- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- सच से मुंह छिपाना :...
x
19.3 फीसदी बच्चे कमजोर हैं, 35.5 फीसदी बच्चे अविकसित हैं।
यदि आपसे भारत की मौजूदा आर्थिक स्थिति पर एक निबंध लिखने के लिए कहा जाए, तो आपके दो शीर्ष विषय क्या होंगे? अधिकांश लोग बेरोजगारी और मुद्रास्फीति को सबसे बड़ी समस्याओं के रूप में प्राथमिकता देंगे। वित्त मंत्रालय मासिक आर्थिक समीक्षा प्रकाशित करता है। मुझे नहीं लगता कि वित्त मंत्रालय ने जिन छह युवा और उत्साही अर्थशास्त्रियों से समीक्षा के लिए ऐसा निबंध लिखने के लिए कहा था, उन्होंने बेरोजगारी के साथ ही कुपोषण, भूख और गरीबी जैसे शब्दों को जानबूझकर छोड़ दिया। (मुझे हैरत होती है कि कहीं ऐसा तो नहीं कि उनके कान में फुसफुसाकर कहा गया हो कि प्रधानमंत्री उनके आलेख को पढ़ सकते हैं) अर्थशास्त्रियों की टीम जानती है, लेकिन स्वीकार नहीं करेगी कि बेरोजगारी, कुपोषण, भूख और गरीबी जैसे शब्दों का लोप अकादमिक कर्तव्य की घनघोर अवहेलना है।
समीक्षा क्यों?
मासिक आर्थिक समीक्षा एक मूल्यवान दस्तावेज है। मैं यह उम्मीद कर रहा था कि 2022 की समीक्षा (22 अक्तूबर, 2022 को जारी हुई) अर्थव्यवस्था की वर्तमान स्थिति और ताकत तथा कमजोरियों का उद्देश्यपरक अर्द्ध वार्षिकी लेखा-जोखा प्रस्तुत करेगी; इंगित करेगी कि अगले छह से बारह महीनों के दौरान अर्थव्यवस्था की दिशा क्या हो सकती है; उन चुनौतियों की पहचान करेगी, जिनका सामना अर्थव्यवस्था को करना पड़ सकता है; और वैश्विक अर्थव्यवस्था के रुझानों और घरेलू अर्थव्यवस्था पर उनके प्रभाव को दिखाएगी।
सितंबर की समीक्षा एक पतला-सा दस्तावेज है- 33 पृष्ठों में ग्राफ, चार्ट और विषयवस्तु हैं और तीन पृष्ठों में आंकड़े हैं। विषयवस्तु छह खंडों में विभाजित है और इसका समापन निष्कर्ष और संभावना के साथ किया गया है। ये खंड सरकार की चिंता को रेखांकित करते हैं : 1. राजकोषीय स्थिति, 2. उद्योग, 3. सेवाएं, 4. कर्ज की मांग, 5. मुद्रास्फीति, 6. बाह्य क्षेत्र। निष्कर्ष यह है कि बेरोजगारी, कुपोषण, भूख और गरीबी सरकार की चिंताओं में शामिल नहीं हैं।
अपनी पीठ थपथपाना
रिपोर्ट का स्वर खुद की पीठ थपथपाने जैसा है। इसका आखिरी वाक्य इसके स्वर और दृष्टिकोण को स्पष्ट कर देता है : 'बल्लेबाजी करते समय जब गेंद स्विंग हो रही हो, तो गेंदों को छोड़ना (नीतिगत त्रुटियों को नजरंदाज किया गया) जितना अहम होता है, उतना ही अहम गेंदों को खेलना (नीतिगत फैसले) होता है।' लेखक डॉट गेंदें (बाहरी खतरों से अनजान) और विकेट दिलाने वाली गेंदों (रुपये का अवमूल्यन) का जिक्र करना भूल गए।
