सम्पादकीय

हिजाब : तर्क-वितर्क

Subhi
23 Oct 2022 6:09 AM GMT
हिजाब : तर्क-वितर्क
x

पी. चिदंबरम: इसका नतीजा यह निकला कि कर्नाटक के उडुपी जिले के कुंडापुरा नामक एक छोटे शहर में जन्मी और पली-बढ़ी आइशा शिफा और तेहरीना बेगम के लिए अब सरकारी प्री-यूनिवर्सिटी कालेज, कुंडापुरा में अपनी पढ़ाई जारी रखना मुश्किल हो गया है। दोनों छात्राएं द्वितीय वर्ष में थीं। पिछले वर्ष जब उन्होंने प्रथम वर्ष में दाखिला लिया और कालेज जाना शुरू किया, तो पहले दिन से ही वे हिजाब पहनती आ रही थीं- एक स्कार्फ जो सिर और गर्दन को ढंकता है, लेकिन चेहरा दिखाई देता है।

हिजाब वे निर्धारित वर्दी के अलावा पहनती थीं। मगर 3 फरवरी, 2022 को उन्हें कालेज के मुख्य द्वार पर रोक दिया गया और कहा गया कि कालेज में प्रवेश करने से पहले उन्हें हिजाब हटाना होगा। उन्होंने मना किया तो उन्हें प्रवेश से वंचित कर दिया गया और आठ महीने बाद मामला वहीं आकर खड़ा हो गया।

ऐसा नहीं कि किसी महिला के हिजाब पहनने से किसी का अपमान होता हो। यह सार्वजनिक व्यवस्था, शालीनता, नैतिकता या स्वास्थ्य के खिलाफ नहीं है। धार्मिक महत्त्व के बावजूद, हिजाब पहनने वाली महिलाएं भारत में उन महिलाओं से बहुत अलग नहीं हैं, जो साड़ी या दुपट्टे के पल्लू से अपना सिर ढकती हैं। पुरुष पगड़ी पहनते हैं। सिख पुरुष अपने सिर को पगड़ी से ढकते हैं। भारत के कई राज्यों में विशेष अवसरों (जैसे मैसूर पेटा) पर विशेष टोपी पहनी जाती है।

क्या है विवाद का केंद्रीय मुद्दा? चीखती हुई सुर्खियों, टेलीविजन पर शोर-शराबे, सोशल मीडिया पर टिप्पणियों, धमकियों और मजाक बनाने वाली सामग्री की बाढ़ और काबिल नेताओं के भड़काऊ बयानों के बीच केंद्रीय मुद्दा कहीं खो गया है। मेरे विचार से, यह मुद्दा एक शब्द तक सीमित है, और वह है पसंद।

हिजाब पहनने से संबंधित 'पसंद' के सवाल को लेकर दो दृष्टिकोण हैं। मैं दो माननीय न्यायाधीशों, न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति सुदर्शन धूलिया की राय के हवाले से इन दो दृष्टिकोणों का वर्णन करना चाहता हूं:

न्यायमूर्ति गुप्ता : ''हिजाब पहनने की प्रथा एक 'धार्मिक प्रथा' या 'आवश्यक धार्मिक प्रथा' हो सकती है या यह इस्लामी आस्था महिलाओं के लिए सामाजिक आचरण हो सकती है।… धार्मिक आस्था को सार्वजनिक धन से बनाए गए किसी धर्मनिरपेक्ष स्कूल में नहीं लागू किया जा सकता है।''

न्यायमूर्ति धूलिया : ''हिजाब पहनना एक आवश्यक धार्मिक प्रथा है या नहीं, यह इस विवाद को सुलझाने के लिए आवश्यक नहीं है। अगर आस्था में ईमानदारी है, और उसके चलते किसी को नुकसान नहीं पहुंचाता है, तो कक्षा में हिजाब पर प्रतिबंध लगाने का कोई उचित कारण नहीं हो सकता है।''

न्यायमूर्ति गुप्ता : ''… राज्य सरकार की कालेज विकास समिति को यह सुनिश्चित करने का अधिकार है कि छात्रों को निर्धारित वर्दी में आना अनिवार्य है, इससे अनुच्छेद 19 (1) (ए) के तहत गारंटीकृत स्वतंत्रता का उल्लंघन नहीं होता, बल्कि अनुच्छेद 14 के तहत प्रदान किए गए समानता के अधिकार को मजबूती मिलती है।''

