सम्पादकीय

उच्च शिक्षा और ई-समाधान

Rani Sahu
13 Sep 2022 6:59 PM GMT
उच्च शिक्षा और ई-समाधान
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उच्च शिक्षा से जुड़े छात्रों और अन्य साथियों के ख़ुशी की खबर है। उन्हें अब अपनी उच्च शिक्षा से जुड़ी समस्याओं के समाधान के लिए प्लेटफार्म मिल गया है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) की ओर से 'ई-समाधान' सेवा शुरू की गई है। इस सेवा का लाभ न केवल विद्यार्थी ही उठा पाएंगे बल्कि उच्च शैक्षणिक संस्थानों के अधिकारी, शिक्षक और कर्मचारी भी उठा सकेंगे। ई-समाधान सेवा तक यूजीसी की वेबसाइट या टोल फ्री फोन नंबर के माध्यम से पहुंचा जा सकता है। किसी भी विश्वविद्यालय में प्रवेश ले रहे या प्रवेश के बाद किसी भी प्रकार की समस्या जैसे फीस वापसी में आ रही मुश्किलें, रैगिंग आदि से जूझ रहे विद्यार्थी, इस पोर्टल के माध्यम से अपनी समस्याओं का समाधान पा सकेंगे। देश भर के केंद्रीय व राज्य विश्वविद्यालयों, उनसे संबद्ध महाविद्यालयों और अन्य सरकारी व निजी क्षेत्र के उच्च शिक्षा संस्थानों में किसी भी प्रकार की समस्या के लिए देश के करोड़ों विद्यार्थी अपनी शिकायतें सीधे शीर्ष नियामक यूजीसी को बता सकेंगे और उनका समाधान पा सकेंगे। इससे उच्च शिक्षा क्षेत्र के सभी हितधारकों 1043 विश्वविद्यालयों, 42343 कालेजों, 3.85 करोड़ विद्यार्थियों और 15.03 लाख शिक्षकों को फायदा होगा।

