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Higher Judiciary: उच्च न्यायपालिका में स्थानीय भाषा की उपेक्षा क्यों?
आजादी के आंदोलन का महत्वपूर्ण पड़ाव अपनी भाषा को बढ़ावा देना भी रहा है। अव्वल तो इस मौके पर हमें अपनी भाषाओं की गर्वीली दुनिया को स्थापित करने की कोशिश होनी चाहिए थी, लेकिन गुजरात से इसके ठीक उलट खबर आई है। गुजरात हाई कोर्ट एडवोकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष असीम पांड्या ने गुजरात हाई कोर्ट का कामकाज गुजराती भाषा में भी किए जाने का प्रस्ताव किया था। लेकिन उनका विरोध उनके ही वकील साथियों ने करना शुरू कर दिया और यह विरोध इतना बढ़ा कि पांड्या को मजबूरन इस्तीफा देना पड़ा। हैरानी की बात यह है कि असीम पांड्या को अपनी भाषा का समर्थन करने का खामियाजा उस गुजरात में उठाना पड़ा है, जहां महात्मा गांधी ने आजादी के बाद सरकारी कामकाज देसी भाषाओं में करने की वकालत की थी। गांधी भी वकील थे और उन्होंने वकालत की पढ़ाई अंग्रेजी के गढ़ इंग्लैंड से की थी। इसके बावजूद उन्होंने अंग्रेजी के वर्चस्व को चुनौती दी। लेकिन आज उसी गुजरात के वकीलों को अपनी ही भाषा गुजराती से इतना परहेज है कि हाई कोर्ट में गुजराती में सुनवाई या कामकाज के प्रस्ताव का वे विरोध करने लगे हैं।
सोर्स: अमर उजाला