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सिकंदराबाद के महेंद्र हिल्स की हिल टॉप कॉलोनी खड़ी ढलान वाली पहाड़ी पर है
एन. रघुरामन । सिकंदराबाद के महेंद्र हिल्स की हिल टॉप कॉलोनी खड़ी ढलान वाली पहाड़ी पर है, जहां अच्छी सीढ़ियां नहीं थीं। यहां पहाड़ी के ऊपर से आने वाले पानी से लगातार खतरा मंडराता रहता था। पिछले एक दशक से बुजुर्ग अपना पड़ोस देखने बाहर नहीं आए थे और जान जोखिम में डालने की बजाय कैदियों की तरह रह रहे थे। जोखिम देखते हुए शहर का कोई माता-पिता इस इलाके में अपनी बेटी की शादी करना नहीं चाहता था।
वर्षों से इस कॉलोनी तक पहुंचने का रास्ता खतरों से भरा था, जिसे घर के कमाने वालों को बमुश्किल पार करते थे। लीक होती पाइपलाइन खतरा बढ़ा रही थीं। हर रहवासी की ढलान पर चढ़ने में परेशानी की अपनी कहानी थी, जो लगभग 110 डिग्री टेढ़ी थी। यह गंदा और खतरनाक इलाका सभी के लिए परेशानी था। यह सब अतीत हो गया, जब ऑरोरा डिजाइन इंस्टीट्यूट, हैदराबाद से डिजाइन का कोर्स कर रहे चतुर्थ वर्ष के छात्रों, पुन्ना नितीश, मनीष आनंद, येडला सुरेंद्र, भाटी द्वियांश, अलंकृता खोशेकेय और सृजा दिद्दी ने यहां की समस्याओं को अपने हाथों में लिया।
पिछले चार महीनों से यहां से रहवासी सुबह आठ बजे इन छात्रों का इंतजार करते हैं, जो आकर उनकी जिंदगी को बेहतर बना रहे हैं। टीम ने सबसे पहले चिकनी ढलान की जगह आसान सीढ़ियां बनाईं। साथ ही उन्होंने पाइपलाइन के नेटवर्क के लिए नाली बनाई और उसे कॉमन स्टोरेज से जोड़ा ताकि बहने वाला पानी पौधों के लिए इस्तेमाल हो सके। उन्होंने फुटपाथ की दीवारों को कलाकृतियों से सजाया। अंतत: प्रोजेक्ट खत्म होने वाला है और टीम ने एक प्रोजेक्टर लाकर रहवासियों को सुझाव दिया है कि वे किसी खाली दीवार को बतौर स्क्रीन इस्तेमाल करें।
उनका उद्देश्य 'सार्थक सुमदाय बनाना' था, जो कि हैदराबाद अर्बन लैब्स (एचयूएल) की परियोजना है। हैरानी नहीं कि इस उपेक्षित कॉलोनी के बच्चे इन छह छात्रों को अक्का (बहन) और अन्ना (भाई) पुकारते हैं। आज रास्ता अच्छा होने और सीढ़ियां बनने से सभी की जिंदगी बदल गई है। करीब 1.75 लाख रुपए लागत के इस काम के लिए विप्रो फाउंडेशन ने फंड दिया और यह एचयूएल के 'इंटरवेंशन विद वॉटर' चैलेंज का हिस्सा था, जिसमें विभिन्न कॉलेजों से छात्रों के 18 समूहों ने हिस्सा लिया था।
अंतत: 'जलम्' नाम की इन छह छात्रों की टीम को उनके इलाके के चुनाव और प्रस्तावित समाधान के कारण यह प्रोजेक्ट मिला। चूंकि यह उनका पहला ऑन-साइट प्रोजेक्ट था, सभी छात्रों को हर स्तर पर चुनौतियां मिलीं। उन्होंने पहले फोटो खींचने, समुदाय के जिम्मेदारों से बात करने और उनकी जिंदगी तथा रोजमर्रा के कामों को समझने के अलावा कॉलोनी की प्रकृति समझने से शुरुआत की। हमेशा धारणा रही है कि डिजाइन के छात्र सौंदर्यीकरण के कार्य करते हैं और उनका समाज से जुड़ाव नहीं रहता।
लेकिन इस डिजाइन टीम ने सौंदर्य ही नहीं, व्यावहारिक समाधानों पर भी काम किया। मुझे लगता है कि छात्र ऐसे प्रोजेक्ट लेंगे तो इससे महामारी के दौरान, 18 महीनों में घर बैठने के कारण हुए उनके नुकसान की भरपाई हो सकती है। छात्र आसपास के माहौल से पूरी तरह कट गए थे और उन्हें लगने लगा था कि टीवी सीरियल्स में दिख रही जिंदगी ही वास्तविक है।
इससे भविष्य में नौकरी करने पर उनकी जिंदगी मुश्किल हो जाती। फंडा यह है कि कॉलेज समुदाय से फिर से जुड़ने में छात्रों की मदद करें, ताकि महामारी में बर्बाद हुए समय की भरपाई हो। इससे वे जल्द वास्तविक दुनिया में वापस आ सकेंगे।
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