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Written by जनसत्ता; सरकार की ओर से योजनाओं की घोषणा जमीनी स्तर पर किस रूप में अमल में आती है, इसके उदाहरण अक्सर सामने आते रहे हैं। इसी कड़ी में यह भी देखा जा सकता है कि उत्तर प्रदेश में प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि के तहत आनन-फानन में तमाम लोगों को राशि तो जारी कर दी गई, मगर अब वैसे बहुत सारे लोगों से पैसे वसूलने की प्रक्रिया शुरू होगी, जिन्हें इसके लिए अपात्र माना गया है।
दिलचस्प यह है कि अपात्र माने जाने वालों की संख्या इक्कीस लाख पाई गई है। सही है कि दो करोड़ पचासी लाख की तादाद बड़ी होती है और उसमें कुछ अपात्र लोग गलत तरीके से लाभ लेने में लिप्त हो सकते हैं। लेकिन इतनी बड़ी संख्या बताती है कि यह सुविधा या लाभ लेने के लिए बनाए गए नियम-कायदों में बड़ी कमी थी और अब जाकर यह पता चल पा रहा है कि इस योजना के तहत सहायता राशि का फायदा लाखों गलत लोगों को मिल रहा था। सवाल है कि इस तरह की व्यापक दायरे वाली योजनाओं पर अमल करने से पहले उसकी ठोस और सुचिंतित प्रक्रिया क्यों नहीं तय की जाती है!
गौरतलब है कि केंद्र सरकार की इस महत्त्वाकांक्षी योजना की शुरुआत प्रधानमंत्री ने 24 फरवरी 2019 को उत्तर प्रदेश के गोरखपुर से की थी। इसके तहत छोटे और सीमांत किसानों को सालाना न्यूनतम छह हजार रुपए दिए जाते हैं। हर पात्र किसान को तीन किश्तों में इसका भुगतान किया जाता है और सहायता राशि उनके बैंक खातों में जमा की जाती है। इसी क्रम में अन्य राज्यों के साथ-साथ उत्तर प्रदेश में भी भारी पैमाने पर लोगों ने धड़ल्ले से इस योजना का लाभ लिया।
जिन किसानों को उस समय किसान सम्मान निधि दी गई, उनकी पात्रता और दस्तावेजों को जांच कर उन्हें राशि जारी करने की जरूरत नहीं समझी गई। लेकिन अब जब लाभार्थियों का सत्यापन कराया जा रहा है तब उनमें से ऐसे तमाम लोग पाए जा रहे हैं, जो इस सहायता राशि के लिए अपात्र हैं। हैरानी की बात यह है कि सत्यापन की प्रक्रिया के तहत जिन नियमों की जांच अब की जा रही है, उसे शुरुआती दौर में कसौटी के तौर पर रखना और उसकी पड़ताल करने को लेकर गंभीरता नहीं बरती गई।
जाहिर है, अगर आज इस योजना का लाभ उठाने वाले लोगों में से बहुतों को अपात्र घोषित किया जा रहा है तो इसके लिए भी सरकार की ओर से की गई व्यवस्था ही जिम्मेदार है। भूलेखों की जानकारी देने से लेकर सत्यापन के लिए तय कसौटियों की जांच करना सरकारी तंत्र के लिए कोई बहुत जटिल काम नहीं है। अन्य तमाम योजनाओं के लाभार्थियों के दस्तावेजों और पात्रता की जांच के बाद प्रक्रिया को आगे बढ़ाना एक आम व्यवस्था है।
लेकिन विचित्र है कि प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि के तहत सहायता राशि देते हुए भारी लापरवाही बरती गई। क्या इसके पीछे तात्कालिक तौर पर राजनीतिक नफा-नुकसान को ध्यान में रखा गया था? दरअसल, पिछले लोकसभा चुनाव और इसके साथ-साथ उत्तर प्रदेश में हुए विधानसभा चुनावों के दौरान भी प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि की योजना का व्यापक प्रचार किया गया था। एक तरह से यह भाजपा के पक्ष में वोट के लिए एक आकर्षक योजना साबित हुई। लेकिन तब इसके लाभार्थियों की पात्रता पर गौर करना और अपात्र लोगों को बाहर करना जरूरी नहीं समझा गया। क्या इसके पीछे एक बड़े हिस्से का वोट खोने का डर काम कर रहा था? बहरहाल, अब कम से कम यह हो कि इस योजना की सहायता राशि प्राप्त करने के लिए अपात्र ठहराए जाने की प्रक्रिया में कोई गड़बड़ी नहीं की जाए।