- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- हाय! रे हमर सोना...
x
वह 4 या 5 मई 1992 की सुबह थी. अभी सूरज निकला ही था. कुएं के पानी में ठंडक थी और आंखों में रंगीन सपने
DR. Santosh Manav
by Lagatar News
वह 4 या 5 मई 1992 की सुबह थी. अभी सूरज निकला ही था. कुएं के पानी में ठंडक थी और आंखों में रंगीन सपने. कच्ची उम्र के सपने लिए बस स्टैंड पहुंच गया. बस खुली, तो आंखें बहने लगी. अपनी माटी छूट रही थी. संगी-साथी छूट रहे थे. माटी छूटने का दर्द आंखों से आह ! बनकर फूटा. अपनी माटी में रोजगार मिले, तो कौन जाए 'परदेश'? रांची तक आंखें गीली रही. दूसरी बस जमशेदपुर के लिए. वहां से गीतांजलि एक्सप्रेस. स्लीपर क्लास की वह बोगी. टिकट कंफर्म नहीं, खड़े-टिकते-टिकाते पहुंच गए थे महाराष्ट्र की उप राजधानी नागपुर. नया शहर, नई भाषा, नए लोग. मुड़े-तुड़े बैग में रांची के एक वरिष्ठ पत्रकार की सिफारिशी चिट्ठी थी और जेब में पिता के दिए नौ सौ रुपए.
महानगरों की बस्तियों में दम तोड़ते सपने
तीस साल हो गए, तब के झारखंड (हालांकि तब यह बिहार का हिस्सा था) और आज के झारखंड में क्या बदला? रोजगार के लिए पलायन झारखंड की नियति है. मुंबई के धारावी, अंधेरी, चेन्नई, बेंगलुरु, कोलकाता-दिल्ली की गलियों में आज भी झारखंडियों के सपने टूटते हैं. दिन तो 'रोटी की राग' में बीत जाता है. रात में तन कहीं रहे, मन अपने सोना झारखंड में भटकता है. सपने में बोल फूटते हैं-हाय! रे हमर सोना झारखंड. सूबे में 22 साल जिनकी भी सत्ता रही, वे अपने लिए रोजगार तलाशते रहे, झारखंडियों के लिए नहीं. रोजगार के वैकल्पिक साधन नहीं दिए. नियुक्तियां होती नहीं. आज भी घोषणा है रोजगार. सपना है रोजगार. इसलिए महानगरों की बस्तियों में दम तोड़ते सपने हैं. आंखों से आह बनकर फूटती बद्दुआएं हैं. कोरोना का कहर टूटा तो झारखंड सरकार कह रही थी कि सात लाख झारखंडी मजदूर लौटेंगे. सोचिए, झारखंड से हर साल कितने लोग रोजगार के लिए पलायन करते हैं? कुछ तो लौटते भी नहीं. किसी महानगर में मर-खप जाते हैं. 22 वें साल में झारखंड का जश्न कैसे मनाएंगे?
किसी ने रोग नहीं हरा, भ्रम हुआ था
1992. तब बिहार था. पानी, बिजली, सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य सब गढ्ढे में. ऊपर से नरसंहार. नागपुर के सहकर्मी पूछते-तुम्हारे बिहार में बिजली नहीं है. सड़क नहीं. तुम बिहारी लोग जीते कैसे हो? बड़ी कोफ्त होती. गुस्सा आता. फिर साल 2000. 15 नवंबर. झारखंड बना. अब कोई कहता बिहारी, तो पलट कर जवाब देता, अब हम झारखंड में हैं- कृपया बिहारी न कहें. लगा जैसे किसी ने रोग हर लिए हों. अब 22 साल बाद पलटकर देखता हूं, तो लगता है कि किसी ने रोग नहीं हरा, भ्रम हुआ था. क्या बदला. कुछ भी तो नहीं? अब भी हर घर में नल का पानी नहीं है. डोभा, तालाब, नदी का पानी सहारा है. सरकार कह रही है कि 2024 तक हर घर में नल का जल होगा. राज्य में साढ़े चार लाख हैंडपंप हैं. आधे खराब.
