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सम्पादकीय
कुछ दिन पहले केंद्र सरकार ने 14 फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में औसतन छह फीसदी की बढ़ोतरी की है. बीते चार वर्षों में यह सबसे अधिक वृद्धि है, जो जून से अक्टूबर के बीच बोयी जानेवाली खरीफ फसलों पर लागू होगी. इस बढ़त से खेती की बढ़ती लागत और रूस-यूक्रेन युद्ध वजह से खाद्य मूल्यों में उछाल से राहत मिलने की उम्मीद है. इससे बढ़ती मुद्रास्फीति पर भी कुछ लगाम लग सकती है.
भारी गर्मी के कारण इस वर्ष गेहूं के उत्पादन में कमी की आशंका को देखते हुए सरकार ने गेहूं के निर्यात पर रोक लगा दी है और खाद्य कल्याण योजनाओं में गेहूं की मात्रा को कम कर अधिक चावल दिया जा रहा है. उल्लेखनीय है कि वैश्विक बाजार में गेहूं के मामले में भारत की हिस्सेदारी बहुत कम है, लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चावल आपूर्ति में हमारा योगदान लगभग 40 फीसदी है.
ऐसे में धान के एमएसपी में 5.2 प्रतिशत की वृद्धि सही दिशा में कदम है, लेकिन यदि यह कुछ अधिक होता, तो किसानों को धान की खेती के लिए समुचित प्रोत्साहन मिलता. यह प्रोत्साहन गेहूं की कम उपज और कमजोर मानसून के अनुमान को देखते हुए जरूरी है. अगर धान की फसल अधिक होती है, तो घरेलू खाद्य बाजार में गेहूं की कमी की भरपाई हो सकेगी तथा कृषि निर्यात की गति भी बरकरार रहेगी.
उल्लेखनीय है कि कोरोना महामारी और वैश्विक आपूर्ति शृंखला में अवरोध के वर्तमान दौर में भारत के कृषि निर्यात में रिकॉर्ड बढ़त हुई है. हालांकि विभिन्न वजहों से खाद्य पदार्थ लगातार महंगे होते जा रहे हैं, पर यह भी रेखांकित किया जाना चाहिए कि हमारे सामने किसी प्रकार के खाद्य संकट की चुनौती नहीं है, जैसा कई देशों के साथ हो रहा है. यह सब किसानों की मेहनत का नतीजा है.
निश्चित रूप से एमएसपी बढ़ाने से उन्हें कुछ राहत मिलेगी, पर जानकारों का यह भी कहना है कि यह वृद्धि कुछ कम है. आकलनों के अनुसार, इस वर्ष खेती की लागत में 6.8 प्रतिशत की वृद्धि हुई है क्योंकि बीज, खाद, श्रम और ऊर्जा के दाम भी बढ़े हैं. तेलहन और कपास के विभिन्न प्रकारों के लिए घोषित एमएसपी बाजार के मौजूदा दामों से कम है. ऐसे में इनके मामले में वृद्धि का खास मतलब नहीं रह जाता.
लेकिन इस विश्लेषण के साथ कुछ अन्य कारकों को भी देखा जाना चाहिए. खेती की बेहतरी के लिए सरकार की अनेक योजनाएं चल रही हैं. ग्रामीण क्षेत्रों में भंडारण और वितरण के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित करने की कवायद हो रही है. किसान सम्मान निधि, फसल बीमा जैसे कार्यक्रम भी हैं. हाल ही में केंद्र सरकार ने खाद अनुदान के मद में बजट में घोषित आवंटन को दोगुना करने की घोषणा की है. यह सही है कि एमएसपी कुछ अधिक होनी चाहिए, किंतु साथ में विभिन्न कार्यक्रमों का संज्ञान लें, तो कहा जा सकता है कि किसानों को निश्चित ही राहत मिलेगी.
प्रभात खबर के सौजन्य से सम्पादकीय
Tagshike in MSP
Gulabi Jagat
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