सम्पादकीय

भारत में खतरनाक होती जा रही है हीट वेव, कब सोचेंगे हम

Rani Sahu
27 April 2022 10:33 AM GMT
भारत में खतरनाक होती जा रही है हीट वेव, कब सोचेंगे हम
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मौसम हमें सीधे तौर पर कड़ी चेतावनी दे रहा है कि ‘सुधरो’! इस साल गर्म हवाओं के जो आंकड़े सामने अब तक आए हैं

राकेश कुमार मालवीय

मौसम हमें सीधे तौर पर कड़ी चेतावनी दे रहा है कि 'सुधरो'! इस साल गर्म हवाओं के जो आंकड़े सामने अब तक आए हैं वह हमसे बुनियादी परिवर्तन की अपेक्षा रख रहे हैं. यदि जलवायु परिवर्तन के इस विषय पर गंभीरता से कुछ सोचा न गया तो जिस 'विकास' के लिए सब कुछ किया जा रहा है वह बेमानी हो जाएगा.
भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के आंकड़ों का हाल ही में पर्यावरण पत्रिका 'डाउन टू अर्थ' ने विश्लेषण किया है. यथा, इस साल 11 मार्च से ही लू शुरू हो गई. इसने 24 अप्रैल तक 15 राज्यों को प्रभावित किया है. सबसे बुरा असर राजस्थान और मध्यप्रदेश में हुआ है. यहाँ 25 दिन (भीषण गर्मी की लहर के रहे. राजस्थान में रेगिस्तान होने के कारण आंकड़े एकदम नहीं चौंकाते हैं, लेकिन मप्र जहां कि सबसे अधिक वनाच्छादित क्षेत्र होने और पिछले कुछ सालों में उसका दायरा बढ़ने के दावे किए जाते हैं, वहां पर यह चौंका देने वाला ट्रेंड दिखा. यही नहीं, हिमाचल प्रदेश जैसा पर्वतीय राज्य इस वर्ष हीट वेव से सबसे अधिक प्रभावित होना हमें और आश्चर्य में डाल देता है. गर्मी में पहाड़ों से राहत की उम्मीद रखने वाले लोगों को बता दें कि हिमाचल प्रदेश में भी 24 अप्रैल तक हीट वेव के 21 दिन दर्ज किए जा चुके हैं.
कब होता है हीट वेव
आईएमडी के मुताबिक हीट वेव तब होता है, जब किसी जगह का तापमान मैदानी इलाकों में 40 डिग्री सेल्सियस, तटीय क्षेत्रों में 37 डिग्री सेल्सियस और पहाड़ी क्षेत्रों में 30 डिग्री सेल्सियस को पार कर जाता है. जब किसी जगह पर किसी ख़ास दिन उस क्षेत्र के सामान्य तापमान से 4.5 से 6.4 डिग्री सेल्सियस अधिक तापमान दर्ज किया जाता है तो मौसम एजेंसी हीट वेव की घोषणा करती है. यदि तापमान सामान्य से 6.4 डिग्री सेल्सियस ज्यादा है तो आईएमडी इसे 'गंभीर' हीट वेव घोषित करता है.
आईएमडी हीट वेव घोषित करने के लिए एक अन्य मानदंड का भी उपयोग करता है, जो पूर्ण रूप से दर्ज तापमान पर आधारित होता है. यदि तापमान 45 डिग्री सेल्सियस को पार कर जाता है, तो विभाग हीट वेव घोषित करता है. जब यह 47 डिग्री को पार करता है, तो 'गंभीर' हीट वेव करार दे दिया जाता है.
मौतें कम लेकिन, शारीरिक मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित
हीट वेव्स स्वास्थ्य, कृषि और पानी की उपलब्धता पर प्रभाव डालती हैं. इनका एक दूसरे पर गहरा प्रभाव होता है. रिपोर्ट में बताया गया है कि भले ही भारत में हीट वेव्स के कारण होने वाली मौतों की संख्या में पिछले कुछ वर्षों में कमी आई है, लेकिन शोध से पता चलता है कि अधिक तापमान से लोगों की सामान्य शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित होता है. वहीं दूसरी ओर, कृषि उपज भी प्रभावित होती है. इस साल पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में मौजूदा रबी सीजन में गेहूं की फसल हीट वेव्स से प्रभावित हुई है. इन राज्यों के कई किसानों ने 20 से 60 प्रतिशत के बीच नुकसान की सूचना दी है. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि इस साल की शुरुआत में हीट वेव्स थीं. उच्च तापमान ने गेहूं के पौधों को उनके विकास के चरण के दौरान प्रभावित किया, जिससे अनाज का दाना सिकुड़ गया. इससे बाजार में कम कीमत मिली और किसानों को नुकसान हुआ