हर निष्कर्ष ऐसे कि पाठक उछल पड़ें। समीक्षा के मुताबिक, राजस्व में उछाल है, पूंजीगत व्यय बढ़ रहा है, व्यय की गुणवत्ता में सुधार हुआ है और अगस्त तक राजकोषीय स्थिति मजबूत थी। अनमने ढंग से स्वीकार किया गया है कि सरकारी उधारी से सार्वजनिक ऋण में वृद्धि हो सकती है। उद्योग के मामले में समीक्षा कई सूचकांकों का हवाला देती है, जैसे कि पीएमआई मैन्युफैक्चरिंग, एसएंडपी जीएससीआई इंडस्ट्रियल मेटल्स इंडेक्स, बिजनेस असेसमेंट इंडेक्स और औद्योगिक उत्पादन सूचकांक और निष्कर्ष निकाला है कि समग्र व्यावसायिक भावना में सुधार हुआ है। सेवाओं के मामले में समीक्षा अंतर-राज्यीय व्यापार, पर्यटन, होटल उद्योग, हवाई यात्री यातायात, परिवहन और रियल एस्टेट को लेकर उत्साहित है और भविष्यवाणी करती है कि यह क्षेत्र एक प्रमुख विकास संवाहक के रूप में उभरने की ओर अग्रसर है।
ऋण मांग स्वस्थ गति से बढ़ रही है (16.4 फीसदी साल दर साल), लेकिन सख्त मौद्रिक नीति और धीमी आर्थिक वृद्धि इसे बाधित कर सकती है। मुद्रास्फीति (महंगाई) के मामले में समीक्षा ने छलावा किया है। उसने 'भू-राजनीतिक घटनाक्रमों' को जिम्मेदार ठहरा कर सरकार को मुक्त कर दिया। बाहरी क्षेत्र के बारे में समीक्षा ने आत्मप्रशंसा (निर्यात को स्थिर किया) और बेबसी (आयात में रुकावट) की मिश्रित प्रतिक्रिया दी है। इसमें कहा गया है कि बढ़ते चालू खाता घाटे (सीएडी) को नियंत्रित किया जाना चाहिए और इसे जीडीपी के तीन फीसदी के अनुमान तक रोकना चाहिए- जबकि अनुमान है कि चालू खाता घाटा 3.3 फीसदी तक बढ़ सकता है।
विपरीत हालात
समीक्षा में जो कुछ कहा गया है, वह पक्षपातपूर्ण और आत्मश्लाघा है, फिर भी उसे माफ किया जा सकता है, क्योंकि यह दस्तावेज कुछ ही हफ्तों में इतिहास बन जाएगा। क्रुद्ध करने वाली बात यह है कि लाखों लोगों से संबंधित मामलों की कठोर तरीके से अवहेलना की गई है। ऋषि सुनक ने ब्रिटेन के प्रधानमंत्री का पद ग्रहण करते ही 'गंभीर आर्थिक संकट' की चेतावनी दी। यहां तक कि चीन के निरंकुश राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने भी चीन की अर्थव्यवस्था को सतर्कता के साथ 'लचीला' बताया है।
यूएनडीपी और ऑक्सफोर्ड एचडीआई (मानवाधिकार सूचकांक) ने 17 अक्तूबर, 2022 को जारी रिपोर्ट में अनुमान व्यक्त किया कि 2020 में भारत में 22.8 करोड़ (महामारी के वर्षों में यह आंकड़ा बढ़ गया) लोग 'गरीब' थे। ग्लोबल हंगर इंडेक्स में 121 देशों में भारत का स्थान 107 है, जो पिछले आठ वर्षों में कम हुआ है। सभी भारतीयों में से 16.3 फीसदी कुपोषित हैं, जिसका अर्थ है कि उन्हें पर्याप्त भोजन नहीं मिलता है। 19.3 फीसदी बच्चे कमजोर हैं, 35.5 फीसदी बच्चे अविकसित हैं।
सोर्स: अमर उजाला
Next Story