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- हिमाचल ने बताया
दिव्याहिमाचल.
इसमें दो राय नहीं कि पूरे देश में पेट्रोल-डीजल की कीमतें घटाने में नन्हे से हिमाचल का जनादेश काफी कारगर रहा। इस दौरान हर तरह की राष्ट्रीय बहस में हिमाचल के उपचुनाव सारे देश पर भारी पड़े और पहली बार केंद्र सरकार को यकीन हुआ कि जनभावनाएं किस कद्र आहत हो सकती हैं। हिमाचल का लोकतांत्रिक मॉडल अपने भीतर ऐसे समाज का गठन करने में कामयाब रहा, जो ऐन वक्त पर सत्ता की फेहरिस्त बदल देता है। हर बार सामाजिक तौर पर राजनीति का प्लस और माइनस पूरी तस्वीर बदल देता है और इस परिप्रेक्ष्य में सारे राष्ट्र ने देखा कि हिमाचल बता रहा है कि महंगाई के डाल पर सत्ता की चिडि़या ज्यादा देर फुदक नहीं सकती। इसीलिए सारे राष्ट्र ने हिमाचल के उपचुनाव परिणामों का लोहा माना और केंद्र सरकार को भी पता चला कि बढ़ती पेट्रोल कीमतों के बीच सत्ता के रथ को खींचना कठिन होता जाएगा। दरअसल अगले साल के आरंभ में ही पंजाब, हरियाणा व उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों के विधानसभा चुनाव, उत्तर भारत की लोकतांत्रिक कसौटी में केंद्र सरकार के रुतबे को बारीकी से देखेंगे, जबकि साल के अंतिम दौर में हिमाचल व गुजरात की चुनावी कसरतें भी काफी महत्त्वपूर्ण हैं। हिमाचल के नागरिक समाज ने उपचुनावों में स्पष्टता से महंगाई का ठीकरा फोड़ते हुए न केवल अपनी चुनावी भाषा बताई, बल्कि पंजाब व उत्तराखंड के सामीप्य में अगली आशंकाएं भी पैदा कर दी हैं, लिहाजा केंद्र सरकार को डीजल-पेट्रोल के दाम घटाने की नौबत आई है। मध्यम वर्गीय नागरिकों का समाज जिस तरह हिमाचल में संगठित व निर्णायक हुआ है, उससे प्रदेश की सत्ता का मिजाज व दायित्व के प्रदर्शन का हिसाब हमेशा सशक्त हो रहा है। यही वजह है कि हिमाचल की चुनावी राजनीति कठिन और अप्रत्याशित परिणामों की भूमिका में नागरिक समाज के इर्द-गिर्द चक्कर लगाती है।