सम्पादकीय

हिमाचल ने बताया

Gulabi
8 Nov 2021 5:02 AM GMT
हिमाचल ने बताया
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इसमें दो राय नहीं कि पूरे देश में पेट्रोल-डीजल की कीमतें घटाने में नन्हे से हिमाचल का जनादेश काफी कारगर रहा

दिव्याहिमाचल.

इसमें दो राय नहीं कि पूरे देश में पेट्रोल-डीजल की कीमतें घटाने में नन्हे से हिमाचल का जनादेश काफी कारगर रहा। इस दौरान हर तरह की राष्ट्रीय बहस में हिमाचल के उपचुनाव सारे देश पर भारी पड़े और पहली बार केंद्र सरकार को यकीन हुआ कि जनभावनाएं किस कद्र आहत हो सकती हैं। हिमाचल का लोकतांत्रिक मॉडल अपने भीतर ऐसे समाज का गठन करने में कामयाब रहा, जो ऐन वक्त पर सत्ता की फेहरिस्त बदल देता है। हर बार सामाजिक तौर पर राजनीति का प्लस और माइनस पूरी तस्वीर बदल देता है और इस परिप्रेक्ष्य में सारे राष्ट्र ने देखा कि हिमाचल बता रहा है कि महंगाई के डाल पर सत्ता की चिडि़या ज्यादा देर फुदक नहीं सकती। इसीलिए सारे राष्ट्र ने हिमाचल के उपचुनाव परिणामों का लोहा माना और केंद्र सरकार को भी पता चला कि बढ़ती पेट्रोल कीमतों के बीच सत्ता के रथ को खींचना कठिन होता जाएगा। दरअसल अगले साल के आरंभ में ही पंजाब, हरियाणा व उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों के विधानसभा चुनाव, उत्तर भारत की लोकतांत्रिक कसौटी में केंद्र सरकार के रुतबे को बारीकी से देखेंगे, जबकि साल के अंतिम दौर में हिमाचल व गुजरात की चुनावी कसरतें भी काफी महत्त्वपूर्ण हैं। हिमाचल के नागरिक समाज ने उपचुनावों में स्पष्टता से महंगाई का ठीकरा फोड़ते हुए न केवल अपनी चुनावी भाषा बताई, बल्कि पंजाब व उत्तराखंड के सामीप्य में अगली आशंकाएं भी पैदा कर दी हैं, लिहाजा केंद्र सरकार को डीजल-पेट्रोल के दाम घटाने की नौबत आई है। मध्यम वर्गीय नागरिकों का समाज जिस तरह हिमाचल में संगठित व निर्णायक हुआ है, उससे प्रदेश की सत्ता का मिजाज व दायित्व के प्रदर्शन का हिसाब हमेशा सशक्त हो रहा है। यही वजह है कि हिमाचल की चुनावी राजनीति कठिन और अप्रत्याशित परिणामों की भूमिका में नागरिक समाज के इर्द-गिर्द चक्कर लगाती है।


मध्यम वर्गीय समाज का गठन वास्तव में लोकतांत्रिक प्रतिष्ठा को आगे बढ़ाता है। कमोबेश हिमाचल की हर सरकार ने यही प्रयास किए कि सरकारी नीतियां बराबरी का माहौल बनाएं और समाज में एकस्वरूपता का प्रसार हो। सामाजिक न्याय की दृष्टि से हिमाचल का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन साबित करता है कि यहां सत्ता की साझेदारी में मतदाता की गणना और उसके फलक पर अधिकार प्राप्त करने की निरंतरता रहती है। हिमाचली मतदाता हृदय से लोकतंत्र को अपने सामर्थ्य और अधिकार से परिमार्जित करते हुए इस मुकाम तक पहुंचा है, जहां वह सर्वशक्तिमान व निर्णायक हो जाता है। यह ग्रामीण स्तर से विधायक के पद तक एक समान ढर्रा बन चुका है। विडंबना यह है कि अदला बदली की परिपाटी में नेताओं की भूमिका अब ढिंढोरची होने लगी है। विकास की मुद्रा में क्षेत्रवाद और सत्ता की परिभाषा में लाभांश तय होते हैं। सरकारी खजाने की टोह लेती घोषणाएं ऐसे वर्ग चुन लेती हैं, जहां पूरा प्रदेश विभिन्न वर्गों में बंट जाता है। यानी कि कर्मचारी वर्ग की खुशामद में नीतियां नतमस्तक रहती हैं और कोई भी सरकार यह फैसला नहीं कर पाती कि सरकारी कार्य संस्कृति को किस तरह अनुशासित किया जाए। नतीजतन मध्यम वर्ग की राजनीति में कर्मचारी मानसिकता हमेशा सत्ता के नफे में राज्य का नुकसान करती है और कहीं दूर खड़ा नागरिक जब मतदाता की मानसिकता में खुद को बुलंद करता है, तो सुशासन के नाम पर चर्चाएं कातिल हो जाती हैं। यही चर्चाएं पेट्रोल-डीजल और रसोई गैस के दाम पर कातिल रही हैं, लेकिन हर बार अपेक्षा यह की जाती है कि सत्ता मिशन रिपीट की चिंता छोड़कर सरकार को कड़े फैसले लेने का सामर्थ्य देगी। बहरहाल इस बार हिमाचल के राजनीतिक माइनस ने केंद्र सरकार को यह अंतर बता दिया और इसकी परिणति में कम से कम पेट्रोल-डीजल की कीमतें घट गइर्ं।




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