सम्पादकीय

भारत द्वारा श्रीलंका को दी जा रही मदद सभी पड़ोसी देशों के लिए भाईचारे का संदेश

Gulabi Jagat
20 April 2022 8:42 AM GMT
भारत द्वारा श्रीलंका को दी जा रही मदद सभी पड़ोसी देशों के लिए भाईचारे का संदेश
x
श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्ष ने नया मंत्रिमंडल नियुक्त किया है और अपनी सरकार की गलतियों के लिए सार्वजनिक क्षमा-याचना भी की है
डॉ. वेदप्रताप वैदिक का कॉलम:
श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्ष ने नया मंत्रिमंडल नियुक्त किया है और अपनी सरकार की गलतियों के लिए सार्वजनिक क्षमा-याचना भी की है, लेकिन श्रीलंका की जनता का गुस्सा बरकरार है। राजपक्ष के अपने समर्थक विरोधियों से जा मिले हैं और रोज ही राष्ट्रपति भवन का घेराव हो रहा है। श्रीलंका के शहरों और गांवों में प्रदर्शनकारियों ने पुलिस और फौज का दम फुला दिया है। श्रीलंका का सबसे बड़ा विरोधी दल राष्ट्रपति के विरुद्ध संसद में अविश्वास का प्रस्ताव पेश कर रहा है।
यह तब हो रहा है, जब राजपक्ष परिवार के कई सदस्यों को नए मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया गया है। श्रीलंका की सरकार में राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री तो गोटबाया परिवार के थे ही, उनके साथ-साथ दो अन्य भाइयों और एक भतीजे को भी मंत्री बना दिया गया था। इन पंच परमेश्वरों से बने गोटबाया परिवार ने श्रीलंका में लगभग तानाशाही राज चला रखा था। अब भी श्रीलंका के दो सर्वोच्च पदों- राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री- पर राजपक्ष-बंधु डटे हुए हैं। यह राजपक्ष परिवार ही श्रीलंका की दुर्दशा के लिए जिम्मेदार है।
महिंद राजपक्ष ने अपने पिछले कार्यकाल में तमिल उग्रवाद को जड़ से उखाड़कर महानायक की जो छवि बनाई थी, वह अब धूमिल हो चुकी है। उसके कई कारण हैं। सबसे पहला कारण तो यह है कि थोक मंहगाई श्रीलंका में 20 प्रतिशत हो गई। आम आदमी को आज पेट भर खाना भी नसीब नहीं है। चावल 500 रु., चीनी 300 रु. और दूध पाउडर 1600 रु. किलो बिक रहा है। घरों में गैस और बिजली का टोटा पड़ गया है। सरकार के पास इतनी विदेशी मुद्रा नहीं बची है कि वह विदेशों से गैस, पेट्रोल और डीजल खरीद सके।
पेट्रोल और डीजल 300 रु. प्रति लीटर से भी महंगे बिक रहे हैं। सड़कें सुनसान हो गई हैं और दुकानें उजड़ी पड़ी हुई हैं। श्रीलंका की सरकार पर 12 अरब डाॅलर का विदेशी कर्ज चढ़ गया है। श्रीलंका की इतनी लोकप्रिय और शक्तिशाली सरकार ने अपनी अर्थव्यवस्था को चौपट कैसे कर दिया? इसका सबसे बड़ा कारण राजपक्ष-परिवार का अहंकार है। पंच-परमेश्वरों को जो भी ठीक लगा, उन्होंने जनता पर लाद दिया। न तो उन्होंने देशी-विदेशी विशेषज्ञों की कोई राय ली और न ही किसी मुद्दे पर मंत्रिमंडल में खुलकर बहस होने दी।
राजपक्ष सरकार किसी प्राइवेट लिमिटेड कंपनी की तरह चलती रही। विरोधियों के दृष्टिकोण को यह कहकर रद्द कर दिया गया कि उन्हें शासन-कला का ज्ञान नहीं है। जब गिरती अर्थव्यवस्था को टेका देने के लिए अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से संपर्क करने का सुझाव आया तो सरकार ने कह दिया कि उसे विदेशी सलाह की जरूरत नहीं। सरकारी भुगतान करने और मंहगाई पर काबू करने के लिए सरकार ने नए नोटों की छपाई तूफानी ढंग से शुरू कर दी। दो साल में मुद्रा की सप्लाई में 42 प्रतिशत वृद्धि हो गई।
