सम्पादकीय

वीआईपी अर्थों में हिमाचल

Rani Sahu
23 May 2022 7:14 PM GMT
वीआईपी अर्थों में हिमाचल
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मौसम पर मेहरबान मेहमान और इधर दरख्वास्त है

मौसम पर मेहरबान मेहमान और इधर दरख्वास्त है कि घर की गली सुधर जाए। यह घर हिमाचल है और गली में प्रवेश करते अति विशिष्ट लोगों के स्वागत में तोरणद्वार खुद की हालत पर गौर कर रहा है। भले ही हम रिज का मुआयना कर लें, धर्मशाला में आते वीआईपी लोगों के लिए बिछ जाएं, लेकिन सही मायने में जब कभी ऐसे मौके आते हैं, हिमाचल के इंतजाम छोटे पड़ जाते हैं। हमारे लिए वीआईपी आगमन शान है, इम्तिहान है, लेकिन जो राज्य सैलानियों के आते ही मजबूर या विवश नज़र आता है, उसके लिए यह चिंता का सबब होना चाहिए। प्रमुख शहरों में भीड़ बढ़ रही है, जबकि प्रदेश का शहरी ढांचा अपने हाल पर रो रहा है। आश्चर्य यह कि विकास का हिमाचली मॉडल केवल सियासी संकीर्णता में सत्ता का सुख और सत्ता का इस्तेमाल ही देख रहा है, जबकि विकास में सुनियोजित संतुलन और भविष्य की देखभाल की जरूरत कहीं अधिक है। हमें अपने जल संसाधनों का इस्तेमाल इस दृष्टि से करना है कि साल भर हर घर को निश्चित मात्रा में इसकी आपूर्ति हो। आश्चर्य यह कि साल के सबसे बेहतरीन समय में सरकारी मशीनरी यह निर्देश जारी करती है कि न तो नवनिर्माण किया जाए और न ही घरों में फूलों पर पानी का छिड़काव किया जाए। किसी भी शहरी निकाय को यह सोचने व करने का मौका नहीं मिल रहा कि वह अपनी जरूरतों के हिसाब से नगर की जलापूर्ति क्षमता को सक्षम बना सके।

जल शक्ति विभाग की अपनी सियासी सूची है और जहां सत्ता की ताकत से पानी का इस्तेमाल होता है। कमोबेश हर पर्यटक सीजन में होटलों को टैंकरों के जरिए सैलानियों की मांग की रक्षा करनी पड़ती है, जबकि विभाग तो वीआईपी खिदमत में शिमला के रिज और माल की धुलाई में इतने व्यस्त हैं कि जनता के सूखे कंठ भी नज़र नहीं आते। ऐसे में हर नदी, खड्ड या नाले के साथ जल संग्रहण की क्षमता विकसित करके हमें सिंचाई और पेयजलापूर्ति के वर्तमान ढांचे को सुदृढ़ करना होगा। चुनावी वर्ष में कई मुद्दे उछलेंगे, लेकिन इसी दौर में आ रहे वीआईपी लोगों को क्या हम सही ढंग से खुशामदीद कह पाएंगे। राष्ट्रपति के साथ-साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का शिमला, धर्मशाला व चंबा दौरा अगर तात्कालिक प्रबंधन की आत्मश्लाघा है तो इस भ्रम को दूर करके खुद से पूछना होगा कि क्या प्रदेश ऐसे आगमन के योग्य है भी या ऐसी योग्यता हासिल करने के लिए करना क्या होगा। यह कान्फ्रेंस पर्यटन की दक्षता है जिसे तीन हवाई अड्डों के साथ जोड़ा जा सकता था, लेकिन आज जब जी-20 जैसी बैठक के लिए धर्मशाला को आयोजन स्थल के रूप में देखा जा रहा है, तो प्रशासन के हाथ-पांव फूल रहे हैं।
अब तो स्मार्ट सिटी की योजनाएं भी बूढ़ी होने लगी हैं, लेकिन धर्मशाला में प्रस्तावित कान्वेंशन सेंटर के लिए जमीन तक का चयन नहीं हुआ। प्रदेश का एकमात्र सक्रिय कांगड़ा एयरपोर्ट आज भी राजनीतिक प्राथमिकताओं के कारण घाव लिए हुए है, जबकि अब तक यहां बड़े विमान उतर गए होते। बेशक राजनीति वीआईपी फौज उतार सकती है, लेकिन चुनाव के भाषण केवल सम्मोहन नहीं, भविष्य की पैरवी में इनका सारांश भी देखना होगा। रिज मैदान का ऐतिहासिक महत्त्व देश के प्रधानमंत्री के आगमन से गौरवान्वित होगा, लेकिन कब तक हम ब्रिटिश अधोसंरचना पर गौरव मनाते रहेंगे। विडंबना यह है कि रिज या अनाडेल मैदान के अलावा हमने राजधानी में कोई ऐसा मैदान तक नहीं बनाया, जहां हिमाचली प्रगति के सूचक साबित हों। एक दौर था, जब इमारतें ही इमारतें या जंगल ही जंगल चाहिए थे। आज न पर्यटक को केवल होटलों जैसी इमारतें चाहिएं और न ही व्यवस्था को हम केवल भवनों के निर्माण पर खड़ा कर पाएंगे। हिमाचल में हर तरह के आगमन के लिए खुला आसमान चाहिए। विकास को नए अर्थों में साबित करने के लिए हर शहर में कम से कम चार सामुदायिक मैदान, नवनिर्माण में सुनियोजन का आचरण और अधोसंरचना में सार्वजनिक जवाबदेही चाहिए और यह हर गांव से हर शहर, हर गली से हर सड़क, हर नागरिक सुविधा से व्यवस्था और हर कनेक्टिविटी से एयरपोर्ट विस्तार तक देखा जाएगा।

सोर्स- divyahimachal


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