दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि राजनेताओं को जरूरी दवाओं की जमाखोरी राजनीतिक उद्देश्य से नहीं करनी चाहिए। अदालत ने कहा कि अगर वे जनता की मदद करना चाहते हैं, तो दवाओं को केंद्रीय स्वास्थ्य सेवा निदेशालय को सौंप सकते हैं, ताकि सरकारी अस्पतालों में उनका इस्तेमाल हो सके। पूर्वी दिल्ली से सांसद और पूर्व क्रिकेट खिलाड़ी गौतम गंभीर ने यह घोषणा की थी कि एंटीवायरल दवा फेविपिराविर या फैबिफ्लू उनके कार्यालय में उपलब्ध है और लोग वहां से मेडिकल परची दिखाकर इसे ले सकते हैं। दिल्ली पुलिस ने अदालत को बताया कि वह दवा जब्त कर ली गई है और उसे सीजीएचएस को सौंप दिया जाएगा। ऐसे और भी उदाहरण हैं। गुजरात भाजपा अध्यक्ष ने यह घोषणा की थी कि रेमडेसिविर इंजेक्शन सूरत में पार्टी कार्यालय में मिल सकता है। उनके विरुद्ध भी मामला गुजरात हाईकोर्ट में उठा है। महाराष्ट्र में भी कई नेताओं पर आरोप लगे कि उन्होंने रेमडेसिविर अपने रसूख से हासिल किए और बांटे। दरअसल, रेमडेसिविर इंजेक्शन की कोरोना संक्रमण में बहुत मांग है और देश भर से इसे पाने के लिए मारामारी की खबरें आ रही थीं। इसी वजह से केंद्र सरकार ने इसका वितरण अपने हाथों में ले लिया और यह तय किया कि इसे सिर्फ सरकारी तंत्र के जरिये ही बेचा जाएगा।