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- हिंदी दिवस विशेष:...

कहते तो हम हिंदी को अपनी बिंदी है, परंतु हम इस भाषा को कितना सम्मान देते हैं, वो सोचने का विषय है। कल ही मेरा एक मित्र सवेरे-सवेरे मेरे घर आया। औपचारिकतावश दरवाजे पर दस्तक देते हुए बोला, 'गुड मॉर्निंग, बाली भाई। मे आई कम इन? मित्र अंदर आया और हम बातें करने लगे। मित्र हिंदी का प्रकांड पंडित है। बातों ही बातों में हिंदी दिवस की बात भी चल पड़ी। अब मित्र हिंदी की वकालत करने लगा। बातों-बातों में अंग्रेज़ी को गुलामी की भाषा कह कर हाथ धोकर उसके पीछे पड़ गया। जब मुझसे रहा नहीं गया, तो मैंने उससे कहा, 'तुम तो हिंदी के पंडित व पैरोकार हो, फिर भी कमरे में आते समय तुमने अंग्रेज़ी के ही शब्दों का इस्तेमाल करना उचित क्यों समझा? मित्र थोड़ा असहज हो गया। कुछ क्षण खामोश रहा और फिर उखड़ कर चल दिया। ऐसा ही है हमारा हिंदी के प्रति दोहरा रवैया। पैरवी हिंदी की करेंगे, परंतु तरजीह अंग्रेज़ी को देंगे। हिंदी को राष्ट्र की बिंदी कहेंगे, परंतु नर्सरी कक्षा से बच्चों को अंग्रेज़ी माध्यम वाले स्कूल
जगदीश बाली लेखक शिमला से हैं।
