सम्पादकीय

हिमकेयर का सुरक्षाबंधन

Rani Sahu
12 April 2022 7:07 PM GMT
हिमकेयर का सुरक्षाबंधन
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हिमाचल में सामाजिक सुरक्षा के मुहावरों में अपना नाम दर्ज करती जयराम सरकार ने, हिमकेयर के दायरे और बढ़ा दिए हैं

हिमाचल में सामाजिक सुरक्षा के मुहावरों में अपना नाम दर्ज करती जयराम सरकार ने, हिमकेयर के दायरे और बढ़ा दिए हैं। आयुष्मान भारत की नब्ज पर राखी बांधते हुए वर्तमान सरकार ने सभी प्रदेशवासियों के लिए हिमकेयर के तहत पांच लाख तक स्वास्थ्य सेवाओं का सुरक्षा चक्र उपलब्ध कराया है, जिसे एकमुश्त तीन साल की गारंटी के साथ जोड़ा जा रहा है। अब हजार रुपए का प्रीमियम चुकाने पर कोई हिमाचली तीन साल के लिए योजना का लाभार्थी हो जाएगा। प्रदेश सरकार का दावा है कि हिमकेयर के तहत 2.62 लाख मरीज अब तक लाभ उठा चुके हैं और इसके लिए प्रदेश सरकार 241.72 करोड़ व्यय कर चुकी है। सरकार अपनी इस योजना को विस्तार देते हुए चुनावी फलक को फांद सकती है या सामाजिक सुरक्षा की परंपरा में अपने दक्ष हस्ताक्षर कर रही है, यह वर्तमान परिदृश्य की सबसे बड़ी राजनीतिक महत्त्वाकांक्षा से आगे चल कर जाहिर होगा। इतना तय है कि 'हिमकेयर' योजना का श्रीगणेश करके जयराम सरकार ने अपने हिस्से का साधुवाद बटोरा है और अब इसे तीन साल तक फैला कर एक तरह का आश्वासन भी मिल रहा है।

इस तरह तेजी से फाइलों पर हो रहे हस्ताक्षर हिमाचल में भी लाभार्थी पक्ष को जोड़ रहे हैं। पांच राज्यों के चुनावों में श्रेष्ठ परिणाम देख चुकी भाजपा ने अपनी सत्ताओं को लाभार्थियों के प्रति सतर्क कर दिया है। ऐसे में मुफ्त की तश्तरी पर सजे उपहारों की बानगी में आगे चल कर कुछ नए, आक्रामक व सौहार्दपूर्ण फैसले होने की उम्मीद है। ये फैसले सामाजिक सुरक्षा के दायरे में चिकित्सा के बाद शिक्षा, सामाजिक देखरेख, जनोपयोगी सुविधाओं, बिजली-पानी की आपूर्ति, राजस्व सेवाओं, व्यापार-धंधों को मंदी से बचाने से त्योहार मनाने तक हो सकते हैं। कौन जानता है कि आगामी चुनाव जब तक जनता के सामने आता है, तब तक राजनीतिक युद्ध के मोर्चे पर कई संभावनाएं और कई तरह की आजमाइश भी न्योता दे रही होगी। सरकार को राजनीतिक विकल्पों के सामने अपनी उज्ज्वल तस्वीर पुनः पेश करनी है, तो पेशगी के तौर पर अब तक की अड़चनों को समाप्त करने की तहरीर, इच्छा-शक्ति व संकल्प दोहराने होंगे। विकास के लिए नए जम्बूरे और मन को मोहने के लिए मोर भी नाचेंगे। वर्गीय संतुलन की कशमकश में जनता को साधने की करवटें जब विपक्ष करेगा, तो मसला रैली के बदले रैली या घोषणा के सामने घोषणा का नहीं रहेगा, बल्कि जादू की छड़ी दिखाने का भी है।
यह जादू की छड़ी यह नहीं जानती कि इसको पेश करने की कीमत अदा करता सरकारी खजाना कहां तक अटक जाता है। श्रीलंका में आर्थिक दहन जिस तरह हुआ, उसके बाद केंद्रीय स्तर पर वित्तीय फिजाएं अब पूछ रही हैं कि कर्ज बोझ से दबी राज्य सरकारों को कैसे बचाया जाए। पंजाब जैसा राज्य ही अगर अपने सकल घरेलू उत्पाद में पचास फीसदी कर्ज के बोझ में डूबा है, तो किस पार्टी की सरकार अलंकृत हो सकती है। मतदाता को मुफ्त की कतारों में कब तक पनाह मिलेगी, क्योंकि बाजारों में महंगाई का हड़कंप आम आदमी को दंश दे रहा है। सारे देश में सार्वजनिक कर्ज की चिंता के बजाय मुफ्त की बंदरबांट के पैमाने तय हो रहे हैं, तो यह होड़ किस मुकाम पर ले जाएगी। सामाजिक सुरक्षा के दावों के बीच जनता को उचित शिक्षा या सक्षम चिकित्सा के लिए अगर निजी संस्थानों का जखीरा मिल रहा है, तो राज्यों की काबिलीयत पर कब किसको भरोसा होगा। बहरहाल हिमाचल ने 'हिमकेयर' के अजूबे में समाधान तो खोजा है, लेकिन जिन चिकित्सा संस्थानों में इसकी पर्ची चलती है, वहां गुणवत्ता व योजना के सदुपयोग की मानिटरिंग भी चाहिए। पांच लाख की धनराशि जान बचा सकती है, लेकिन यह उपभोग की राशि बन गई तो सरकारी धन की छीनाझपटी में छात्रवृत्ति घोटाले की तरह, पद्धति को चुराने वाले भी तैयार हो जाएंगे। अतः सरकार द्वारा एक अच्छे दखल को इसकी पूर्णता तक पहुंचाने के लिए निरीक्षण पद्धति को अमल में लाने की जरूरत के साथ आम नागरिक के लिए इसे सुविधाजनक बनाने की आवश्यकता रहेगी।


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