हीट वेव्स के कारण कृषि नुकसान को कम करने के लिए, गेहूं की ऐसी किस्में विकसित करने की आवश्यकता है, जो अधिक गर्मी सह सके. इसी तरह, अन्य रबी फसलों की किस्मों को भी विकसित करने की आवश्यकता है, जो ज्यादा गर्मी झेल सके. प्रत्यक्ष गर्मी के अलावा, कृषि उपज सूखे या सूखे जैसी स्थितियों से भी प्रभावित हो सकती है जो अक्सर हीट वेव्स से जुड़ी होती हैं. सूखे की स्थिति के दौरान, सिंचाई के लिए पानी की अनुपलब्धता के कारण ऐसा होता है.
चार डिग्री बढ़ जाएगा वैश्विक तापमान
मौजूदा हीट वेव्स का संभावित प्रभाव हिमाचल प्रदेश, जम्मू और उत्तराखंड जैसे हिमालयी क्षेत्रों में होगा, जो गर्म लहरों को झेलने के अभ्यस्त नहीं हैं. अधिक तापमान के कारण इन क्षेत्रों में ग्लेशियर भी पिघलेंगे, जो वहां रहने वाले लोगों के लिए पानी का मुख्य स्रोत हैं.
आईपीसीसी की रिपोर्ट में कहा गया है कि हर अतिरिक्त 0.5 डिग्री सेल्सियस अत्यधिक वर्षा और सूखे के साथ-साथ गर्म मौसम को बढ़ाएगी. यदि कार्बन उत्सर्जन अधिक रहता है तो भारत में हीट वेव्स के "2036-2065 तक 25 गुना अधिक समय तक" रहने की संभावना है. यह सदी के अंत तक वैश्विक तापमान में 4 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि करेगा, जैसा कि 28 अक्टूबर, 2021 को प्रकाशित एक इंटरनेशनल क्लाइमेट रिपोर्ट में कहा गया है. ऐसे में हमें व्यापक रूप से यह सोचना चाहिए कि हमारा पर्यावरण कैसे बचेगा, आने वाले वक्त में इस बढ़ती हीट वेव की समस्या से हम कैसे निपटेंगे?
कैसे बचाएंगे हीट वेव के दुष्प्रभावों से
दुनिया में कई ऐसे भी देश हैं जहां पर लू से निपटने के लिए विशेष अधिकारियों की नियुक्ति की गईं. ऐसा इसलिए करना पड़ा क्योंकि हीटवेव ने 1998 और 2017 के बीच 166,000 से अधिक लोगों की जान ले ली, यह आंकड़ा विश्व स्वास्थ्य संगठन का है. हमारे यहां अब तक ऐसी कोई व्यवस्था नहीं बन पाई है. यह एक किस्म का नया आपातकाल, जिसके कारण दुनिया के कई शहर हीट ऑफिसर नियुक्त कर रहे हैं, दुनिया भर में सामने आने वाली गर्मी की भयावहता को बताता है.
दीर्घकालीन रूप से पर्यावरण में सुधार की जरूरत तो होगी ही, लेकिन इससे बचने के लिए फौरी उपाय भी जरूरी हैं. जरूरी यह है कि सूचना तंत्र का उपयोग करते हुए समुदाय में ऐसी सूचनाएं पहुंचाई जाएं जिनसे लोग मौसम के इस सख्त तेवर से निपटने के लिए खुद को तैयार कर सकें. यदि कहीं पर हीट वेव की घटनाएं होती भी हैं तो उनसे निपटने के लिए भी एक हेल्थ सिस्टम को तैयार करने की जरूरत है. इसके लिए जरूरी होगा कि बेहतर नियोजन किया जाए.
2013 में अहमदाबाद में सबसे पहले हीट एक्शन प्लान (एचएपी) 2013 में विकसित किया गया था. इसके तहत लोगों को मोबाइल फोन पर एसएमएस के जरिये मौसम संबंधी अलर्ट भेजा जाता था. इसके साथ ही वहां पर चिकित्सकों को हीट वेव्स से निपटने के लिए विशेष तौर पर प्रशिक्षित किया गया. 2018 में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, इस पहल ने एक वर्ष में 1,190 मौतों को टाला. ऐसे और प्रयास करने की जरूरत लगती है.
Rani Sahu

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