सम्पादकीय

मानवीय आक्रोश की पराकाष्ठा

Rani Sahu
13 Jun 2023 7:08 PM GMT
मानवीय आक्रोश की पराकाष्ठा
x
ईश्वर ने मनुष्य को सत्य, प्रेम, अहिंसा, परोपकार एवं सहिष्णुता जैसे जीवन के शाश्वत मूल्य प्रदान किए हैं। इन जीवन मूल्यों की साधना से कोई भी मनुष्य अपने जीवन के व्यवहार, आचरण तथा विचार को सभ्य और शिष्ट बना सकता है, परन्तु यह कार्य इतना सरल नहीं है। इस विचार, व्यवहार तथा दर्शन को अपने जीवन में लाने के लिए कड़ी साधना करनी पड़ती है। इसके लिए ज्ञान, ध्यान, दान, दया, धर्म, शान्ति, धैर्य एवं संतोष रखना पड़ता है। व्यावहारिक रूप से जहां यह कार्य असम्भव नहीं है, वहां पर बहुत आसान भी नहीं है, लेकिन इसके लिए धीर-गम्भीर, शान्त, सब्र तथा सन्तोष रखना पड़ता है। जहां ये उपरोक्त जीवन मूल्य हमारे जीवन का मार्गदर्शन करते हैं वहीं पर काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार जैसे विकार हमारे जीवन को घेरे रहते हैं। यहां पर काम का मतलब कामना या इच्छा से है। मनुष्य का मन बहुत ही चंचल और तीव्रगामी है, इस पर नियंत्रण करना बहुत ही क्लिष्ट है। मनुष्य के मन में निरंतर अनेकों प्रकार के अच्छे एवं बुरे विचार आते रहते हैं। अनेकों प्रकार की कामनाएं एवं इच्छाएं जन्म लेती हैं तथा मनुष्य उनको पूरा करने के लिए किसी भी कीमत पर कर्म करता है।
यही कामनाएं जब पूरी नहीं होती तो क्रोध बढ़ता है और कामनाएं पूरा होने पर लोभ बढ़ता है, अत्यधिक लोभ से मोह बढ़ता है। अधिक से अधिक इच्छाएं तथा मनोकामनाएं पूर्ण होने पर मनुष्य में अहंकार बढ़ जाता है। यही अहंकार मनुष्य की बुद्धि पर पर्दा डाल देता है। उसकी सोचने-समझने, तर्क-वितर्क तथा विचार तथा विश्लेषण करने वाली बुद्धि ज्ञानेंद्रियां क्षीण पडऩे लगती हैं और वह धन, दौलत, प्रभाव, शक्ति तथा सत्ता के नशे में चूर हो जाता है, परिणामस्वरूप चोरी, डकैती, लूट-खसूट, अनाचार, बलात्कार, हत्याएं होती हैं। अनिष्ट एवं अमंगल होता है। पारिवारिक, सामाजिक तथा मानवीय सन्तुलन बिगड़ता है। डर, भय, असंतोष, आक्रोश तथा नकारात्मकता का वातावरण बनता है। सामाजिक सौहार्द, समरसता एवं सन्तुलन बिगड़ता है। मानवीय असंतोष, असन्तुलन, असंवेदनशीलता तथा असहिष्णुता पैदा होती है। व्यक्ति में घृणा तथा नफरत जैसी दुर्भावनाएं जन्म लेती हैं। परिणामत: मानवीय भावनाएं एवं संवेदनाएं सिसकती, चीखती, चिल्लाती एवं कराहती हैं। वर्तमान में आवश्यकता है मानवीय परवरिश में एक अच्छी शिक्षा एवं संस्कारों की। जीवन में संतुलित होना अति आवश्यक है। यह संतुलन हर्ष, शोक, भय, सुख-दु:ख में हर समय, स्थान तथा स्थिति में आवश्यक है। यही सन्तुलन जब बिगड़ता है तो शिक्षित तथा समझदार व्यक्ति भी अनिष्ट कर बैठता है। इसका ताजा उदाहरण जिला बिलासपुर में घुमारवीं उपमंडल के भराड़ी थाना के गांव सौग में देखने को मिला, जहां एक पचपन वर्षीय व्यक्ति ने घरेलू कलह तथा जमीन से पैदा हुए छोटे से विवाद में अपनी सगी बड़ी भाभी की तेजधार दराट से हत्या कर दी। यह भी ध्यान देने वाली बात है कि आरोपित हत्यारा जिला सोलन में सरकारी वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला तरवाड़ का प्रधानाचार्य है तथा उसे कुछ ही समय पूर्व कामर्स के प्रवक्ता पद से प्रधानाचार्य के रूप में पदोन्नति मिली थी। आरोपी की पत्नी जेबीटी है तथा तीनों बच्चे एमबीबीएस की पढ़ाई कर रहे हैं। हैरानी की बात यह है कि एक शिक्षित परिवार का एक शिक्षक मुखिया ऐसी निन्दनीय घटना को कैसे अंजाम दे सकता है? विगत कुछ दिनों से व्यक्ति की मनोदशा में उमड़ता होता यह आक्रोश इतना शक्तिशाली था कि पल भर में उसे महिला की हत्या करने पर मजबूर कर दिया।
