सम्पादकीय

हिंदी क्लब में हिमाचल

Rani Sahu
14 Sep 2023 9:31 AM GMT
हिंदी क्लब में हिमाचल
x
By: divyahimachal
हिंदी भाषा में राष्ट्र को दूर तक देखने के नजरिए से हिमाचल के सरोकार अभिलषित जरूर हुए, लेकिन क्या यह भाषा राज्य के सपनों में भी आई। बेशक सियासत ने अपना काम किया, पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार ने अपना नाम किया, लेकिन हिंदी राज्य बनकर भी यहां शिक्षा से भविष्य तक अंग्रेजी में सपने देखे जाते हैं। यह दीगर है कि सृजन की दुनिया में हिंदी के हिमाचली लेखकों ने पहाड़ के दर्द, पहाड़ के हर मर्ज और पहाड़ की पीढिय़ों को साहित्य की विविधता और गहराई में झांकने का एक मुकम्मल भाषायी योगदान एवं ओजस्वी श्रमदान सौंपा। इस दौरान लेखन कार्य खूब होने लगा है और इसलिए हिमाचल के अस्तित्व में आने की जिरह और विस्तृत होने की वजह कम हो गई। कुछ लेखकों ने आंचलिक बोलियों को हिंदी की रंगोली में सजाया, लेकिन हिमाचली भाषा के सारे स्रोत व रंग ढके ही रह गए। हिमाचल के सांस्कृतिक पक्ष को मजबूत करने के लिए जिस तरह के प्रादेशिक सरोकार चाहिए थे, उनके खिलाफ अनेक कारणों से गोलबंदी हुई और ‘न तेरा, न मेरा’ के अहंकार ने उस संभावना को रद्द करना शुरू कर दिया जो हिमाचल की विशालता में पहाड़ की भाषा को संगठित व परिमार्जित कर पाती। आश्चर्य यह है कि हिंदी चुनते-चुनते हमने अपने ही लोकसाहित्य की मूल भावना को खूंटी पर टांग दिया। भाषायी मामले में हिमाचल का दोगलापन राष्ट्रीय भाषा के आलोक में भी स्पष्ट होता है, जहां कुछ साहित्यिक कतारें खुद को देश से संबद्ध करने की मर्दानगी दिखाती हैं, तो कुछ अपने पदों के हिसाब से भाषा के संपर्क सूत्र बनकर हिंदी साहित्य के बड़े नामों से खुद को जोड़ते रहे।
क्या हिमाचल का हिंदी साम्राज्य ‘दक्खिनी हिंदी’ के जगत के बराबर हो गया या मुगालतों में हिंदी राज्य बनकर हमने अपनी ही बोलियों के हाशिए चुन लिए हैं। हिमाचल बनने से पहले भाषा के विषय हमारे नजदीक थे, लेकिन अब एक दुर्ग है भाषा। पूर्व में जब हिमाचल कुछ रियासतों से जुडक़र भाषायी मसले को संबोधित कर रहा था, तो उर्दू का प्रयोग केवल कलम नहीं, दिल और जुबान के रिश्तों को सुकून दे रहा था। इसी तरह पंजाब में रह गए पर्वतीय क्षेत्रों ने पंजाबी के गीत-संगीत और सांस्कृतिक परंपराओं से भाषा की रुहानियत सीखी। जिस पंजाबी भाषा के सुर हिमाचल के सत्तर फीसदी इलाके की बोलियों से मिल कर ताल बनाते हैं, उसे हम अब हिमाचली भाषा के उद्गम से दूर रखना चाहते हैं। पंजाबी ने तो अपनी संरचना में बिलासपुर और कुछ मंडी की बोलियों को भी अपने साथ मिला कर बड़ा किया, लेकिन जब हिमाचली भाषा का प्रश्न आता है, तो हम इसे तथा इसके नजदीक तमाम पहाड़ी बोलियों को अछूत बनाना चाहते हैं। क्या पंजाब ने हिंदी साहित्य को पंजाबी से मजबूत नहीं किया और अगर हम हिमाचली भाषा के शृंगार को एक सूत्र में पिरोकर सृजन करें, तो क्या प्रदेश में हिंदी साहित्य की अपनी धार और विशिष्टता नहीं होगी।
हिंदी के लिए हिमाचली भाषा का समावेश भारत के परिप्रेक्ष्य में लाजिमी तौर पर अपनी ऊर्जा का संचार करेगा। हम अगर पहले हिमाचली होकर नहीं सोचेंगे, तो हिंदी में कैसे जी पाएंगे। इसीलिए हिंदी राज्य होते हुए भी हिमाचल के सपने विशुद्ध अंग्रेजी हैं और यह संदेश युवा पीढ़ी के व्यक्तित्व में प्रवेश कर चुका है। भले ही हिमाचल को हिंदी का तमगा लगाकर हम देश के हिंदी क्लब में शरीक हैं, लेकिन प्रदेश का भाषायी अधूरापन हमें अपने व्यवहार, सरोकार व सृजन में दिखाई देता है। कम से कम हम उस वजह को नजरअंदाज जरूर कर रहे हैं, जिसके कारण हिमाचल पर्वतीय संस्कृति का अनूठा संगम, संघर्ष और सौहार्द बना।
Next Story