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- हिमाचल की सामरिक...
भारत के लिए दुर्भाग्य की बात यह है कि पश्चिमी सरहद पर दहशतगर्दी का मरकज हमशाया मुल्क पाकिस्तान आतंक व नशीले पदार्थों का निर्यातक बन चुका है, वहीं पूर्वोत्तर सीमा पर भू-माफिया चीन जो किसी अंतरराष्ट्रीय कायदे या कानून को नहीं मानता, खामोशी से अपने विस्तारवादी मंसूबों को अंजाम दे रहा है। इस बात में कोई संदेह नहीं कि भविष्य के युद्धों में भारतीय सेना को 'टू फ्रंट वार' का सामना करना होगा, यानी पूर्वोत्तर में चीन तथा पश्चिमी महाज पर पाकिस्तान से भी निपटना पडे़गा। सैन्य टकराव में युद्ध के मोर्चों पर दुश्मन का सामना करने वाली भारतीय सेना के लिए वीरभूमि हिमाचल की सामरिक भूमिका बेहद अहम होगी। राज्य में सामरिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण मनाली को लेह से जोड़ने वाली 9.02 किलोमीटर लंबी 'अटल टनल' के वजूद में आने के बाद चीन के सैन्य गलियारों की हरारत बढ़ चुकी है। आधुनिक तकनीक से लैस यह टनल किसी भी स्थिति में भारतीय सशस्त्र सेनाओं को अपने साजो-सामान के साथ लद्दाख घाटी में 'एलएसी' पर पहुंचाने में कारगर साबित हो चुकी है। इस टनल के निर्माण से लद्दाख में पैंगोग झील तक भारतीय सेना की पहंुच काफी आसान हो चुकी है। 14 देशों के साथ लगती अपनी सीमाओं को 'सलामी स्लाइसिंग' रणनीति के तहत अतिक्रमण में जुटे चीन के सिपहसालारों को इस बात का भली-भांति इल्म है कि जमीनी युद्धों में उसकी 'पीएलए' (पीपल लिबरेशन आर्मी) को दुनिया में केवल भारतीय थलसेना ही नेस्तनाबूद कर सकती है। इसका उदाहरण 5 जून 2020 को पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में भारतीय सरजमीं को कब्जाने का दुस्साहस करने वाली चीनी फौज को हमारे शूरवीर सैनिकों ने मुंहतोड़ जवाब देकर कई चीनी सैनिकों को जहन्नुम का रास्ता दिखा दिया था। उस खूनी सैन्य संघर्ष में हमारे 20 जांबाजों ने मातृभूमि की रक्षा में शहादत को गले लगा लिया था। उसी सैन्य संघर्ष में हिमाचली सपूत अंकुश ठाकुर 'सेना मैडल' ने भी अपना सर्वोच्च बलिदान दिया था, मगर चीन ने गलवान के सैन्य संघर्ष में भारतीय सेना द्वारा मारे गए अपने मरहूम सैनिकों की मौत की हकीकत को दुनिया में बेआबरू होकर कई महीनों के बाद स्वीकार किया था।