मामला दो परिवारों का है। भविष्य में पुलिस एवं न्यायिक लम्बी प्रक्रिया इस पर अपना कार्य करेगी, लेकिन इतना सत्य है कि एक क्षणिक चूक से अब उस व्यक्ति का तथा उसके निर्दोष परिवार का जीवन तहस-नहस हो गया। आरोपी के पारिवारिक तथा सामाजिक जीवन में इस दुखद घटना के अनेक दूरगामी परिणाम होंगे, जिससे हासिल हुआ मौत, आत्मग्लानि, पश्चाताप और जीवन का दु:ख दर्द। इस दुखदायी घटना के परिणाम आरोपी के अन्य परिजनों को भी भुगतने पड़ेंगे। इस घटना का आरोपी के परिजनों के पारिवारिक तथा सामाजिक जीवन पर प्रभाव पडऩा स्वाभाविक है। इससे मानसिक तथा आत्मिक शांति भंग होगी। क्षणभर की आक्रोश की अग्नि ने एक व्यक्ति का पारिवारिक जीवन पूर्णत: बदल कर रख दिया। वर्तमान में प्रदेश में इस प्रकार की अनेकों लड़ाई-झगड़े, मारपीट तथा हत्या की घटनाएं आए दिन पुलिस के दस्तावेजों में पंजीकृत हो रही हैं। पुलिस, जेल तथा न्यायिक मामलों में निरंतर बढ़ोतरी हो रही है। सडक़ पर चलते छोटी-सी बात पर जान से मार देने, गोली से उड़ा देने की धमकी देना, मारपीट होना आम बात हो गई है। याद रखना चाहिए कि क्षणभर का आक्रोश व्यक्ति के जीवन को नर्क बना सकता है। पारिवारिक, सामाजिक, व्यावसायिक, राजनीतिक तथा प्रशासनिक जीवन में यह आक्रोश बहुत ही आम हो गया है।
साधारणत: इस तरह की घटनाओं की पृष्ठभूमि में जर, जोरु और जमीन मुख्य कारण रहता है। भूमि विवाद, जल विवाद तथा धन सम्बन्धी मामलों में कई बार सामान्य विवाद जघन्य कृत्यों में परिवर्तित हो जाते हैं। राजनीति तथा सत्ता संघर्ष में अनेकों बार अपराध होते देखे गए हैं। नफरत तथा बदला लेने की आग इतनी भयंकर होती है कि व्यक्ति धन-दौलत व सत्ता के नशे में मदमस्त होकर इस प्रकार के अपराधों को अंजाम देकर जीवन भर के लिए पश्चाताप के लिए जेल की सलाखों के पीछे जीवन जीने के लिए मजबूर हो जाता है। मनुष्य का अहंकार तथा दम्भ अपने चरम पर है। यह सब व्यक्ति की वृत्ति तथा कृति के लिए सुखद नहीं है। यह वर्तमान मानवीय महत्त्वाकांक्षा, असहिष्णुता तथा असंवेदनशीलता की परिणति है। चोरी-डकैती, लूट-खसूट, मारपीट, अनाचार, बलात्कार तथा हत्या जैसे अपराधों से बचने के लिए आवश्यक है कि ज्ञान, ध्यान, योग, अध्ययन, शिक्षण तथा संस्कारों के साथ मानवीय मूल्यों को अपने जीवन में अपनाएं। दूसरे का हक न छीनकर न्यायप्रिय बनें। सुख, शांति, संतोष तथा धीरज के साथ संतुलित जीवन जिएं। संसार के सभी जीव-जंतुओं तथा प्राणियों से प्रेम करें। इस धरती पर सभी का समान अधिकार है। जीवनयापन के सभी संसाधन सभी की सामूहिक सम्पत्ति हैं। सबका जीवन मंगलमय हो। सभी के कल्याण की कामना करें। सभी सुखी और निरोगी हों। विशाल ह्रदयी होकर ईश्वर के धन्यवाद सहित सभी प्राणियों के मंगल एवं कल्याण की कामना करनी चाहिए।
प्रो. सुरेश शर्मा
शिक्षाविद
By: divyahimachal
Rani Sahu

Rani Sahu

    Next Story