- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- भावनात्मक एकता में...

x
समाज में एकता के लिए भाषा का माध्यम अनिवार्य अंग है। जिस देश में राष्ट्रीय सहानुभूति के लिए भाषा का आशीर्वाद नहीं होता वहां जातीय जीवन के लक्षण परिलक्षित नहीं होते। जहां विचार विनिमय की एकता का साधन भाषा एक नहीं अपितु अनेक रूपों में उपलब्ध हो वहां एकता संजोने में कठिनाई हो सकती है। एक विचार शैली, एक विचारधारा, एक भाषा से ही अद्भुत होती है। इसकी अनेकता समाज की अनवरत अवनती का कारण है। संसार के सभी राष्ट्रों में उन्नत भाषा की दो शैलियां परलक्षित होती हैं। इनमें से एक साहित्यिक भाषा है और दूसरी व्यावहारिक। यदि हम अपने देश के प्राचीन इतिहास को लें, तो उसमें भी दो शैलियां प्रचलित रही हैं। एक उनकी साहित्यिक भाषा संस्कृत थी और व्यावहारिक भाषा नाना प्रकार की प्राकृतिक उपभाषाएं थी। कालक्रम से वह प्राकृतिक उपभाषाएं वर्तमान जान भाषा में परिवर्तित होकर महत्व प्राप्त करने लगी और धीरे-धीरे संस्कृत गौण हो गई।
इस संस्कृत भाषा का स्थान धीरे धीरे हिन्दी लेने लगी है। किसी भी राष्ट्र की पहचान प्रधानता तीन बातों से होती है। यह तीन राष्ट्रध्वज, राष्ट्रगान और राष्ट्रभाषा हैं। इन तीनों में ही राष्ट्रभाषा सर्वोपरि है जो समस्त देशवासियों को एकता के सूत्र में पिरोती है। हिंदी हमारे देश की राष्ट्रीय भाषा भावात्मक एकता, अखंडता और राष्ट्रीय एकता की भाषा है। देशवासियों को एकता में जोड़ती है। भौगोलिक और सांस्कृतिक विविधताओं से भरे भारतवर्ष को संगठनात्मक एकता में संगठित करती है। हिंदी ही भारतीयों के सांस्कृतिक जागरण और राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन की भाषा रही है। यह राष्ट्र की सामाजिक, सांस्कृतिक से लेकर देश की अस्मिता तक की पहचान है। हिंदी से ही हमारा साहित्य लोक साहित्य अनुप्रणीत है। इससे ही हम अपना सुख-दुख बांट पाते हैं। भावों की वाटिका और जीवन का साथी है। प्रगति की प्रेरणा है। इसमें जीवन के तत्व छिपे हैं। इतिहास, परंपरा, संस्कृति और धर्म दर्शन अपनी भाषा हिंदी से भरे हैं। भारत की संविधान सभा ने 14 सितंबर 1949 को भारत गणराज्य की आधिकारिक भाषा के रूप में हिंदी को अपनाया, हालांकि इसे 26 जनवरी 1950 का देश के संविधान द्वारा आधिकारिक भाषा के रूप में इस्तेमाल करने के विचार को मंजूरी दी गई। हर वर्ष देश 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाता है क्योंकि 1950 के अनुच्छेद 343 के तहत इस दिन भारत के संविधान सभा ने देवनागरी लिपि में लिखी गई हिंदी भाषा को भारत गणराज्य की आधिकारिक भाषा के रूप में हिंदी को अपनाया। तब से लेकर हिंदी भाषा की यात्रा निरंतर प्रगति की ओर बढ़ रही है। हिंदी सिनेमा, साहित्य, योग, कथा प्रवचन कारों की मदद से हिंदी विदेशों में भी अपना अस्तित्व बनाने में कामयाब हुई है और इसे इक्कीसवीं सदी की भाषा के रूप में जाना जाने लगा है। इसकी लोकप्रियता को देखकर अनेक विदेशी अंग्रेजी चैनलों ने अपना हिंदी में प्रसारण प्रारंभ किया है। हिंदी विश्व की चौथी ऐसी भाषा है जिसे सबसे ज्यादा लोग बोलते हैं। ताजा आंकड़ों के मुताबिक वर्तमान में भारत में 44 फीसदी लोग हिंदी भाषा बोलते हैं। पूरे विश्व की बात करें तो दुनिया में तकरीबन 80 करोड़ लोग ऐसे हैं जो उसे बोल या समझ सकते हैं। भारत के बाहर हिंदी जिन देशों में बोली जाती है उनमें पाकिस्तान, भूटान, नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका, मालदीव, म्यांमार, इंडोनेशिया, सिंगापुर, थाईलैंड, चीन, जापान, ब्रिटेन, जर्मनी, न्यूजीलैंड, दक्षिण अफ्रीका, मॉरीशस, यमन, युगांडा और कनाडा आदि देश शामिल हैं।
12वां विश्व हिंदी सम्मेलन नाडी फीजी में 15 से 17 फरवरी 2023 को फीजी सरकार के सहयोग से आयोजित किया गया, जिसका मुख्य विषय ‘हिंदी पारंपरिक ज्ञान से कृत्रिम बुद्धिमत्ता तक’ था। पूर्ण सत्र में इस विषय पर चर्चा की गई। सम्मेलन के दौरान हिंदी प्रसार के लिए भारत से कुल 12 हिंदी विद्वान और विदेशों से 19 विद्वानों के साथ-साथ भारत और विदेश के दो-दो संस्थाओं को सम्मान के लिए चुना गया। इससे पहले विश्व हिंदी सम्मेलन मॉरीशस में हुआ था और यह सम्मेलन विभिन्न तरीकों और पहलुओं के माध्यम से हिंदी को बढ़ावा देने में कामयाब रहा था। इसके अतिरिक्त लंदन, सूरीनाम, न्यूयॉर्क और जोहांसबर्ग में भी सम्मेलन हिंदी को वैश्विक भाषा बनाने के लिए हुए हैं ताकि हिंदी का प्रचार व प्रसार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हो सके। हिंदी एक समृद्ध, भाषिक साहित्यिक एवं सांस्कृतिक परंपरा की वाहिनी है। अपनी जननी संस्कृत की उत्तराधिकारिणी से उसे गंभीर शब्द संपदा और प्रखर व्याकरण गरिमा प्राप्त है। यह समस्त भारतीय आदान-प्रदान की संपर्क भाषा है तथा कश्मीर से कन्याकुमारी तक समझी और बोले जाने वाली भाषा है। यह नित्य प्रति अभिनंदनीय है। लेकिन खेद की बात है कि कुछ लोग हिंदी बोलने तथा उसका प्रयोग करने में शर्म महसूस करते हैं, जबकि गौरव की बात होनी चाहिए। अंग्रेजी मीडियम वाले स्कूलों में भी अगर बच्चे हिंदी का प्रयोग करते हैं तो अध्यापक उन्हें डांट देते हैं और अंग्रेजी का प्रयोग करने के लिए बाध्य करते हैं। यह स्थिति हिंदी के लिए अवश्य ही प्रतिकूल है। कम से कम सरकारी स्तर पर हिंदी का प्रयोग करना गौरव की बात होनी चाहिए। हिंदी को यह स्थान अभी प्राप्त करना है।
निखिल शर्मा
शिक्षाविद
By: divyahimachal
Next Story