न्यायमूर्ति धूलिया : ''एक प्री-यूनिवर्सिटी की छात्रा को अपने स्कूल के मुख्य द्वार पर हिजाब उतारने के लिए कहना उसकी निजता और गरिमा का हनन है। यह स्पष्ट रूप से संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) और 21 के तहत उसे प्राप्त मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।''

न्यायमूर्ति गुप्ता : ''इसलिए संविधान की प्रस्तावना में कहे गए न्याय, स्वतंत्रता, समानता या बंधुत्व के मकसद को किसी भी धार्मिक मतभेद, असमानताओं को दूर करके और छात्रों के वयस्क होने से पहले उनके साथ समान व्यवहार करके बेहतर ढंग से पूरा किया जाना चाहिए।''

न्यायमूर्ति धूलिया : ''यह समय उनमें विभिन्न धर्मों, भाषाओं और संस्कृतियों के प्रति संवेदनशीलता, सहानुभूति और समझ को बढ़ावा देने का है। यह वह समय है जब उन्हें हमारी विविधता से घबराना नहीं, बल्कि इस विविधता का आनंद लेना और इसका जश्न मनाना सीखना चाहिए।''

न्यायमूर्ति गुप्ता : ''अगर वे निर्धारित वर्दी की वजह से कक्षाओं में शामिल न होने का विकल्प चुनती हैं, तो यह ऐसे छात्रों का स्वैच्छिक निर्णय माना जाएगा। इसे राज्य द्वारा अनुच्छेद 29 का उल्लंघन नहीं कहा जा सकता है।''

न्यायमूर्ति धूलिया : ''अगर कोई लड़की अपनी कक्षा के अंदर भी हिजाब पहनना चाहती है, तो उसे रोका नहीं जा सकता। कई लड़कियां इसलिए हिजाब पहनने का विकल्प चुनती हैं कि इस तरह उनका रूढिवादी परिवार उन्हें स्कूल जाने की इजाजत दे देता है। उनके सामने यही एकमात्र तरीका हो सकता है। ऐसे मामलों में हिजाब कई लड़कियों के लिए पढ़ाई-लिखाई करने का टिकट होता है।''

कुछ टिप्पणीकारों ने शिकायत की है कि जब रूढ़िवादी ईरान में हिजाब को हटाने के लिए आंदोलन चल रहा है, तब यह आश्चर्यजनक है कि आधुनिक भारत में मुसलिम समुदाय का एक वर्ग कक्षाओं में लड़कियों के हिजाब पहनने के अधिकार की रक्षा का आंदोलन चला रहा है।

आलोचना पूरी तरह से गलत है। करीब से देखने पर, विवाद ईरान और भारत दोनों में समान है: यह 'पसंद' को लेकर है। यह अमेरिका में महिला के गर्भपात के विकल्प पर विवाद की तरह है।

विवाद 'पसंद' और 'नियम' के बीच है। 'पसंद' स्वतंत्रता, गरिमा, गोपनीयता और विविधता का प्रतिनिधित्व करती है, जबकि 'नियम' अक्सर बहुसंख्यकवाद, असहिष्णुता और एकरूपता के लिए बल पूर्वक संचालित होते हैं। 'पसंद' कुछ स्थितियों में 'नियम' का सहायक उत्पाद साबित हो सकता है।

यह संविधान के अनुच्छेद 19 (2) या अनुच्छेद 25 (1) में निहित आधार- सार्वजनिक व्यवस्था, शालीनता, नैतिकता और स्वास्थ्य- और संविधान के भाग 3 (मौलिक अधिकार) के कुछ अन्य प्रावधानों में आकर्षक लगता है। ऐसे आधारों के अभाव में, 'विकल्प' प्रबल होना चाहिए।

न्यायमूर्ति सुदर्शन धूलिया ने 'पसंद' को इसलिए बरकरार रखा, क्योंकि हिजाब लड़कियों की शिक्षा का एकमात्र टिकट हो सकता है। न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता ने 'नियम' को सर्वोपरि रखा, हालांकि राज्य ने इसकी कोई अनिवार्य आवश्यकता नहीं महसूस की। अब सुप्रीम कोर्ट की बड़ी पीठ को इस पर सुनवाई करके फैसला देना है। इस बीच, आप में से हर किसी को यह तय करना है कि आप 'पसंद' के साथ खड़े हैं या 'नियम' के।


Next Story