सरकार की सबसे बड़ी भूल उसकी खाद नीति के कारण हुई। उसने विदेशी रासायनिक खाद का आयात एकदम बंद कर दिया। श्रीलंका के मुख्य खाद्य चावल की उपज काफी घट गई। पहली बार श्रीलंका को चावल आयात करना पड़ा। उसके सबसे बड़े विदेशी मुद्रा के स्रोतों में से एक चाय का निर्यात है। उसकी पैदावार भी घट गई। श्रीलंका को विदेशी मुद्रा का बड़ा हिस्सा विदेशी पर्यटकों से प्राप्त होता है।
लेकिन उसके भी घटने के दो कारण हो गए- कोरोना महामारी और 2019 में चर्च पर आतंकी हमला। श्रीलंका में हर साल दो-ढाई लाख विदेशी पर्यटक आते थे, लेकिन अब उनकी संख्या कुछ हजार तक ही सीमित रह गई है। इसी प्रकार वस्त्र-निर्यात से श्रीलंका औसतन 5 अरब डाॅलर जुटाता था, वह लगभग आधा रह गया था। जबकि उसका विदेशों से आयात का बिल 21 अरब डाॅलर हो गया।
एक तरफ सरकार पर विदेशी कर्ज चढ़ता गया और दूसरी तरफ उसने अपनी आमदनी के स्रोतों को भी सुखाना शुरू कर दिया। उसने अपनी जन-सेवक की छवि को चमकाने के लिए टैक्स में जबरदस्त कटौतियां शुरू कर दीं। आयकर लगभग खत्म कर दिया। सरकार की आमदनी का हाल अब यह हो गया है कि वह अपने कर्मचारियों को उनका वेतन भी ठीक से नहीं दे पाएगी।
वह कोशिश कर रही है कि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और भारत जैसे देश इस आड़े वक्त में उसके काम आएं। जिस चीन ने श्रीलंका को कई सब्जबाग दिखाए थे, वह अब चुप्पी खींचे बैठा हुआ है। जो राजपक्ष भाई लोग भारत को दरकिनार करके चीन से चिपकने की कोशिश कर रहे थे, उन्हें सख्त सबक मिल रहा है। इस समय भारत ही श्रीलंका को अराजकता की खाई में गिरने से बचाए हुए है। चीन ने हंबनतोता बंदरगाह, सड़कें और भवन-निर्माण के कार्यों के लिए कर्ज देकर श्रीलंकाई अर्थव्यवस्था को बोझिल बना दिया है।
उसे अपने कर्ज-जाल में फंसा लिया है। जबकि भारत श्रीलंका को हजारों टन चावल तथा अन्य खाद्य सामग्री भेज रहा है। उसे ईंधन और अनाज की कमी न पड़े, इसलिए भारत ने जनवरी से अब तक 2.4 अरब डाॅलर की राशि दे दी है। श्रीलंका चाहता है कि उसे अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष 4 अरब डाॅलर की सहायता कर दे लेकिन उसकी प्रक्रिया काफी लंबी है।
इस मामले में भारत निश्चय ही उसकी मदद करेगा। भारत की यह सहायता हमारे सभी पड़ोसी राष्ट्रों के लिए भाईचारे का एक सुगढ़ संदेश है। नेपाल हो, अफगानिस्तान हो, मालदीव हो या श्रीलंका हो, भारत किसी भी देश के साथ भेदभाव नहीं करता। श्रीलंका का राजनीतिक परिदृश्य जो भी बने, उसके इस आर्थिक संकट में भारत ही उसका सबसे विश्वसनीय मित्र सिद्ध होगा।
चीन ने चकमा दिया, भारत ने बनाया मदद का सेतु
जिस चीन ने श्रीलंका को कई सब्जबाग दिखाए थे, वह अब चुप्पी खींचे बैठा है। जो राजपक्ष भाई लोग भारत को दरकिनार करके चीन से चिपकने की कोशिश कर रहे थे, उन्हें सख्त सबक मिल रहा है। इस समय भारत ही श्रीलंका को अराजकता की खाई में गिरने से बचाए हुए है। चीन ने श्रीलंका को अपने कर्ज-जाल में फंसा लिया है, जबकि भारत उसे हजारों टन चावल भेज रहा है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
Next Story