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जयराम सरकार के लिए यह क्षण आत्म संतोष भरी कर्मठता है
divyahimachal.
जयराम सरकार के लिए यह क्षण आत्म संतोष भरी कर्मठता है और यह प्रमाणित कर रहा है कि कोविड के दौर में सुशासन के दस्तखत कितने गहरे व गंभीर हो सकते हैं। अठारह साल से ऊपर की सारी जनता को, वैक्सीनेशन का प्रथम टीका अगर सौ फीसदी हो पा रहा है, तो यह राष्ट्र के सामने एक नजीर है। वैक्सीनेशन के प्रति राज्य की गंभीरता में सरकार के साथ नागरिक समाज का खड़ा होना, तमाम रूढिय़ों से परे हिमाचली जनमानस की आधुनिक व वैज्ञानिक दृष्टि का द्योतक भी है। विभिन्न राज्यों से कहीं आगे हिमाचल का यह दस्तूर काबिले तारीफ होते हुए, प्रधानमंत्री की आंखों का तारा भी बन रहा है और इसी के परिप्रेक्ष्य में 6 सितंबर का संवाद, राष्ट्रीय अवधारणा बदल सकता है। यह संवाद भले ही कोविड वैक्सीनेशन के मजमून की छाती ठोंकेगा, लेकिन केंद्र सरकारों से हिमाचल का संवाद अभी अधूरा और कमजोर ही दिखाई देता है। राष्ट्रीय योजनाओं की मेहरबानियों में जीता यह प्रदेश अपने नखशख से केंद्र सरकारों के प्रति समर्पित हो रहा है।
यही वजह है कि राष्ट्र की तमाम योजनाओं का हिमाचली उल्लेख हमेशा श्रेष्ठ साबित हुआ, लेकिन राष्ट्र निर्माण के बजटीय आंकड़े व मानदंड पर्वतीय प्रदेश की साहसिक तथा क्रांतिकारी इच्छाओं को परिमार्जित नहीं कर पाए। कारण केवल यही कि सत्ता के आंकड़ों में सुशासित प्रदेश की सियासी शक्ति लघु आकार में दिखाई देती है या इस राज्य की भलमनसाहत दूसरे अनेक छोटे राज्यों की अराजकता व असंतोष के आगे ठिगनी हो जाती है। इस लिहाज से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संवाद से नए निष्कर्ष तभी निकलेंगे, अगर हिमाचल को पुरस्कृत करने के पैमाने भी बदले जाएं। शाबाशियों की तहरीर में हिमाचली योगदान को हमेशा देश अंगीकार करता रहा है, लेकिन प्रदेश के न्यायोचित अधिकार आज भी गिरवी हैं। पंजाब पुनर्गठन के वर्षों बाद और पूर्ण राज्यत्व के जयंती वर्ष तक पहुंचने के बावजूद हिमाचल के अधिकार तिरोहित हैं। सरहद पर कुर्बानियों का इतिहास लिखने वाले हिमाचल को सैन्य भर्ती कोटे ने बार-बार रोका-टोका है। डोगरा रेजिमेंट का इतिहास लिखने की गाथाओं में जो प्रदेश भूगोल नहीं, बलिदान का नक्शा है, उससे कहीं दूर रेजिमेंट का मुख्यालय उत्तर प्रदेश के फैजाबाद में है। न तो हिमाचल या हिमालय रेजिमेंट के गठन पर कभी गौर हुआ और न ही डोगरा रेजिमेंट मुख्यालय को हिमाचल में स्थानांतरित करने पर केंद्र ने गंभीरता दिखाई।
इसी तरह जल तथा वनाधिकारों के रूप में हिमाचल के प्राकृतिक संसाधनों को राष्ट्रीय इज्जत नहीं मिली, वरना पर्यावरण संरक्षण के नाम पर वन अधिनियम के तहत आर्थिक भरपाई होती और जल संसाधन को कच्चा माल मानते हुए प्रति यूनिट विद्युत उत्पादन पर कर अदायगी का लाभ मिलता। हिमाचल को फल,पर्यटन, आईटी तथा हर्बल राज्य बनने के लिए केंद्र सरकार का प्रश्रय चाहिए। अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने औद्योगिक पैकेज के मार्फत हिमाचल को फार्मा राज्य बना दिया था, इसी तरह रेल पैकेज मिले तो कनेक्टिविटी का नया आधार राज्य के उत्पादन को आर्थिकी से जोड़ सकता है। हिमाचल से प्रधानमंत्री का संवाद जाहिर तौर पर संवेदना से भरा होगा और इस बहाने मोदी सरकार के काम काज का तिलक स्पष्ट दिखाई देगा, लेकिन पर्वतीय राज्य की तलाश और भूख को समझना होगा। जब तक केंद्र सरकार में पर्वतीय राज्य विकास मंत्रालय की स्थापना नहीं होती है, राष्ट्रीय योजनाओं का न तो आकार मेहरबान होगा और न ही पर्वतीय मानदंडों के अनुरूप राष्ट्रीय संसाधन उपलब्ध होंगे। पर्वतीय परिवेश को समझने तथा इसके भविष्य को संवारने के लिए सतत प्रयास, अनुसंधान, वित्तीय सहयोग, तकनीक व जिस नवाचार की जरूरत है, उसके नेतृत्व के लिए पर्वतीय विकास मंत्रालय का गठन होना ही चाहिए।
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