- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- भारत पर हिंदी और हिंदू...
कलाप्रवीण व्यक्ति प्रदर्शन; प्रधानमंत्री मोदी एक धर्मनिष्ठ हिंदू हैं। अधिकतर भारतीय धर्मनिष्ठ हिंदू हैं। दूसरे अन्य लोग, जो हिंदू नहीं हैं, वे भी समान रूप से दूसरे धर्मों के प्रति आस्थावान हैं। महाकालेश्वर मंदिर जाकर मोदी ने पूजा-अर्चना की और जितना मैं देख पाया, उस कार्यक्रम के हर मिनट का सभी चैनलों पर कर्तव्यपरायणता के साथ सीधा प्रसारण किया गया। गर्भगृह में उन्हें एक सुनहरा अंगवस्त्रम और एक भगवा दुपट्टा ओढ़ाया गया। उनके माथे पर चंदन का लेप और एक बड़ा-सा तिलक था। जब उन्होंने सभा को संबोधित किया (मुझे लगता है कि लगभग सभी हिंदुओं को), तो साफ लग रहा था कि उन्होंने अच्छी तैयारी की थी।
उन्होंने पूरे देश में स्थित प्राचीन नगरों और उनके महान मंदिरों का स्मरण किया। उन्होंने शास्त्रों से संस्कृत की पंक्तियां उद्धृत की। शिवभक्ति के महत्त्व पर विस्तार से बात की। हालांकि यह स्पष्ट नहीं था कि उन्होंने उन पंक्तियों को रटा था या उनके सामने टेली-प्रांपटर पर वे चलाई जा रही थीं (टीवी कैमरे से वह छिपा हुआ था)। जो भी हो, वह एक प्रभावशाली प्रदर्शन था।
वह कोई आम उद्घाटन भाषण नहीं था। उसे प्रवचन कहा जा सकता है, किसी हिंदू उपदेशक द्वारा सभी हिंदू श्रोताओं को दिया जाने वाला एक आध्यात्मिक प्रवचन, जो उनके हर शब्द को पसंद करते हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि भारत एक महान आध्यात्मिक यात्रा पर है और 'हम भारत के आध्यात्मिक गौरव को आगे बढ़ा रहे हैं'। उन्होंने अपने भाषण का समापन कई बार 'जय जय महाकाल' के जाप के साथ किया, जिसे श्रोताओं ने बड़े उत्साह के साथ दोहराया। संदेश साफ था कि श्री मोदी के इतिहास के पन्नों में भारत एक हिंदू भारत है और उनके सपनों का भारत एक हिंदू भारत होगा।
सब कुछ चित्रमय लग रहा था। मगर उसमें एक बात बार-बार याद आ रही थी कि श्री नरेंद्र मोदी कोई आम आदमी नहीं, बल्कि भारत के माननीय प्रधानमंत्री हैं- एक ऐसे राष्ट्र के, जो हिंदुओं (79.8 प्रतिशत), मुसलिम (14.2), ईसाई (2.3), सिख (1.7) और अन्य (2.0) से बना है- और वे भारत के संविधान के अनुसार, भारत के सभी लोगों के लिए काम करने और बोलने को बाध्य हैं। वह भारत, जो पिछले दो हजार वर्षों में बना है, और जो हमारे सपनों का भारत बनेगा, वह हर भारतीय द्वारा बनाया जाएगा, चाहे उसकी आस्था कुछ भी हो। इसीलिए संविधान में स्पष्ट रूप से 'समानता' का उल्लेख है और 'धर्मनिरपेक्षता' पर जोर देने के लिए संविधान में संशोधन किया गया था, जो हमेशा से एक गणतांत्रिक भावना के रूप में निहित था।
मुझे खुशी है कि प्रधानमंत्री उज्जैन के उद्घाटन समारोह में गए, लेकिन मैं उन्हें किसी मस्जिद या गिरजाघर के जीर्णोद्धार/ प्रतिष्ठापना में भी देखना चाहता हूं। मुझे खुशी है कि प्रधानमंत्री ने हिंदुओं की आध्यात्मिक यात्रा के बारे में बड़े सुंदर ढंग से बात की, लेकिन मैं चाहूंगा कि वे मुसलमानों, ईसाइयों और अन्य लोगों की आध्यात्मिक यात्रा का भी उत्सव मनाएं। मुझे खुशी है कि प्रधानमंत्री ने हिंदू धर्मग्रंथों का हवाला दिया, लेकिन मैं चाहूंगा कि वे कभी-कभी बाइबिल से कोई प्रेरक प्रसंग या कुरान से कोई गंभीर आयत या गुरु ग्रंथ साहिब से कोई भावपूर्ण भजन भी उद्धृत करें।
जब प्रधानमंत्री हिंदू धर्म का उत्सव मना रहे थे, तब गृहमंत्री चुपचाप हिंदी भाषा को आगे बढ़ा रहे थे। गृहमंत्री राजभाषा समिति के पदेन अध्यक्ष होते हैं। इसकी ग्यारहवीं रिपोर्ट 9 सितंबर, 2022 को राष्ट्रपति को सौंपी गई, मगर उसे गुप्त रखा गया। जब 'द प्रिंट' ने उसके संबंध में समाचार प्रकाशित किया, तो लोगों को उसके बारे में जानकारी मिली। वह खबर निश्चित रूप से भारत के गैर-हिंदीभाषी राज्यों में चर्चा का विषय बनेगी।
केंद्रीय विद्यालयों, आइआइटी, आइआइएम और केंद्रीय विश्वविद्यालयों में शिक्षा का अनिवार्य माध्यम हिंदी होगी। प्रश्न: क्या गैर-हिंदीभाषी राज्यों में स्थित केवी, आइआइटी, आइआइएम और केंद्रीय विश्वविद्यालयों में भी शिक्षा का माध्यम हिंदी होगी? क्या हिंदी शिक्षा का एकमात्र माध्यम या शिक्षा का वैकल्पिक माध्यम होगी?
जानबूझ कर हिंदी में काम न करने वाले सरकारी अधिकारियों से स्पष्टीकरण मांगा जाएगा। प्रश्न: क्या एक अधिकारी, जिसकी भाषा बांग्ला, ओड़िया या तमिल है, उसे हिंदी सीखने और अपना आधिकारिक काम हिंदी में करने के लिए मजबूर किया जाएगा?
शिक्षा के माध्यम के रूप में अंग्रेजी को केवल वहीं रखा जाएगा, जहां यह अत्यंत आवश्यक हो और उसे धीरे-धीरे हिंदी द्वारा प्रतिस्थापित किया जाएगा। प्रश्न: क्या माता-पिता और छात्र को अब उस भाषा को चुनने का अधिकार नहीं होगा, जिसमें छात्र पढ़ेगा और पढ़ाया जाएगा?
सरकारी कर्मचारियों के चयन के लिए हिंदी का ज्ञान सुनिश्चित किया जाएगा। प्रश्न: क्या एक गैर-हिंदीभाषी व्यक्ति को इस आधार पर सरकारी नौकरी देने से मना कर दिया जाएगा कि वह हिंदी नहीं जानता है?
सरकार के विज्ञापन बजट का पचास प्रतिशत हिंदी विज्ञापनों के लिए आबंटित किया जाना चाहिए। प्रश्न: अगर बाकी पचास प्रतिशत अन्य सभी भाषाओं (अंग्रेजी सहित) में विज्ञापनों के लिए आबंटित किया जाता है, तो क्या यह गैर-हिंदी मीडिया के लुप्त होने की गति को तेज नहीं करेगा?