- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- हेमंत सोरेन का संकट,...
x
सोर्स- जागरण
झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की ओर से पद के दुरुपयोग मामले में निर्वाचन आयोग किस नतीजे पर पहुंचा है, इसका पता तभी चलेगा जब राज्यपाल अपना निर्णय सुनाएंगे। यह निर्णय कुछ भी हो, इसमें कोई संदेह नहीं कि हेमंत सोरेन ने बतौर खनन मंत्री और मुख्यमंत्री अपने नाम खनन पट्टा आवंटित कर जनप्रतिनिधित्व कानून का उल्लंघन किया। यह इससे सिद्ध भी हो जाता है कि उन्होंने इस मामले की शिकायत और जांच होने के बाद पट्टा वापस कर दिया।
समझना कठिन है कि जब वह अपने नाम खनन पट्टा आवंटित कर रहे थे, तब संबंधित अधिकारियों ने उन्हें यह क्यों नहीं बताया कि यह अनुचित और अवैधानिक है? प्रशासन में ऐसे अधिकारियों के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए, जो अपने दायित्वों का सही तरह निवर्हन करने के बजाय नेताओं की हां में हां मिलाएं और उनके गलत कामों में भागीदार बनना पसंद करें। यदि निवार्चन आयोग के फैसले के कारण हेमंत सोरेन को मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ सकता है तो यह कोई नई-अनोखी बात नहीं होगी, क्योंकि पद के दुरुपयोग को लेकर पहले भी विधायकों और सांसदों की सदस्यता जा चुकी है।
राज्यपाल के फैसले की प्रतीक्षा के बीच प्रश्न केवल यही नहीं है कि हेमंत सोरेन का क्या होगा, बल्कि यह भी है कि झारखंड मुक्ति मोर्चे के नेतृत्व वाली साझा सरकार बची रहेगी या जाएगी? यह प्रश्न इसलिए सतह पर है, क्योंकि हेमंत सोरेन और उनकी सरकार में शामिल दलों के नेता यह आरोप उछालने में लगे हुए हैं कि भाजपा सत्ताधारी गठबंधन के विधायकों को तोड़कर अपनी सरकार बनाने की जुगत में है। इस आरोप को संगीन रूप देने के लिए विधायकों को अन्यत्र ले जाया जा रहा है। यदि गठबंधन एकजुट है तो फिर इसकी क्या आवश्यकता है?
राजनीतिक दलों में टूट-फूट कोई नई बात नहीं, लेकिन इसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि अपनी गलतियों और अंतर्विरोधों को ढकने के लिए ऐसे आरोप लगाना फैशन बन गया है कि भाजपा छल-बल से विरोधी दलों की सरकारों को गिराने में लगी हुई है। जो भी राज्य सरकार अपने ही कर्मों से किसी संकट में फंसती है, वह ऐसे आरोप लगाने लगती है।
फिलहाल यह कहना कठिन है कि इन आरोपों में कितनी सच्चाई है कि भाजपा झारखंड में सत्ता परिवर्तन के लिए प्रयासरत है, लेकिन यदि वह ऐसी किसी संभावना को टटोल रही है तो यह उसके लिए शायद ही हितकारी हो। इससे ऐसे आरोपों को न केवल बल मिलेगा कि वह येन-केन प्रकारेण विपक्ष शासित राज्यों में अपनी सरकार बनाने में जुटी हुई है, बल्कि देश को यह संदेश भी जाएगा कि वह अपनी छवि, चरित्र और विचारधारा को लेकर गंभीर नहीं।
Rani Sahu
Next Story