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- हिजाब पर बहस निरर्थक
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इन दिनों सुप्रीम कोर्ट में हिजाब पर बहस चल रही है लेकिन यह समझ से परे है कि देश के ध्यान को भटकाने की कोशिश क्यों हो रही है? कौन हैं ये लोग जो विकासवादी सोच के साथ देश को आगे बढ़ने के मार्ग में रोड़ा अटका रहे हैं। 1 जुलाई 2021 से हिजाब पर विवाद कर्नाटक से शुरू हुआ, जब उडुपी स्थित पीयू कॉलेज ने यूनिफॉर्म कोड लागू किया। इसके बाद से ही हाय तौबा मचने लगी कि हमारे अधिकारों की हनन की जा रही है लेकिन वे इस बात को भूल गए कि संस्थान के भी अपने अधिकार होते हैं।
खासतौर से जब आप शिक्षा ग्रहण कर रहे होते हैं तो उस दौरान आपको अपने कर्तव्य पथ की ओर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होती है, अधिकार की बातों को अलग रखकर व्यक्तित्व निर्माण लक्ष्य होता है। इस समय हमारे विद्यार्थियों का ध्यान भटकाने की राजनीतिक साजिश हो रही है लेकिन वे इस बात को समझ नहीं पा रहे हैं। 28 दिसंबर 2021 को पीयू कॉलेज की 6 छात्राओं ने आरोप लगाया कि उन्हें हिजाब पहनकर क्लास रूम में नहीं बैठने दिया जा रहा है। इसमें गलत क्या है? अगर कॉलेज प्रशासन के नियम कायदे को आप नहीं मानते हैं तो आप उस कॉलेज में पढ़ने के हकदार नहीं होंगे। वहीं, 4 जनवरी 2022 को चिकमंगलूर के छात्राओं ने भगवा शॉल ओढ़कर कॉलेज आने की अनुमति मांगी और ये सिलसिला बढ़ने लगा। 13 जनवरी 2022 को उडुपी के पीयू कॉलेज के सामने मुस्लिम लड़कियों ने हिजाब पहनकर एंट्री के लिए प्रदर्शन शुरू कर दिया। इसके बाद 31 जनवरी 2022 उडुपी के पीयू कॉलेज के फैसले के खिलाफ लड़कियों ने कर्नाटक हाईकोर्ट में याचिका लगा दी। लेकिन 5 फरवरी को कर्नाटक सरकार ने सरकारी आदेश जारी कर कहा कि सिर्फ तय यूनिफॉर्म में ही कॉलेज में अनुमति दी जाएगी। इस आदेश को गलत नहीं ठहराया जा सकता है। वकील लाख तर्क दें लेकिन यह बात शत प्रतिशत सही है कि स्कूल-कॉलेज अपने नियमों से ही चलेंगे क्योंकि ये शिक्षा के मंदिर हैं और यहां धक्केशाही की गुंजाइश नहीं रहती है। सबसे विचित्र बात यह है कि कर्नाटक सरकार के आदेश के खिलाफ कर्नाटक हाईकोर्ट में हिजाब मामले से जुड़ी 8 याचिकाएं दायर की गईं।
हाईकोर्ट ने 11 दिन की सुनवाई के बाद 15 मार्च को सभी याचिकाएं खारिज कर दीं। हाईकोर्ट ने अपने 129 पेज के फैसले में तीन बड़ी बातें कहीं-पहला-हिजाब इस्लाम की आवश्यक धार्मिक प्रथाओं का हिस्सा नहीं है। दूसरा-धारा 19(1)(अ) अर्थात अभिव्यक्ति की आजादी पर यूनिफॉर्म की जरूरत उचित प्रबंध है। दूसरी बात सबसे महत्वपूर्ण कही कि सरकार के पास सरकारी आदेश पास करने का अधिकार है। इसे अमान्य ठहराने का कोई औचित्य नहीं है। इसके बाद ही 28 मार्च को मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कर्नाटक हाईकोर्ट के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। हैरानी की बात है कि धीरे-धीरे सुप्रीम कोर्ट के सामने हिजाब मामले से जुड़ी 23 पिटीशन पहुंच गईं। 29 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले से जुड़ी सभी याचिकाओं पर सुनवाई के लिए 5 सितंबर का दिन मुकर्रर किया। इसके बाद से हिजाब पर लगातार सुनवाई चल रही है।
हिजाब के पक्ष में वकील यूसुफ मुच्छल ने तर्क दिया कि संविधान इस बात की गारंटी देता है कि कोर्ट किसी को अपना धर्म मानने से रोक नहीं सकता है और न ही धार्मिक ग्रंथों में लिखी बातों की व्याख्या कर सकता है। इसके विपक्ष में जस्टिस धूलिया कहते हैं कि आप खुद ही जरूरी धार्मिक प्रथा बनाकर खुद ही हाईकोर्ट गए। कोर्ट के पास क्या विकल्प था? जस्टिस धूलिया का तर्क युक्तिसंगत है कि कोर्ट ने फैसला सुनाया तो, अब आप कहते हैं कि कोर्ट को धार्मिक मामलों में नहीं पड़ना चाहिए। इस तरह के तर्क में दम नहीं है।
सोर्स- JANBHAWANA TIMES
Rani Sahu
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