कब तक अंधेरा, अब हमें उजाला चाहिए
देश के 70 प्रतिशत बिजलीघरों में झारखंड का कोयला और हम ही अंधेरे में. इसी गर्मी में 15-16 घंटे बिजली गायब रही. राज्य में 4600 मेगावाट बिजली का उत्पादन और इससे रोशन होती हैं दिल्ली, पंजाब, केरल. हम अंधेरे में. कौन ले जाएगा उजाले की ओर? ग्रामीण क्षेत्रों में अब भी सड़कों का बुरा हाल. शिक्षा का बुरा हाल. राज्य में 35 हजार से ज्यादा सरकारी स्कूल हैं पर 43 प्रतिशत में एक या दो शिक्षक. शिक्षकों के तीस हजार पद रिक्त. 2016 के बाद नियुक्ति नहीं हुई. कैसे कहें कि झारखंड 22 साल का होने वाला है. युवा है. इसकी जवानी का जश्न कैसे मनाएं?
चार हजार करोड़ का हेल्थ बजट कहां जाता है?
धनबाद का सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल है, शहीद निर्मल महतो मेडिकल कालेज -अस्पताल यानी SNMMCH. पिछले दिनों एक चौंकाने वाली खबर आई. बताया गया कि SNMMCH में TB के लिए अलग से वार्ड नहीं है और जेनरल वार्ड में ही TB मरीजों को भर्ती कर दिया जाता है. मान कर चलिए कि जो हालत SNMMCH की है, वही राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्था की है. राज्य में 203 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र हैं, जिनमें से आधे से अधिक में एक डाक्टर है. चार हजार करोड़ का हेल्थ बजट कहां जाता है? भ्रष्टाचार की दीमक सभी जगह है. पूजा सिंघलों की कमी नहीं है. हर रोज भ्रष्टाचार की खबर आ जाती है. थाना, CO, BDO, SDO—- कहीं बिना रिश्वत के काम नहीं होता. अब तो CM और उनके MLA भाई पर भी उंगली उठ रही है. बालू, पत्थर, कोयला की लूट है. कैसे मनाएं झारखंड के 22 साल होने का उत्सव?
झारखंड के माथे पर तीन कलंक
नक्सली गतिविधियों का कलंक राज्य के माथे पर है. 22 साल में पांच सौ से ज्यादा पुलिसकर्मी शहीद हो गए. साढ़े आठ सौ से ज्यादा लोग नक्सली के नाम पर मार दिए गए. पर कलंक बना हुआ है. हर साल औसतन 35 महिलाएं डायन के नाम पर मार दी जाती हैं. 22 साल में एक हजार से ज्यादा महिलाएं मार दी गईं. पांच हजार मामले दर्ज हुए. कैसे मनाएं झारखंड के 22 वें साल का समारोह? 22 साल बाद भी मिलकर रहना आया नहीं. कभी रांची, कभी जमशेदपुर, कभी गिरिडीह, कभी हजारीबाग में तनाव. कैसे मनाएं 22 वें साल का जलसा? इसी झारखंड से हर साल दस हजार महिलाएं बाहर जाती हैं. इनमें से एक हजार कभी नहीं लौटती. मानव तस्करी का सबसे बड़ा केंद्र अब भी झारखंड. काम के नाम पर हमारी बेटियां महानगरों के बाजार में नीलाम कर दी जाती हैं. इसी झारखंड का कोई पन्नालाल महतो हमारी बेटियों को बेचकर सौ करोड़ की सल्तनत खड़ी कर लेता है. कहा जाता है कि अकेले पन्नालाल ने 5000 झारखंडी बहन-बेटियां बेच दी. फिर कैसे मनाएं 22 वें वर्ष का आनंद.
सुनो सत्तानवीसों , कभी झारखंडियों की भी सोचो
सुनो, सत्तानशीनों कभी झारखंडियों की भी सोचो. उन्हें बुनियादी सुविधाएं दो. नक्सल, मानव तस्करी. डायन-बिसाही के कलंक मिटाओ. इसलिए कि हम मना सकें अबकी 15 नवंबर को झारखंड के 22 वें साल का त्योहार. सुन रहे हो न? आज त़ो यही कहा जा सकता है कि हमारा 22 साल का 'मुंडा' बिगड़ गया है.
Rani Sahu
Next Story