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'वीर' संस्कृत में बहुत प्राचीन शब्द है.
'वीर' संस्कृत में बहुत प्राचीन शब्द है. ऋग्वेद के विभिन्न मंत्रों में इसका उल्लेख प्राप्त होता है और उनके भाष्य में सायण ने वीर का अर्थ किया है- कर्म करने में समर्थ, यज्ञ कर्म में दक्ष, प्रेरणा देने वाला, विक्रांत आदि. हिंदी में भी वीर विशेषण शब्द है, जिसका अर्थ है बलशाली, योद्धा, नायक, साहसी, शूर, बहादुर, जो किसी विकट परिस्थिति में भी आगे बढ़ कर अपने कर्तव्य का पालन करे, जो किसी कार्य के संपादन में औरों से बहुत बढ़ कर हो. दृढ़तापूर्वक कार्य करनेवाला कर्मवीर कहलाता है.
परंपरा से चार प्रकार के वीर माने गये हैं- दानवीर, धर्मवीर, दयावीर और युद्धवीर. आजकल लंबी-चौड़ी फेंकने वाले, झूठे आश्वासन देने वाले, किंतु काम कुछ न करने वाले को वाग्वीर या वचन वीर भी कहा जाता है. संस्कृत में वीर का स्त्रीलिंग होता है वीरा. तेषामेतद्वचः श्रुत्वा वीरा वीरप्रजावती / वीरगोत्रसमुद्भूता वीरपत्नी प्रहर्षिता (मार्कण्डेय पुराण, 125/7). हिंदी में वीर का स्त्रीलिंग 'वीरांगना' चलाया जा रहा है और आजकल चर्चा का विषय भी है. वीरांगना विशेषण बहुत तर्कसंगत नहीं है और अनेक संदर्भों में इसका अर्थ वीर से कुछ भिन्न होता है.
बहुत से हिंदी शब्दकोशों में वीरांगना का उल्लेख भी नहीं मिलता. यों भी हिंदी में विशेषण को प्रायः लिंग निरपेक्ष माना जाता है, इसलिए वीर पुरुष, वीर नारी कहना व्याकरण सम्मत है. किंतु जैसा कि हम जानते हैं, भाषा में अनेक बार व्याकरण की अपेक्षा व्यवहार अधिक महत्वपूर्ण होता है. इसलिए वीर नारी या वीर स्त्री के स्थान पर वीरांगना (वीर अंगना) शब्द को न तो निरर्थक या असिद्ध कह सकते हैं, न उसे प्रयोग से बाहर कर सकते हैं. वीर का स्त्रीलिंग वीरांगना बनने के पीछे तर्क संभवतः यही रहा हो कि ‘अंगना’ शब्द स्त्री का पर्यायवाची है, इसलिए वीर पुरुष का स्त्रीलिंग वीर नारी अर्थात वीरांगना कहना उचित है.
कुछ लोग इसे वीर से नहीं, वीरा से बना संधिपद मानते हैं. जो वीरांगना का संधि विच्छेद वीरा+अंगना करते हैं, उन्हें समझना होगा कि वीरा तो अपने आप में स्त्रीलिंग है (यद्यपि प्रचलन में बहुत कम है). एक बार वीरा स्त्रीलिंग बन जाने के बाद उसके साथ फिर से स्त्री द्योतक अंगना लगाना अनावश्यक दोहराव है. ध्यान देने की बात है कि वीरांगना के अर्थ क्षेत्र में वीर की अपेक्षा कुछ सीमाएं हैं. प्रत्येक वीर (बलशाली) नारी को वीरांगना नहीं कहा जा सकता. वीरांगना एक तो वे महिलाएं कही गयीं, जो युद्ध भूमि में वीरता दिखा चुकी हैं और पराक्रम दिखाते हुए अपना बलिदान देकर सर्वोच्च उत्सर्ग तक कर चुकी हैं,
जैसे नायकी देवी, रामप्यारी गुर्जर, लक्ष्मीबाई, झलकारीबाई, चेन्नमा, मातंगिनी, हजारा आदि. दूसरी ओर वे भी वीरांगनाएं थीं, जिन्होंने योद्धा पतियों के हार जाने या वीरगति को प्राप्त होने के बाद आक्रांताओं से अपने सतीत्व की रक्षा के लिए जौहर को चुना. राजस्थान की ऐतिहासिक कहानियां ऐसी वीरांगनाओं की प्रमाण हैं. स्वतंत्रता आंदोलन के दौर में संघर्ष में भाग लेने वाली महिलाओं को भी लोगों ने वीरांगना कह कर उनकी सराहना की.
यह ठीक भी था, क्योंकि आजादी की लड़ाई में उन्होंने पुरुषों के कंधे से कंधा मिला कर संघर्ष किया और यातनाएं सहीं. अभिषेक अवतंस का मानना है कि वीर नारी के लिए वीरांगना शब्द बांग्ला से हिंदी में आया है. बांग्ला में माइकेल मधुसूदन दत्त के एक काव्य का नाम है वीरांगना.
नयी परिस्थितियों में मीडिया उन महिलाओं को भी वीरांगना कहते देखा जा रहा है, जिनके पति युद्ध भूमि में देश के लिए सर्वोच्च त्याग कर शहीद हो गये. नि:संदेह उन वीर योद्धाओं ने मातृभूमि के लिए सबसे बड़ा त्याग किया, किंतु उनकी विधवा पत्नियों को वीरांगना कहना उपयुक्त नहीं लगता. उन्होंने अपने वीर पति को खोया, परिवार और बच्चों के पालन-पोषण के लिए कठिनाइयां सहीं, किंतु इसको परमोत्सर्ग नहीं कहा जा सकता. आज सेना के विभिन्न अंगों में जो महिलाएं काम कर रही हैं, आवश्यकता पड़ने पर उनसे देशहित में शारीरिक और बौद्धिक बल के प्रयोग द्वारा शत्रु से टक्कर ले सकने की भी अपेक्षा की जाती है.
इसलिए उन्हें वीरांगनाएं कहना ठीक है. युद्ध करते हुए कोई स्त्री-सैनिक वीरगति को प्राप्त हो जाए, तो उसे अवश्य वीरांगना कहा जा सकता है, किंतु क्या उसकी तुलना बलिदानी वीर सैनिक की विधवा वीरांगना से की जा सकती है? क्या दोनों के उत्सर्ग में समानता है? यदि नहीं, तो फिर दोनों को समान विशेषण कैसे दिया जा सकता है, यह सोचने की आवश्यकता है.
शूरवीर शहीदों की विधवाएं स्वयं युद्ध विजेता या अपराजेय शूर कभी नहीं रहीं, शूर-पत्नी/वीर-पत्नी अवश्य रही हैं. तो उन्हें शूरपत्नी ही क्यों न कहा जाए. यह विशेषण हर बार यह याद भी दिला जायेगा कि जिस महिला के लिए यह प्रयुक्त हो रहा है, उसका पति शूरवीर रहा है. मीडिया में पहले ऐसी महिलाओं के लिए वीर सैनिक की विधवा, शहीद की पत्नी/विधवा, बलिदानी वीर की विधवा जैसे शब्द सुने जाते रहे हैं. अब कुछ नये प्रयोगधर्मी पत्रकार वीरांगना कहने लगे हैं, जिस पर उन्हें विचार करना चाहिए कि बलिदानी वीरों की विधवाओं के लिए वीरांगना विशेषण कितना उपयुक्त है.
सोर्स: prabhatkhabar
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Triveni
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