज 14 सितंबर हिंदी राष्ट्रीय दिवस है या 10 जनवरी अंतरराष्ट्रीय हिंदी दिवस है।
हमें तो प्रत्येक दिन को हिंदी दिवस समझना चाहिए क्योंकि जब तक आप मन से किसी चीज से नहीं जुड़ते तब तक आप पर चाहे सैकड़ों दिवस थोप दिए जाएं या सैंकड़ों आदेश जबर्दस्ती लागू करवा दिए जाए उस भाषा का विकास नहीं हो सकता।
आज बेशक चाहे युवा वर्ग हिंदी को लेकर हीन भावना का शिकार है लेकिन यह उसकी कमी नहीं यह कमी है हमारे संस्कारों की जो हमनें हिंदी की बजाए अन्य भाषा में जबर्दस्ती उस पर थोपे जिस कारण आज वह खुद को हिंदी में बोलने लिखने से भी शर्म महसूस करने लग गया।
वह भाषा जिसे विदेशों से लोग सीखने के लिए देश में आते हैं परंतु हम खुद उससे मुख मोड़ रहे हैं जो बेहद आत्मचिंतन का विषय है। हिंदी प्रत्येक भारतीय नागरिक के विकास की नींव हैं। नींव को छोड़कर हम कुछ देर तक जरूर हवाई महल खड़ा कर सकते हैं परन्तु दीर्घकाल तक नहीं।
शहरों और गांवों का मतभेद संसाधनों के रूप में ही नहीं भाषा के रूप में भी है और इस मतभेद को अपनी भाषा से ही दूर किया जा सकता है। हिंदी ही वह भाषा है जो हमारी अमूल्य संस्कृति को सहेज कर रखे हुए है। हम आप देश के किसी भी कोने से संबंधित हों लेकिन हमें एक भारतीयता की पहचान करवाती है हिंदी।
विश्व में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषाओं में से एक है हमारी हिन्दी भाषा के उत्थान के लिए हमें न तो किसी दिवस का मोहताज होना चाहिए न ही हमें किसी पुरस्कार या सम्मान की आस रखनी चाहिए कि हमें यह मिलेगा हम तब इसको बढ़ावा देंगे, यदि हम अपनी राज भाषा को बढ़ावा देंगे तो यह बढ़ावा भाषा ही नहीं बल्कि देश के विकास को बढ़ावा देने वाली बात होगी।
देश के विकास से बडा़ कोई और पुरस्कार नहीं हो सकता। हमें प्रण लेना चाहिए कि हर दिन अपनी भाषा के नाम हो, हो सके तो हर जरूरी काम अपनी भाषा में हो। हमारे संस्कार ऐसे हों कि आने वाली पीढ़ी में कम से कम अपनी भाषा का मौलिक ज्ञान तो जरूर हो। यह हम सबकी अपनी भाषा है और इससे हमें आत्मीयता से जुड़ने व सहेजने की जरूरत है।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए जनता से रिश्ता उत्तरदायी नहीं है।
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