इससे विशेष तौर पर विद्यार्थियों और शिक्षकों के सामने आने वाली समस्याओं के निवारण में आसानी होगी। देश भर के केंद्रीय व अन्य विश्वविद्यालयों और उनके महाविद्यालयों में स्नातक और स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों में शैक्षणिक वर्ष 2022-23 के लिए दाखिले की प्रक्रिया शुरू हो गई है। ऐसे में आयोग की ओर से शुरू की गई इस सेवा 'ई-समाधान' पोर्टल के माध्यम से विद्यार्थियों को होने वाली समस्याओं का निपटारा समय से और उचित ढंग से किया जा सकेगा। 'ई-समाधान' पर दर्ज की गई समस्याओं के हल के लिए समय सीमा भी निर्धारित की गई हैं। इसके तहत विद्यार्थियों से संबंधित मामलों को अधिकतम दस कार्यदिवसों में निबटाना होगा। इसी तरह शिक्षकों और गैर शिक्षकों के मामलों को 15 कार्यदिवसों और विश्वविद्यालय व कालेजों के मामलों को अधिकतम 20 कार्यदिवसों में निबटाना आवश्यक है। उच्च शिक्षा से जुड़ी देश में अनेक दिक्कतें हैं। सबसे पहले पाठ्यक्रम की समस्या उच्च शिक्षा से संबंधित एक गंभीर समस्या है। अनेक विद्यालयों में परंपरागत पाठ्यक्रम दिखाई देते हैं। उनकी पाठ्य सामग्री से कुछ उद्देश्यों को संकेत नहीं मिल पाता और उच्च शिक्षा का पाठ्यक्रम भी छात्रों की रुचि, मनोवृत्ति और अभिरुचि के अनुरूप नहीं होता है। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भी भारत में अनेक विश्वविद्यालयों में शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी ही है। आज के नवयुवक अंग्रेजी को अधिक महत्त्व दे रहे हैं। वे अंग्रेजी भाषा से होने वाली हानि तथा अहित को नहीं समझ पा रहे हैं। गांधी जी के अनुसार 'विदेशी माध्यम ने राष्ट्र की शक्ति को क्षीण कर दिया है। उसने व्यक्तियों की आय को कम कर दिया है, उसने उन्हें जनसाधारण से अलग कर दिया है तथा इसने शिक्षा को अनावश्यक रूप में महंगी बना दिया है।' हम अंग्रेजी विरोधी बात नहीं कर रहे, लेकिन इसकी कीमत पर भारतीय भाषाओं को पीछे न किया जाए और इन भाषाओं को उच्च शिक्षा में बराबरी मिलनी चाहिए। आज भी भारतवर्ष की उच्च शिक्षा में विद्यार्थियों के मार्गदर्शन तथा परामर्श को कोई सटीक व्यवस्था नहीं है। परामर्श तथा मार्गदर्शन के अभाव में अधिकतर विद्यार्थी ऐसे विषयों का चयन कर लेते हैं, जिनसे वे उचित ज्ञान प्राप्त नहीं कर पाते हैं। उचित ज्ञान प्राप्त न कर पाने के कारण वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं। फलस्वरूप, उनमें निराशा की भावना घर कर जाती है। विश्वविद्यालयों में अनुशासनहीनता के लिए कुछ छात्र तथा कुछ शिक्षक दोनों ही उत्तरदायी हैं। प्रवेश को लेकर घेराव, तोड़-फोड़, आगजनी आदि घटनाएं घटित होती रहती हैं।
परिणामस्वरूप कॉलेजों और विश्वविद्यालयों को अनिश्चित काल के लिए बंद करना पड़ता है। उच्च शिक्षा पर कुछ राजनीतिक तथा सामाजिक वर्गों का प्रभाव पड़ रहा है। फलस्वरूप छात्र वर्ग का अन्य वर्गों के साथ संघर्ष बढ़ रहा है। आजकल अध्यापकों से दुव्र्यवहार, परीक्षा में नकल को लेकर होने वाली हिंसा, अनैतिकता, अनुशासनहीनता इसके ज्वलंत प्रमाण हंै। उद्देश्यहीनता उच्च शिक्षा की अत्यंत गंभीर समस्या है। उच्च शिक्षा के प्रबंधन में राजनीति का बढ़ता दखल उच्च शिक्षण संस्थानों की स्वायत्तता को खतरे में डालता है। इसके अलावा छात्र विश्वविद्यालयों में राजनीतिक गतिविधियों का आयोजन करते हैं और अपने उद्देश्यों को भूल जाते हैं तथा राजनीति में अपने करियर को विकसित करना शुरू करते हैं। खराब बुनियादी ढांचा भारत की उच्च शिक्षा प्रणाली के लिए एक बड़ी चुनौती है। विशेष रूप से सार्वजनिक क्षेत्र द्वारा संचालित संस्थान खराब भौतिक सुविधाओं और बुनियादी ढांचे से ग्रस्त हैं। संकाय की कमी और योग्य शिक्षकों को आकर्षित करने और बनाए रखने के लिए राज्य शैक्षिक प्रणाली की अक्षमता कई वर्षों से गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए चुनौती बन रही है। उच्च शिक्षण संस्थानों में बहुत सारी रिक्तियां होने के बावजूद बड़ी संख्या में नेट/पीएचडी डिग्रीधारी उम्मीदवार बेरोजग़ार हैं। उच्च शिक्षण संस्थानों में अनुसंधान पर पर्याप्त ध्यान केंद्रित नहीं किया गया है। छात्रों को सलाह देने के लिए अपर्याप्त संसाधन और सुविधाएं हैं। साथ ही सीमित संख्या में ही गुणवत्तायुक्त शिक्षक उपलब्ध हैं। भारतीय शिक्षण व्यवस्था का प्रबंधन अति-केंद्रीकृत नौकरशाही संरचनाओं, जवाबदेही, पारदर्शिता और व्यावसायिकता की कमी जैसी चुनौतियों का सामना करता है। संबद्ध कॉलेजों और छात्रों की संख्या में वृद्धि के परिणामस्वरूप विश्वविद्यालयों के प्रशासनिक कार्यों का बोझ काफी बढ़ गया है जिससे शिक्षाविदों की गुणवत्ता और अनुसंधान पर ध्यान केंद्रित नहीं किया जा रहा है। उच्च शिक्षा में गुणवत्ता सुनिश्चित करना आज भारत में शिक्षा के क्षेत्र में सामने आ रही चुनौतियों में से एक है।
हालांकि, सरकार लगातार गुणवत्तापूर्ण शिक्षा पर ध्यान केंद्रित कर रही है। फिर भी भारत में बड़ी संख्या में कॉलेज और विश्वविद्यालय यूजीसी द्वारा निर्धारित न्यूनतम आवश्यकताओं को पूरा करने में असमर्थ हैं जिसके कारण हमारे विश्वविद्यालय दुनिया के शीर्ष विश्वविद्यालयों के बीच अपनी जगह बनाने की स्थिति में नहीं हैं। गुणवत्तापूर्ण शिक्षण कौशल की पर्याप्तता को सुनिश्चित करने के लिए कुछ प्रमुख सुधार किए जाने की आवश्यकता है, जैसे पूर्व-सेवा संकाय प्रशिक्षण, जर्नलों की गुणवत्ता की जांच, निष्पादन आधारित संकाय मूल्यांकन, विशिष्ट पेशेवरों की भर्ती को प्रोत्साहन आदि। बेहतर गुणवत्ता वाले शिक्षकों की कमी, बढ़े हुए ग्रेड, छात्रों और शिक्षकों के मध्य अनुपस्थिति की प्रकृति, प्रयोगशाला अवसंरचना की कमी आदि के मुद्दों से पर्याप्त रूप से निपटने की आवश्यकता है। कुल मिला कर ई-समाधान यूजीसी की एक शानदार पहल है। इससे हमारे छात्रों को एक राहत नजर आ रही है, लेकिन इसके अलावा भी उच्च शिक्षा की अन्य समस्याओं के हल पर नजरसानी की जरूरत है। हम इस बात को यकीनी बनाएं कि छात्रों के लिए, खास तौर पर हमारी महिला छात्रों के लिए उच्च शिक्षा एक महज औपचारिकता न बने, बल्कि यह उनके लिए रोजगार और स्वरोजगार का एक बढिय़ा अवसर बने, उनके परिवार का सुनहरा भविष्य बने, राष्ट्र के लिए ज्ञान की संपत्ति बने और उन्हें स्वावलंबी बनाए।
ईमेल : [email protected]
डा. वरिंदर भाटिया
कालेज प्रिंसीपल

By: divyahimachal

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