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Written by जनसत्ता; देश में बनने वाले सभी राजमार्ग देश की उन्नति को प्रदर्शित करते हैँ। देश में राष्ट्रीय राजमार्गों का जाल बिछाया जा रहा है जो नए भारत की तकदीर और तस्वीर भी कहा जाता है। राष्ट्रीय राजमार्ग बनाने में उच्च कोटि की सामग्री और तकनीक का प्रयोग किया जाता है। तभी ये हर तरीके से उपादेय साबित होते हैं।
पर हाल ही में कुछ राजमार्गों का बाढ़ में बह जाना, जान-माल की क्षति होना और सड़कों का धंस जाना और बारिश के पानी में राजमार्गो का डूब जाना, कई दिनों तक पानी की निकासी न होना जैसी घटनाएं गंभीर सवाल खड़े करती हैं। इससे तो लगता है कि ठेकेदार कंपनियां सिर्फ कामचलाऊ काम कर रही हैं। हाल में पूर्वांचल एक्सप्रेस वे जिसका कि प्रधानमंत्री ने उदघाटन किया था, उदघाटन के हफ्ते भर के भीतर ही धंस गया। ऐसे ठेकेदारों पर कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए क्योंकि ये जनता का पैसे का दुरुपयोग कर रहे हैं।
जनसत्ता (25 जुलाई) में सरोज कुमार का लेख- कर्ज का बढ़ता मजर्Þ.. केंद्र तथा राज्य सरकारों द्वारा राजस्व घाटा लगातार बढ़ने के कारण बढ़ते विपरीत प्रभावों से सचेत करने वाला था! सरकारों को देश के विकास, कल्याण, सुरक्षा तथा प्रशासन हेतु कर्जा लेना ही पड़ता है! जितना किसी देश की जीडीपी के मुकाबले में आंतरिक तथा बाहरी क का प्रतिशत कम होगा, उतना ही उस देश की अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ समझा जाएगा और जितना जीडीपी के मुकाबले में कर्ज का प्रतिशत ज्यादा होगा उस देश को कर्ज पर ब्याज ज्यादा देना पड़ेगा और देश में विकास, कल्याण, सुरक्षा आदि के लिए पैसा कम बचेगा।
जिस तरह केंद्र तथा राज्य सरकारों का राजस्व घाटा बढ़ रहा है, वह बड़े खतरे का संकेत है। व्यापार घाटा बढ़ रहा है, देश के विदेशी पूंजी भंडार तथा विकास दर कम हो रही है उसके मुताबिक सार्वजनिक ऋण जीडीपी का 90% होने का खतरा है! वर्ष 2021-22 में केंद्र सरकार के राजस्व 43 प्रतिशत ब्याज के तौर पर देना पड़ा।
विडंबना यह है कि जब हम विदेशी कर्जा लेकर कहीं निवेश करते हैं तो वहां संसाधनों की कमी के कारण उत्पादन, रोजगार तथा मांग नहीं बढ़ते जिसकी वजह से विदेशी कर्जे का भुगतान करना कठिन हो जाता है! यही कुछ श्रीलंका के साथ हुआ है! चीन ने श्रीलंका में विभिन्न परियोजनाओं में निवेश तो किया, लेकिन वहां उत्पादन, रोजगार तथा आमदनी नहीं बढ़े, विदेशी ऋणों तथा व्याज का भुगतान नहीं किया जा सका! देश के विदेशी भंडार खत्म हो गए, और कर्जा मिलना बंद हो गया और विदेशों से आवश्यकता की वस्तुएं मंगवाना कठिन हो गया। देश में पेट्रोल, अनाज, दवाइयां, घरेलू गैस, बिजली आदि की भारी कमी हो गई और इनकी कीमतें आसमान को छूने लगी। हमें श्रीलंका से सबक सीखना चाहिए और केंद्र तथा राज्य सरकारों को अपनी आर्थिक नीतियां ऐसी बनानी चाहिए कि राजस्व में वृद्धि हो।