सम्पादकीय

हिमाचल का चुनावी समाज

Rani Sahu
11 Sep 2022 6:55 PM GMT
हिमाचल का चुनावी समाज
x
By: divyahimachal
आगामी विधानसभा चुनाव में हिमाचल की मंजिलें और मुद्दे बचेंगे या अति सियासत के शोर में इनकी सार्थकता ही डूब जाएगी। फिलहाल चुनाव के इंतजार में कुछ वर्ग जरूर हैं, लेकिन अधिकांश राजनीतिक लाभ को मुंह पर मलना चाहते हैं। इसलिए नए उम्मीदवारों की पांत लंबी और मुद्दों की जमात छोटी न•ार आ रही है। न संघर्ष का ताप और न ही बेरोजगारी का उन्माद दिखाई दे रहा है। आश्चर्य यह कि हिमाचल चुनाव में भ्रष्टाचार के आरोप 'आप' और कांग्रेस पर लग रहे हैं, जबकि सत्ता की शिकायतों की घेराबंदी दिखाई नहीं दे रही। चुनाव से बड़े दलबदल कर रहे नेता हो रहे हैं और इस परिदृश्य में भी समाज को कोई स्पष्ट ऐतराज नहीं है। यह चुनाव का हिमाचली समाज है, जो स्वार्थ के गठजोड़ में इतना माहिर हो चुका है कि उसके पास अपने भविष्य की कोई मनोकामना नहीं बची। यह दीगर है कि चुनाव की हर तह में प्रदेश का बजट डूब रहा है और हम खुश हैं कि चलो 'भागते चोर की लंगोटी' से कोई कालेज या स्कूल निकल आए।
हैरत यह कि अपने गुमशुदा वोटर को रिझाने के लिए कुछ मंत्री अपनी ही सरकार के बाहर फरमान जारी कर रहे हैं। राकेश पठानिया नूरपुर को जिला बनाने की रट पर अपना अस्तित्व दुरुस्त करना चाहते हैं, तो सदा से धर्मपुर का किला बना रहे महेंद्र सिंह अपने राजनीतिक क्षेत्र की अब नए जिला से नाकेबंदी करना चाहते हैं। यानी कि मंत्रियों के बचाव के लिए अब नए बहाने ढूंढे जा रहे हैं। ऐसे में हिमाचल की वास्तविक तस्वीर पर आगामी चुनाव फिर गुनाहगार बनकर कितने टुकड़े बटोरेगा, कोई नहीं जानता। प्रश्न यह कि क्या हिमाचली प्रतिभा की मंजिल हिमाचल बन पाया या प्रदेश की प्रगति से मंजिलें बनीं। अब तो यह प्रतीत होता है कि हिमाचल अपनी जवानी का सही इस्तेमाल करने के बजाय युवाओं को सियासत के कीचड़ में घसीटने को वरीयता देता है। न जाने कितने हिमाचली अपनी प्रतिभा, क्षमता और जवानी के दौर में प्रदेश से बाहर निकल जाते हैं और अंत में अक्षम बुढ़ापा लिए लौट आते हैं। आश्चर्य यह कि आम हिमाचली अपनी आर्थिक क्षमता को प्रकट करता हुआ पड़ोसी राज्यों, चंडीगढ़ व दिल्ली तक सपनों का घर बसाकर वहां की जीडीपी बढ़ा रहा है। अकेले चंडीगढ़ में हर साल करीब पंद्रह हजार छात्र शिक्षा के जरिए, प्रतिस्पर्धी परीक्षाओं के लिए पहुंच जाते हैं, फिर भी प्रदेश यह नहीं सोचता कि शिक्षा की ऐसी मंजिल कैसे बनेगी। ग$फलत यह कि नए स्कूल-कालेजों के शिलान्यास से ही राज्य का सीना चौड़ा किया जा रहा है।
Powered By
VDO.AI
Video Player is loading.
PlayUnmute
Fullscreen
हर साल रोजगार की उत्कृष्ट तलाश में हिमाचल की बेहतरीन प्रतिभा बेंगलूर, चंडीगढ़, दिल्ली, गुडग़ांव, नोएडा, पुणे व अन्य महानगरों की ओर निकल जाती है, लेकिन राज्य ने यह सोचा ही नहीं कि उच्च कोटि का रोजगार अपने यहां कैसे पैदा किया जाए। हिमाचल की औद्योगिक नीति के कारण हुआ निवेश जिस रोजगार का सेहरा पहने खड़ा है, वहां प्रदेश की काबिलीयत के बजाय बाहरी लोगों की क्षमता का इस्तेमाल हो रहा है। प्रदेश के बाहर निकले आईटी प्रोफशनल की गिनती में सैकड़ों युवाओं का ऐसा समूह है, जो हिमाचल की आर्थिकी बदल सकता था, बशर्ते यहां कुछ आईटी पार्क बन चुके होते। हम हिमाचली युवाओं को या तो विवशताओं में बाहर निकल कर शिक्षा व रोजगार की तरफ धकेल रहे हैं या ऐसी क्षमता को निरूपित कर रहे हैं जो प्रदेश में रहते हुए, राजनीतिक दृष्टि की बंधुआ है। इसी के अनुरूप नीतियां, नियुक्तियां और राज्य का दिशा निर्धारण हर चुनाव को निकृष्ट कर देता है। चुनाव के दौरान न तो सत्ता के प्रदर्शन की समीक्षा होती है और न ही राज्य के प्रति गंभीर चिंतन की शुरुआत होती है। इस बार तो और भी कमाल होने जा रहा है, क्योंकि राजनीतिक दलों ने अपने कुनबों के प्रति अगंभीर होते हुए दलबदल के ऐसे मोहरे चुनने शुरू कर दिए हैं, जिन्हें असहाय जनता केवल सहन करती रहेगी।
Rani Sahu

Rani Sahu

    Next Story